नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। भारत और चीन के बीच सैन्य गतिरोध शुरू हुए एक साल से अधिक समय हो गया है। पिछले साल 5 मई को गतिरोध शुरू हुआ था। इस दौरान 45 साल में पहली संघर्ष में दोनों पक्षों के सैनिक मारे गए थे। चीन ने पैंगोंग झील क्षेत्र में सैनिकों की पूरी तरह वापसी की दिशा में सीमित प्रगति की है। वहीं, अन्य बिंदुओं पर इन कदमों के लिए बातचीत में गतिरोध बना हुआ है। इस बीच शनिवार को सेना प्रमुख जनरल एम.एम. नरवणे ने चीन को दो टूक कहा है कि भारत वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अमन-चैन चाहता है।
पूर्वी लद्दाख में एकतरफा बदलाव मंजूर नहीं किया जाएगा। क्षेत्र में टकराव के सभी बिंदुओं से सैनिकों की पूरी तरह वापसी हुए बिना तनाव में कमी नहीं आ सकती। भारतीय सेना हर तरह की आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए तैयार है। सेना प्रमुख ने कहा कि भारत दृढ़ता से और बिना उकसावे वाले तरीके से चीन के साथ इस मामले से निपट रहा है ताकि पूर्वी लद्दाख में उसके दावों की शुचिता सुनिश्चित हो। वह विश्वास बहाली के कदम उठाने को भी तैयार है। सेना प्रमुख ने पीटीआई न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में यह बात कही है।
चीन की हर हरकत पर नजर
सेना प्रमुख ने कहा कि एलएसी से करीब 1,000 किलोमीटर दूर गहन क्षेत्रों में स्थित पीएलए के प्रशिक्षण केंद्रों पर भी नजर रखी जा रही है। संवेदनशील क्षेत्र में एलएसी के आसपास दोनों पक्षों के अलग-अलग 50 से 60 हजार सैनिक हैं। पिछले साल पांच मई को गतिरोध शुरू होने के बाद दोनों पक्षों ने फरवरी में पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों से सैनिकों और हथियारों की वापसी की प्रक्रिया को पूरा किया।
सैन्य और कूटनीतिक वातार्ओं के बाद हुए समझौते के तहत यह किया गया। दोनों पक्ष 11 दौर की सैन्य वार्ता कर चुके हैं, जिनका उद्देश्य टकराव के बिंदुओं से सैनिकों की वापसी और तनाव कम करना है। दोनों देशों की सेनाएं इस समय टकराव के बाकी बिंदुओं से सैनिकों की पूरी तरह वापसी की प्रक्रिया को बढ़ाने पर वार्ता में शामिल हैं।
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