पृथ्वी दिवस के मौके पर आयोजित जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में दुनिया के शीर्ष नेताओं ने जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाले दुष्परिणामों पर गहनता से विचार-विर्मश किया। सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने साल 2030 तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 30 फीसदी तक घटाने का ऐलान किया। जलवायु परिवर्तन पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के विशेष दूत जॉन कैरी की भारत और चीन यात्रा के बाद इस बात की चर्चा जोरों पर थी कि शिखर सम्मेलन से पहले अमेरिका पेरिस समझौते के तहत निर्धारित कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए कोई बड़ी घोषणा कर सकता है। बाइडेन ने दुनिया के अन्य नेताओं से भी आग्रह किया कि वे अपने-अपने देशों में गैसों के उत्सर्जन को रोकने का प्रयास करें ताकि जलवायु परिर्वतन की त्रासदी से बचा जा सके।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की पहल पर बुलाए गए शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने कहा कि इस चुनौती से निपटने के लिए हमें तेज गति से बड़े पैमाने पर और वैश्विक संभावना के साथ ठोस कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अपने देश के विकास की चुनौतियों के बावजूद हमने स्वच्छ ऊर्जा, प्रभाविता और जैव विविधता को लेकर कई साहसिक कदम उठाए हंै। भारत का कार्बन उत्सर्जन आज भी वैश्विक औसत से 60 फीसदी कम है।
वर्चुअल प्लेटफार्म पर आयोजित शिखर बैठक में पीएम मोदी ने कहा कि राष्ट्रपति बाइडेन और मैं भारत-अमेरिका जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा 2030 साझेदारी की शुरूआत कर रहे हैं। इसके जरिये हम स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में निवेश और हरित साझेदारी बढ़ाने के लिए उपाय करेंगे। उन्होंने शीर्ष नेताओं को विश्वास दिलाते हुए कहा कि हमने खुद से वादा किया है कि हम न केवल पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करेंगे बल्कि उससे आगे निकलेंगे। हम केवल पर्यावरण क्षरण को ही नियंत्रित नहीं कर रहे हैं, बल्कि इसके संरक्षण की दिशा में भी कदम उठा रहे हैं। हम न केवल नई क्षमताओं का निर्माण करेंगे बल्कि उनमें सुधार करने के लिए वैश्विक मदद भी लेंगे। हमारा लक्ष्य साल 2030 तक नवीनीकृत ऊर्जा की क्षमता को बढ़ाकर 450 गीगावाट करना है। हम एलईडी लाइट्स के इस्तेमाल को बढावा दे रहे हैं, हमने सालाना 38 मिलियन टन कार्बन उत्सर्जन को कम किया है।
शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी के अलावा रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा, ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोलसनारो, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो, इसरायल के प्रधानमंत्री बैजामिन नेतन्याहू, तथा सउदी अरब के किंग शाह सलमान सहित दुनिया के 40 से अधिक देशों के शीर्ष नेता उपस्थित हुए।
गौरतलब है कि पिछले दिनों जलवायु परिर्वतन पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के विशेष दूत जॉन कैरी ने भारत और चीन की यात्रा कर जलवायु परिर्वतन पर इन देशों के विचार जाने थे। जॉन कैरी की इन यात्राओं के बाद वैश्विक हल्कों में पेरिस समझोते के लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया था। अब शिखर बैठक में जो बाइडेन ने 2030 तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 30 फीसदी तक घटाने का एलान कर यह साबित कर दिया है कि वे पेरिस समझौते में अमेरिका की वापसी के लिए किस कदर बेकरार है। दरअसल, बाइडेन ने अपने चुनाव कैंपेन के दौरान अमेरिका को पेरिस समझौते में दोबारा शामिल करने की बात कही थी। अपने कार्यकाल के पहले दिन व्हाइट हाउस से भी उन्होंने पेरिस समझौते में अमेरिका की वापसी की घोषणा की थी।
पृथ्वी को जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचाने और ग्रीन हाउस गैंसों के उत्सर्जन को निश्चित सीमा तक बनाए रखने के उदेश्य को लेकर सन् 1992 में रियो-डी-जेनेरियो में पृथ्वी सम्मेलन के अवसर पर पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन ( यूएनसीईडी) में दी यूनाइटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कंवेंशन आॅन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) नामक एक अंतरराष्ट्रीय संधि की गई। 1994 में निर्मित इस संधि का उद्देश्य तेज गति से बढ़ रहे वैश्विक तापमान में कमी लाने के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना था। अक्टूबर 2016 तक 191 देश इस समझौते पर हस्ताक्षर कर चुके थे। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सिंतबर 2016 में जिस वक्त इस समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। भारत ने 2 अक्टूबर को इस पर हस्ताक्षर कर इसके प्रावधानों को स्वीकार किया था। 4 नवंबर 2016 को पेरिस जलवायु समझौता औपचारिक रूप से अस्तित्व में आ गया था। समझौते के तहत अमेरिका ने गरीब देशों को तीन बिलियन डॉलर सहायता राशि देने के लिए हामी भरी थी।
पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप शुरू से ही इस समझौते के आलोचक रहे हैं। उनका कहना था कि अमेरिका ने पेरिस में सही समझौता नहीं किया है। पेरिस समझौते से अमेरिका के औद्योगिक हित प्रभावित होंगे। उनका यह भी आरोप था कि इस समझौते में भारत और चीन के लिए सख्त प्रावधान नहीं किए गए हैं। इससे पहले उन्होंने भारत, रूस और चीन पर आरोप लगाते हुए कहा था कि ये देश प्रदूषण रोकने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। जबकि इसके लिए अमेरिका करोड़ो डॉलर दे रहा है। उन्होंने तो यहां तक कह दिया था कि विकसित देशों से अरोबों डॉलर पाने के लिए भारत समझौते में शामिल हुआ है। साल 2017 में ट्रंप ने समझौते से हटने की घोषणा कर दी थी।
कोई संदेह नहीं कि अगर अमेरिका दोबारा समझौते में शामिल हो जाता है, तो साल 2030 तक दुनियाभर में 3 अरब से ज्यादा होने वाले कार्बन-डाईआॅक्साइड का उत्सर्जन रूक सकेगा, क्योंकि दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन में करीब 15 फीसदी हिस्सेदारी अकेले अमेरिका की है। ऐसे में अगर अमेरिका समझौते में वापिस लौटता है, तो निसंदेह जलवायु परिर्वतन को कम करने की दिशा में किये जा रहे प्रयासों को तो बल मिलेगा ही भावी संततियों को भी इसकी विभीषिका से बचाया जा सकेगा।
डॉ. एन.के . सोमानी
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