चीन और पाक के लिए सीपीईसी गले की हड्डी बन गई है। अब ये दोनों देश अपनी इस परियोजना पर पछता रहे हैं और इससे बाहर आने के लिए दिन-प्रतिदिन नये हथकंडे अपना रहे हैं, नये ख्वाब दिखाये जा रहे हैं, तीसरे देशों को लालच दिखाया जा रहा है, लाभ की परियोजना बताने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाये जा रहे हैं। पर स्थिति यह है कि सीपीईसी परियोजना को लेकर कोई तीसरा देश न तो रूचि दिखा रहा है और न ही चीन-पाकिस्तान की इस परियोजना को लाभ की परियोजना समझने के लिए तैयार है। तीसरे देशों की समझ यह है कि चीन का उपनिवेशवाद पाकिस्तान में ही दफन हो जाएगा,
चीन ने अपने पड़ोसियों के धमकाने और पड़ोसियों की आर्थिक संसाधनों पर कब्जा जमाने की जो मानसिकताएं पाल रखी हैं वे सभी मानसिकताएं पाकिस्तान के अंदर में दफन होने वाली हैं। यह भी प्रश्न है जो परियोजना खुद विवादास्पद हो, जो परियोजना खुद अत्यंत खचीर्ली हो गयी हो, जो परियोजना खुद अलाभकारी परियोजना बन गयी हो, जिस परियोजना की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है, जिस परियोजना को लेकर हिंसा की बड़ी-बड़ी घटनाएं घटती हैं, जिस परियोजना को लेकर जनविरोध की स्थिति उत्पन्न है, जिस परियोजना को लेकर राजनीतिक रार भी खडा है, उस परियोजना को तीसरे देश लाभकारी और हितकारी कैसे समझेंगे?
नये प्रधानमंत्री इमरान खान की भी यह समझदारी बन गयी है कि सीपीईसी को लेकर आंतरिक विसंगतियां दूर नहीं की जायेंगी, बलूचिस्तान की आबादी की आशंकाए दूर नहीं की जा सकती है, बलूचिस्तान की आबादी को लाभ का हिस्सेदार नहीं बनाया जायेगा तो फिर यह परियोजना आत्मघाती साबित हो सकती है। बलूचिस्तान की आबादी को खुश करने के लिए नये सिरे ख्वाब दिखाये गये हैं, फिर भी बलूचिस्तान की आबादी का जनविरोध समाप्त नहीं हो रहा है।
चीन चाहता है कि पाकिस्तान की नयी सरकार परियोजना को लेकर आंतरिक विसंगतियों का समाधान करे और परियोजना में लगे चीनी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। परियोजना की सुरक्षा में पाकिस्तान सेना के 15000 हजार जवान लगे हुए हैं। इमरान खान सरकार ने एक बयान दिया था कि सीपीईसी से सउदी अरब को जोडा जायेगा पर सउदी अरब ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी। चीन चाहता था कि इस परियोजना के साथ ईरान भी जुड़े पर ईरान पाकिस्तान की आतंकवादी नीति के कारण जुड़ने से इनकार कर दिया। ईरान के अंदर में घटने वाली आतंकवादी घटनाओं में पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों की हिस्सेदारी से ईरान चिढा हुआ है। ईरान पाकिस्तान के साथ कोई भी विकासात्मक कूटनीति को हितकारी नहीं मानता है।
चीन ने सीपीईसी परियोजना को लेकर दुनिया को चकित कर दिया था, दुनिया भी भ्रमित हो गयी थी, दुनिया यह समझ बैठी थी कि यह परियोजना सही में दुनिया के लिए लाभकारी है, चीन एक ऐसा आर्थिक गलियारा बनाने जा रहा है जो अमेरिका और यूरोप को न केवल आईना दिखायेगा बल्कि चीन अमेरिका और यूरोप से भी बडी शक्ति बन जायेगी। चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग ने 2013 में इस परियोजना की घोषणा की थी।परियोजना की घोषणा करते हुए चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग ने कहा था कि पाकिस्तान के लिए यह परियोजना गेम चेंजर साबित होगी, दुनिया के लिए पाकिस्तान अब विकसित देश के रूप में सामने आयेगा,
पाकिस्तान की आर्थिक छवि बदल जायेगी, पाकिस्तान एशिया की सबसे बडी आर्थिक अर्थव्यवस्था वाला देश होगा। चीनी राष्ट्रपति की इस घोषणा को लेकर पाकिस्तान के शासक वर्ग बड़े खुश थे। पाकिस्तान में पहली बार कोई देश इतना बडा निवेश करने के लिए तैयार हुआ था। सीपीईसी परियोजना पर चीन ने 46 अरब डालर खर्च करने की घोषणा की थी।
सिर्फ सड़क मार्ग ही नहीं बल्कि विकास की कई अन्य योजनाओं को भी गति देने की बात थी। सड़क, रेल और बंदरगाहों के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाना था। चीन ने अपने व्यापारिक हितों के लिए पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह पहले से ही तैयार कर लिया था। ग्वादर बंदरगाह का उपयोग चीन अब अपने व्यापारिक हितों के लिए कर रहा है।
चीन को बदलते भारत की पहचान नहीं थी। चीन को जैसे के तैसे में जवाब देना शुरू कर दिया था। चीन की घेराबंदी के लिए भारत ने ईरान में बंदरगाह निर्माण का ठेका लिया जो चीन को स्वीकार नही हुआ। इसके साथ सी साथ भारत ने वियतनाम के साथ तेल उत्खनन की हिस्सेदारी बढायी। भारत ने दुनिया को यह बताया कि सीपीईसी परियोजना विवादित परियोजना है, यह भारतीय भूभाग का अतिक्रमण है, भारतीय भूभाग पर पाकिस्तान अवैध कब्जा कर रखा है, उस पर चीन आर्थिक गलियारे का निर्माण नहीं कर सकता है।
सिर्फ इतना ही नहीं भारत ने बलूचिस्तान की राष्ट्रीयता का भी समर्थन कर दिया, दुनिया के सामने यह कह दिया कि बलूचिस्तान में पाकिस्तान जन भावना को कूचल रहा है। चीन नागरिकों की सुरक्षा के लिए पाकिस्तान की सेना के 15000 हजार जवान लगे हुए हैं। ग्लोबल टाइम्स यह भी लिखता है कि भारत के विरोध के कारण और कोई देश इस परियोजना से जुड़ना नहीं चाहता है। इसलिए चीन को इस खतरे की घ्ांटी वाली परियोजना पर फिर से विचार करना होगा। चीन के सरकारी अखबार का आकलन एकदम सच है। जब पाकिस्तान का ही भविष्य तय नहीं है तो फिर सीपीईसी परियोनजा का भविष्य कैसे लाभकारी होगा?
विष्णुगुप्त
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