कश्मीर पर चीन की किरकरी

Kashmir Case
Kashmir Case

संयुक्त राष्ट्र में चीन की एक बार फिर किरकिरी हुई है। कश्मीर मामले को लेकर ब्रिटेन और फ्रांस ने चीन का सहयोग नहीं दिया। अपनी किरकरी होने के बाद अब चीन दुहाई दे रहा है कि भारत-पाक संबंधों को ठीक रखने के लिए उसने संयुक्त राष्ट्र में मुद्दा उठाया है। दरअसल यह चीन की चाल है कि वह दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव कायम रखने के लिए भारत विरोधी देशों के साथ मित्रता को सुदृढ़ करने के प्रयास कर रहा है दूसरी तरफ भारत के विदेश मंत्री जयशंकर प्रसाद ने चीन को स्पष्ट किया है कि भारत-चीन को मिलकर चलने के अलावा कोई और रास्ता ही नहीं है। अमेरिका के साथ आर्थिक जंग में चीन के लिए भारत बड़ा बाजार है। चीन के साथ सटी सीमाओं पर हुए विवादों के बावजूद भारत ने संयम रखा, जिससे यह स्पष्ट है कि भारत अपने पड़ोसी देश चीन की महत्वता को समझता है।

आतंकवाद को छोड़कर भारत का पाकिस्तान के साथ कोई विरोध ही नहीं है जहां तक कश्मीर मामले का सम्बन्ध है शिमला समझौता और लाहौर घोषणा-पत्र इस बात के प्रमाण हैं कि पाकिस्तान भी इस मुद्दे को दो देशों का आपसी मुद्दा ही समझता है। इन समझौतों के बावजूद चीन कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहा है, जो इस मुद्दे को सुलझाने की बजाय उलझाएगा। यदि चीन को भारत-पाक सम्बंधों में अमन-शान्ति की चिंता है तब भी भारत का पलड़ा भारी है। भारत सरकार ने कश्मीर सहित हर मुद्दे पर बातचीत के लिए पहली शर्त ही आतंकवाद को समाप्त करने की शर्त रखी है।

लोकतंत्र व विकास के युग में गरीब से गरीब देश भी किसी हिंसा के सामने झुकने को तैयार नहीं। आतंकवादी हिंसा के चलते बातचीत शुरू करने का सीधा सा मतलब आतंकवाद के आगे झुकना है, जो भारत के सिद्धांतों के विपरीत है। दरअसल चीन का रवैया अमन की चिंता वाला कम व तनाव बढ़ाने वाला ज्यादा है। नि:संदेह चीन का कश्मीर मामले में दोगला राग चीन के लिए लाभप्रद हो सकता है लेकिन युद्ध उस व्यापार और आर्थिकता के खिलाफ है जिसके लिए चीन अमेरिका जैसे देशों के साथ जूझ रहा है। चीन ने न केवल कश्मीर मामले में बल्कि आतंकवाद के मामले में भी पाकिस्तान का बचाव किया है लेकिन हालात यह हैं कि किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर आतंकवाद का समर्थन या बचाव करना अब आसान बात नहीं रहा। आतंकवाद को संरक्षण देने पर पाकिस्तान के बाद अब पाकिस्तान का साथ देने पर चीन की भी किरकिरी होने लगी है। चीन दोहरी नीति पर चलने की बजाय स्पष्ट व ठोस दृष्टिकोण अपनाए।

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