सर्वोच्च न्यायालय ने वेब पोर्टल्स और यूट्यूब चैनलों पर चल रहे निरंकुश स्वेच्छाचार पर बहुत गंभीर प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कहा है कि संचार के इन माध्यमों का इतना जमकर दुरुपयोग हो रहा है कि उससे सारी दुनिया में भारत की छवि खराब हो रही है। देश के लोगों को निराधार खबरों, अपमानजनक टिप्पणियों, अश्लील चित्रों और सांप्रदायिक प्रचार का सामना रोजाना करना पड़ता है। यह राय भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना ने उस याचिका पर बहस के समय प्रकट की, जो जमीयते-उलेमा-ए-हिंद ने लगाई थी। फेक न्यूज की समस्या इसलिए भी बढ़ती जा रही है कि इंटरनेट इस्तेमाल करनेवाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। चुनावी मौसम में तो इनकी बाढ़ आ जाती है। वेबसाइट स्टेटिस्टा के अनुसार, 2020 तक भारत में लगभग 70 करोड़ लोग कंप्यूटर या मोबाइल के जरिये इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे थे। ऐसा अनुमान है कि 2025 तक यह संख्या बढ़ कर 97.4 करोड़ तक पहुंच जायेगी। चीन के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोग भारत में हैं।
जरा याद करें कि कोरोना को फैलाने के लिए उस समय तबलीगी जमात को किस कदर बदनाम किया गया था। अदालत ने सरकार से अनुरोध किया है कि जैसे अखबारों और टीवी चैनलों के बारे में सरकार ने आचरण संहिता और निगरानी-व्यवस्था कायम की है, वैसी ही व्यवस्था वह इन वेब पोर्टलों और यूट्यूब चैनलों के बारे में भी करे। जाहिर है कि यह काम बहुत कठिन है। जहाँ तक अखबारों और टीवी चैनलों का सवाल है, वे आत्म-संयम रखने के लिए स्वत: मजबूर होते हैं। यदि वे अपमानजनक या अप्रामाणिक बात छापें या कहें तो उनकी छवि बिगड़ती है, दर्शक-संख्या और पाठक-संख्या घटती है, विज्ञापन कम होने लगते हैं और उनको मुकदमों का भी डर लगा रहता है लेकिन किसी भी पोर्टल या यूट्यूब या व्हाटसाप या ई-मेल पर कोई भी कुछ भी लिखकर भेज सकता है। उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। करोड़ों लोग इन साधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
लोगों को बोलने की आजादी व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल अनुशासित होकर करना चाहिए. खास तौर से सोशल मीडिया में पोस्ट करते समय इसका ध्यान जरूर रखना चाहिए। आलोचना निष्पक्ष व रचनात्मक होनी चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में दूसरों की आस्था को आहत नहीं करना चाहिए। आजकल हमारे टीवी चैनलों ने भी अपना स्तर कितना गिरा लिया है। वे अपनी सारी शक्ति दर्शकों को उत्तेजक दंगल दिखाने में खर्च कर देते हैं। किसी भी विषय पर विशेषज्ञों का गंभीर विचार-विमर्श दिखाने की बजाय वे पार्टियों के भौंपुओं को अड़ा देते हैं। उसका असर आम दर्शकों पर भी होता है और फिर वे अपनी बेलगाम टिप्पणियां विभिन्न संचार साधनों पर दे मारते हैं। संचार-साधनों का यह दुरुपयोग नहीं रुका तो वह कभी भी किसी बड़े सांप्रदायिक दंगे, तोड़-फोड़, आगजनी और हिंसा का कारण बन सकता है।
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