हरियाणा की 700 से ज्यादा पंचायतों ने अपने गांवों से शराब के ठेके बंद करने की मांग की है। पहले भी इस राज्य में शराब पर प्रतिबंध के खिलाफ बड़े स्तर पर अभियान चला था। पुरूषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी शराब के ठेके बंद करने के लिए प्रदर्शन तक किए थे। शराब सामाजिक, आर्थिक व शारीरिक तबाही की जड़ है। मामला अब यहां तक सीमित नहीं होना चाहिए कि शराब पर पाबंदी लगाने वाली पंचायतों के गांवों में शराब की बिक्री बंद हो बल्कि अब समय आ गया है कि सरकार को भी इस विषय में सोचना चाहिए। क्या सरकार पंचायतों की इस पहल से मार्गदर्शन पाकर प्रदेश में शराब पर पाबंदी लगाने संबंधी कदम उठाएगी? आम तौर पर सरकार द्वारा जारी जनहित की योजनाओं को लागू करने के लिए जनता से सहयोग की मांग की जाती है, जहां तक शराब का मामला है जब सैंकड़ों पंचायतें शराबबंदी की स्वंय पहल कर रही हैं तब सरकार को इन पंचायतों का हौसला बढ़ाने के साथ साथ बाकी पंचायतों को भी इस दिशा में आगे आने की अपील करनी चाहिए। गत वर्षों से पंजाब के संगरूर, पटियाला जिला सहित एक दर्जन के करीब जिलों ने शराब के ठेके हटाने के लिए प्रस्ताव पारित किया था, लेकिन शराब के व्यापारी कोई न कोई चाल चल पंचायतों शराबबंदी के रास्ते में बाधा बन रहे हैं। बेहतर होगा यदि हरियाणा सरकार पंचायतों की इस पहल को शुभ समझकर राज्य में शराब के खिलाफ मुहिम चलाए। शराब बहुत बड़ी सामाजिक समस्या है लेकिन केंद्र से लेकर राज्य सरकारें इस समस्या पर दोहरा रवैया अपना रहीं हैं। सरकार नशे की रोकथाम के लिए सैकड़ों-करोड़ों रुपये खर्च करती है लेकिन विडंबना है कि सरकार शराब को नशा ही नहीं मान रही, तभी इसकी आम बिक्री के लिए ठेके दे रही है। फिर हद तब हो जाती है जब सरकार शराब से कमाई पर अपनी पीठ थपथपाती है, जोकि भारतीय धर्मों और संस्कृति के विरुद्ध है। गुजरात जैसे राज्य भी हैं जहां शराबबन्दी लागू करने के बावजूद तरक्की हुई है। बिहार जैसा गरीब राज्य भी शराबबन्दी के खिलाफ डटा हुआ है और वहां अपराधिक घटनाओं का ग्राफ भी नीचे आया है। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों को भी शराब की कमाई का लालच त्याग छोड़कर जनता के हितों के लिए काम करना चाहिए।
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