-सिंगर-एक्टर अरूण बख्शी सिनेमा के ऐसे मंझे हुए कलाकार हैं जिन्होंने ठहरे हुए और बदलते हुए फिल्म जगत का दौर देखा है। करीब दो सौ से ज्यादा फिल्में करने के बाद आज भी उसी गति से काम कर रहे हैं जो बीस साल पहले करते थे। अरूण बख्शी को अभिनेता के अलावा गायक के रूप में ज्यादा जाना जाता है। कई फिल्मों में उन्होंने हिट गाने गाए हैं। अभिनेता अरूण बख्शी की फिल्मी यात्रा पर डॉ. रमेश ठाकुर ने विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश।
आप पंजाब से ताल्लुक रखते हो, मायानगरी में कैसे पहुंचे?
जवाब: पंजाब-हरियाणा की मिट्टी में खेल और रचनात्मक दोनों मिश्रण है। मैं लुधियाना पंजाब से ताल्लुक रखता हूं। मेरी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं से हुई। मैं क्रिकेटर बनना चाहता था। बहुत अच्छा मीडियम पेसर बॉलर हुआ करता था। लेकिन इसी बीच मेरा रेडियो से जुड़ना हुआ। गाना तो शुरू से ही गाता था। मेरी मम्मी अच्छी सिंगर थी इसलिए गायकी मुझे घर से प्राप्त हुई। बचपन में कोई भी बात मैं निराले अंदाज में प्रस्तुत करता था। बस, यही सबकुछ भांप कर एक दिन पिताजी ने कहा कि तुम्हारी जगह यहां नहीं, बल्कि फिल्मी दुनिया में है। हालांकि शुरूआत में मैंने खुद को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन किस्मत को यही मंजूर था। करीब दो सौ से ज्यादा फिल्में कर चुका हूं। सिलसिला शुरू से अबतक उसी गति से चल रहा है। फिल्म इंडस्ट्री में सबका सहयोग परस्तर तरीके से मिल रहा है। यात्रा निरंतर चालू है।
पर्दे पर आपने ज्यादातर विलेन की ही भूमिका निभाई, कोई खास कारण?
जवाब: नब्बे का ऐसा दौर था। जब अमरीश पुरी, प्राण, ओमपुरी, रंजीत, शक्ति कपूर, कादर खान जैसे आइकॉनिक अदाकारों को विलेन के किरदारों में ही दर्शक देखनो पसंद करते थे। दर्शक उनके निगेटिव किरदारों के दीवाने हुआ करते थे। इस जमात में मैं भी शामिल था। डायरेक्टरों की उस वक्त गैंग हुआ करती थी। उन लोगों ने ठान लिया था कि हमें विलेन ही बनाएंगे। इसलिए हम भी उनके चुंगल से कभी आजाद ही नहीं हो सके। लेकिन सभी आपस में परिवार के सदस्यों की तरह काम किया करते थे।
पिछले साल अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने नाना पाटेकर पर गंभीर आरोप लगाकर काफी हंगामा काट दिया था?
जवाब: नाना पाटकेर बहुत सुलझे हुए इंसान हैं। मैंने उनके साथ कई फिल्में की हैं। मेरे जैसे कई कलाकार यही कहेंगे कि नाना बहुत सहयोगधर्मी इंसान हैं। आरोप लगाने वाली मोहतरमा काफी पहले ही फिल्म इंडस्ट्री छोड़ चुकी हैं। अचानक अवतरित होकर ये आरोप लगाते हैं इससे उनकी मंशा आसानी से भांपी जा सकती है। व्यक्तिगत तौर पर मैं उनके आरोपों से ज्यादा इस्तेफाक नहीं रखता। नाना को फिल्मी दुनिया के अलावा पूरा संसार अच्छे कामों के लिए जानता है इसलिए उनपर लगे आरोप पूरी तरह से निराधार ही कहे जाएंगे। मुझे लगता है कि किसी का बेवजह चरित्रहनन नहीं किया जाना चाहिए।
सिनेमा में आपकी शुरूआत गायकी से हुई या अदाकारी के साथ?
जवाब: दोनों एक साथ। गोविंदा-चंकी पांडे अभिनीत फिल्म आंखे का गाना ‘बड़े का बंदर’ बहुत हिट हुआ। इसके अलावा अक्षय पर फिल्माया गाना ‘झूले-झूले लाल’ आज भी डिस्को पार्टियों मे लगाातर बजता है। मैंने करीब 350 गाने गाये हैं। कर्मा फिल्म में गाने के लिए लक्ष्मीकांत प्यारे लाल मुझे घर से जबरदस्ती उठाकर ले गए थे। अमिताभ बच्चन जी पर भी मेरे कई गाने फिल्माए गए हैं। मुझे अमीन साहनी जैसे लोगों का साथ मिला था, जिसे मैं असल पूंजी मानता हूं। वह मेरी गायकी और आवाज से काफी प्रभावित थे। अदाकारी करने से ज्यादा मुझे गाना गाने में अच्छा लगता है।
सिनेमा का पर्दा अब पहले के मुकाबले बदल चुका है। इसमें आप खुद को कैसे फिट मानते हो?
जवाब: देखिए, बदलाव प्रकृति का नियम है उस लिहाज से सभी को बदलना होता है और बदलना भी चाहिए? पहले के गानों और फिल्मों में ठहराव होता है स्थिरता रहती थी। लेकिन अब वह ठहराव नहीं रहा। हर चीज तेज गति से भाग रही है। पुराने गानों का रिमिक्स किया जाने लगा है। दर्शक और बाजार के हिसाब से सब कुछ तय होता है। मुझे पहले भी मजा आता था और अब भी भरपूर आ रहा है। दरअसल जिसमें सबों का भला हो, उसी को करना चाहिए। फिल्म इंडस्ट्री भी उसी राह पर चल रही है। वैसे आपको बता दूं, फिल्में और गाने दर्शकों के टेस्ट के हिसाब से तैयार होते हैं। फास्ट म्यूजिक सुनने के हम आदी हो चुके हैं। पहले तीन घंटे की फिल्में बनती थी। अब दो या सवा दो घंटे में ही सिमट जाती हैं।
जीवन में कुछ ऐसा जिसको पाने की कोई ख्याहिश रह गई हो?
जवाब: फिल्म इंडस्ट्री ने उम्मीद से ज्यादा प्यार और सम्मान दिया है। जीवन की कुछ कश्तूरी हैं जिसे पाने की चाहत है। पर, समय के साथ उसे भी प्राप्त कर लूंगा। मुझे गंभीर रोल करने में मजा आता है। कलर टीवी के कार्यक्रम इश्क का रंग सफेद में मेरा जो रोल है वैसे रोल करने में भी मजा आता है। फिल्म इंडस्ट्री के सभी बड़े और नवोदित कलाकारों के साथ काम करने का सौभाग्य मिला है। प्रभू से यही मांग करूंगा, ये सिलसिला यूं ही बदस्तूर जारी रहे।
नागरिकता संशोधन एक्ट को लेकर पूरे देश में जो उपद्रव हो रहा है उसे आप कैसे देखते हैं?
जवाब: मैं क्या, कोई भी इस मूवमेंट को नहीं देखना चाहता। पूरे देश में आगजनी, बसे-कारें जलाई जा रही हैं। पुलिसकर्मियों और राहगीरों पर पत्थरबाजी हो रही है। अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को लगता है कि एक्ट उनके खिलाफ है। जबकि, सरकार बार-बार कह रही है कि उनके खिलाफ नहीं है। उनको डरने की जरूरत नहीं? बावजूद इसके सड़कों पर उपद्रव मचा रहे हैं। समझ में नहीं, आता ऐसा करने से उन्हें हासिल क्या होगा। अपने देश की संपत्तियों को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं। आंदोलनकारियों को एक्ट के संबंध में समझना चाहिए।
–रमेश ठाकुर
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