मनुष्यों की तरह देशों का अहंकार, जिद्द भी हिंसक टकराव पैदा करते हैं। द्वित्तीय विश्व युद्ध में परिस्थितियों के साथ-साथ राष्टÑीय नेताओं का स्वभाव व मानसिकता भी युद्ध का कारण रही है। चीन व अमेरिका की परिस्थितियां भी इसी तरह बनी हुई हैं कि नेताआें का स्वभाव व मूड भी हालातों को बदल रहे हैं। ताईवान के मामले में चीन व अमेरिका का टकराव लगातार बढ़ रहा है। चीन ने बहुत ही रौब से अपने लड़ाकू जहाज ताईवान के हवाई क्षेत्र में दाखिल करवाए हैं। इस मामले में चीन ने किसी तरह की लुकाछिप्पी की बजाए सीधे तौर पर ताईवान प्रशासन को चुनौती दी है। वहीं दूसरी तरफ चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाईम ने इस कार्रवाई को कब्जे की रिहर्सल करार देकर चीन के इरादों को स्पष्ट कर दिया है।
चीन की यह कार्यवाही ताईवान से भी अधिक अमेरिका को सीधा संदेश है कि अमेरिका ताईवान में अपनी दखल अंदाजी को बंद करे। चीन का यह संदेश अमेरिका के लिए असहनीय है। दूसरी तरफ अमेरिकी राष्टÑपत्ति डोनाल्ड ट्रम्प जो राष्टÑपति का अगला चुनाव भी लड़ रहे हैं, के लिए ताईवान का मुद्दा नाक का सवाल बन गया है। अमेरिका ताईवान के सर्मथन में लगातार डटा हुआ है। अगर यहां अमेरिका पीछे हटता है तब यह ट्रम्प के लिए चुनावों में भी मुश्किलें पैदा कर सकता है। ताईवान का मुद्दा पूरे एशिया में चीन-अमेरिका के वर्चस्व की लड़ाई का मुद्दा बन गया है। एशिया में अमेरिका व चीन दोनों अपने-अपने संगठनों को मजबूत करने की पूरी कोशिश में जुटे हुए हैं।
अगर ताईवान में लड़ाई शुरू होती है तब यह विश्व युद्ध का रूप धारण कर सकती है। जहां तक चीन का संबंध है चीन न केवल ताईवान बल्कि लद्दाख में भारत के साथ किए समझौते को तोड़कर युद्ध का माहौल पैदा कर रहा है। चीन की कार्यवाहियां अमेरिका सहित भारत को उकसाने वाली हैं। युद्ध किसी भी देश के हित्त में नहीं है। शांति व मित्रता ही खुशहाली ला सकतीं हैं। पहले हुए विश्व युद्धों से हुए नुक्सान की भरपाई अभी तक नहीं हो सकी। इन हालातों में भारत को गुटबंदी के मामले में सोच समझ कर कदम रखने की भी जरूरत है। संयुक्त राष्टÑ व अन्य राष्टÑीय मंचों को चाहिए कि वह चीन की उकसाने वाली कार्यवाहियों पर गंभीर व निर्णायक कार्रवाई करें।
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