दिसंबर का महीना आते ही देश में ठंड अपने तेवर दिखाने लग जाती है। तापमान की गिरावट के साथ ही धीरे-धीरे दिन छोटा व रातें बड़ी होने लगती हैं। कई शहरों में तापमान शून्य के नीचे चला जाता है, तो कई शहरों में पछुआ पवनें अपनी गति तेज कर कहर बरपाने लगती हैं। वहीं देश में हिमालय, जम्मू-कश्मीर जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फबारी शुरू होने के कारण देशी व विदेशी सैलानियों की संख्या बढ़ने लग जाती हैं। जहां एक ओर ठंड बहुतों के लिए खुशी और आनंद की सौगातें लेकर आती है, तो दूसरी ओर यह बेघरों के लिए मौत के चेहरे के रूप में नजर आने लगती है। इसकी कल्पना तो हम फुटपाथ, पार्कों व खुले आकाश के नीचे जीवन बसर करने वाले उन निर्धन निस्सहाय लोगों की दयनीय दशा को देखकर ही कर सकते हैं। दरअसल, जीवन के सफर के लिए ये लोग कितने मुहताज हैं इसका पता तो इनके अर्धनग्न बदन पर ओढ़े हुए फटे व मैले कंबल से ही लगाया जा सकता है। जैसे-जैसे ठंड का प्रकोप बढ़ने लगता है, वैसे-वैसे इनकी परेशानियां और भी विकराल रूप धारण करने लगती हैं।
ये बेखौफ व निर्भीक निर्धन लोग ठंड का पूरे जोरों-शोरों से मुकाबला करते हैं लेकिन प्रकृति के इस निर्दयी तांडव के आगे इनके हौसलें मात खा जाते हैं। परिणास्वरूप एक समय हाड कंपा देने वाली ठंड एक समय के बाद इनके हाड से प्राण लेकर ही दम लेती है। भीषण ठंड की भेंट चढ़ने वाले ये लोग केवल अखबार की खबरें बनकर रह जाते हैं। ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि किसी सियासी पार्टी के नेता ने इन लोगों के जीवन के लिए बुनियादी आवश्यकताओं की मांग हेतु आवाज बुलंद की हो? वरना क्या कारण है कि ठंड के सितम के आगे मरने वाले इन लोगों की संख्या में साल दर साल इजाफा हो रहा है। एक अनुमान के मुताबिक, देश में प्रतिवर्ष लगभग 800 लोगों की मौत ठंड के कारण हो जाती है। पिछले चौदह वर्षों में तो लगभग 10,000 से भी अधिक लोगों की जान ठंड ने ली है। इनमें पुरुषों की संख्या महिलाओं से कई गुणा अधिक है। कारण साफ है कि महिलाओं के मुकाबले पुरुषों को रोजी रोटी की तलाश में अधिक विस्थापित होना पड़ता है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, देश में सर्वाधिक ठंड प्रभावित राज्यों में वे ही राज्य हैं जहां बेघरों की संख्या सर्वाधिक है। इसमें उत्तर प्रदेश प्रथम पायदान पर है क्योंकि ये देश में सबसे अधिक बेघरों की संख्या वाले राज्य में भी नंबर वन पर है। यहां पर बेघर लोगों की संख्या 3.19 लाख है। दूसरे स्थान पर 2.13 लाख बेघरों की संख्या के साथ महाराष्ट्र ठंड प्रभावित राज्य है। वहीं राजस्थान में 1.78 लाख, मध्य प्रदेश में 1.45 लाख और गुजरात में 1.45 लाख लोग ठंड प्रभावित राज्य के बेघर लोग हैं। इस तरह जनगणना 2011 के मुताबिक, भारत में करीब 17.72 लाख लोग बेघर हैं। बेघरों की यह संख्या भूटान की 797,765 और फिजी की 898,760 की जनसंख्या से लगभग दोगुनी है। ये सही है कि देश में ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के तहत बेघरों की संख्या में कमी आयी है लेकिन अब भी पूरी तरह से स्थिति बदली नहीं है। अगर इस दुर्दिन स्थिति का समग्र रूप से कायाकल्प हुआ होता तो भला आज आखिर कोई क्यों ठंड में ठिठुर कर फुटपाथों, मैदानों या पार्कों में अपने प्राण गंवाने को मजबूर हो रहा होता?
अफसोस की बात तो यह है कि ठंड को प्राकृतिक आपदा सूची में शामिल किए जाने और सुप्रीम कोर्ट के आदेश दिए जाने के बावजूद प्रतिवर्ष शीत लहर के दिनों में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लापरवाही बरती जाती है। सरकार शहरी क्षेत्रों में दस-बारह रेनबसेरों का निर्माण करने को ठंड का इंतजाम करना कहती है। आवश्यकता है कि सरकार ठंड से ठिठुरते व मरते लोगों के प्रति संवेदनशील रवैया अपनाकर अपनी जवाबदेही तय करे। देश में जब तक बेघरों के आवास नहीं बन जाते, तब तक उनके लिए आश्रय स्थलों का प्रबंधन करे। यह तभी मुमकिन हो सकता है जब मोटी रजाई में भी भीषण ठंड के प्रकोप से कांप रहे हमारे सियासतदान खुले में बिना रजाई के सो रहे लोगों के प्रति संवेदना प्रकट करें। साथ ही, सामाजिक प्राणी होने के नाते हम सबकी भी जिम्मेदारी बनती है कि ठंड से ठिठुरते लोगों की हरसंभव सहायता प्रदान करें। इसके लिए ‘नेकी दीवार कार्यक्रम’ काफी हद तक मददगार साबित हुआ और हो सकता है। ठंड के दिनों में यदि देश में जगह-जगह पर ‘नेकी की दीवार’ खड़ी कर हर कोई अपने पुराने व छोटे हो रहे ऊनी वस्त्र स्वेटर, मफलर, कंबल आदि का स्वैच्छिक दान करें तो सर्दी में ठिठुरते जरूरतमंद लोगों की बड़ी मदद हो सकती है।
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