वातावरण के साथ आत्मा की सफाई भी जरूरी

Cleanliness of soul with environment is also necessary
सरसा (सकब)। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि भगवान, अल्लाह, राम, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब उसके अरबों नाम हैं, पर वह शक्ति एक है, एक थी और एक ही रहेगी। पानी का नाम बदलने से पानी का स्वाद, रंग और खाने-पीने की चीजों का नाम बदलने से अगर उनका स्वाद नहीं बदलता तो अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब जो कि सबसे बड़ी ताकत है, का नाम बदलने से वो कैसे बदल जाएगा।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि इन्सान को अपने आस-पास सफाई रखनी चाहिए। शरीर की सफाई से पहले आत्मा की सफाई जरूरी है। जब तक इन्सान के आत्मिक विचार शुद्ध नहीं होतेतब तक वह मालिक की कृपा दृष्टि के काबिल नहीं बन पाता। आप आत्मा का शुद्धिकरण किसी ओर तरीके से नहीं कर सकते। आत्मा का शुद्धिकरण होगा पूर्ण गुरु के गुरुमंत्र से। सच्चा संत मिले, गुरु-पीर, फकीर मिले और वह गुरुमंत्र, नामशब्द दे तथा आप उसका निरंतर अभ्यास करें, तो यकीनन आपके विचार बदल जाएंगे। आपका माईंड वाश होगा, शुद्धिकरण होगा। घर में खुशियां आएंगी, बरकतें आएंगी और ये शरीर रूपी घर भी मालिक के इंतजार में पलके बिछा देगा।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि जब इन्सान तंदुरूस्त होता है तो छोटी से छोटी चीज भी नियामत लगती है और जब आदमी तंदुरूस्त नहीं होता तो बड़ी से बड़ी चीज भी कयामत लगती है। शरीर का तंदुरूस्त होना अति जरूरी है। लेकिन शरीर को तंदुरूस्त रखने वाली आत्मा का तंदुरूस्त होना उससे भी अधिक जरूरी है। जिनकी आत्मा मर जाती है, वह तंदुरुस्त होते हुए भी बीमार होते हैं क्योंकि वह मालिक की खुशियों को हासिल नहीं कर पाते। हर समय गमगीन, परेशान रहते हैं, दिमाग में कुछ-कुछ न चलता रहता है, यह सब आत्मिक कमजोरी की वजह से होता है। आप जी ने फरमाया कि अगर इन्सान आत्मा को बलवान बना लेता है, उसे (आत्मा) अंदर की खुराक खिला देता है तो यकीनन आपकी आत्मा बलवान होगी। शरीर तंदुरूस्त होगा, विचार शुद्ध होंगे तथा आप का दिलो-दिमाग खुश होगा।
आप जी ने फरमाया कि पूज्य बेपरवाह साईं शाह मस्ताना जी महाराज के पावन वचन आज ज्यों की त्यों साकार हो रहे हैं। आप बदल रहे हैं, बुराईयां छोड़ रहे हैं। इसलिए कहते हैं सत्संग में आया करो। इंसानियत का कारखाना है सत्संग।  पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आज का इन्सान दुनियादारी के कार्यों में इतना व्यस्त है कि उसे मालिक का नाम लेने की भी फुर्सत नहीं है। इंसान को पाखंडवाद में नहीं पड़ना चाहिए। किसी भी इन्सान को गुरुमंत्र दिलवाना रूहानियत में सबसे बड़ा दान है। जो इन्सान वचनों पर पक्के होते हैं, थोड़ा सेवा-सुमिरन करते हैं तो उसे न तो अंदर कोई कमी रहती है और न ही बाहर।

 

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