लो जी, अब ई-सिगरेट में बर्बाद हो रहा बचपन

Childhood now being ruined in e-cigarette

हाई स्कूल के 78 फीसद तो माध्यमिक स्कूल के 48 फीसद छात्रों को लगी लत

गुरुग्राम सच कहूँ/संजय कुमार मेहरा। ई-सिगरेट…यानी तम्बाकू वाले धूम्रपान उत्पादों का तोड़ निकालकर बिना किसी शारीरिक नुकसान के धूम्रपान की लत को पूरा करने का दावा। लेकिन यह दावा सच नहीं है। सच यही है कि तम्बाकू वाले धूम्रपान उत्पादों की तरह ही ई-सिगरेट भी हमें बीमारियां देती हैं। कंपनियों द्वारा इसके पॉजिटिव प्रचार के चलते ई-सिगरेट को हमारी नई पीढ़ी व्यापक पैमाने पर अपना रही है।

जिसे रोकने के लिए हरियाणा समेत देश के चिकित्सकों ने प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप की मांग की है। गुरुग्राम देश का चिकित्सा हब बन चुका है। यहां सामान्य अस्पतालों के साथ थ्री से फाइव स्टार रेटिंग के निजी अस्पताल बन गए हैं, जहां दुनियाभर से मरीज आकर उपचार करा रहे हैं। यहां तक के बाहरी देशों बीते समय हुए युद्ध में घायलों का उपचार भी यहां के अस्पताल में हुआ। ऐसे में यहां के चिकित्सकों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने देश के लोगों के स्वास्थ्य के प्रति भी सचेत रहें। इसी कड़ी में चिकित्सकों ने बीड़ा उठाया है ई-सिगरेट पर प्रतिबंध का, जो कि हमारी भावी पीढ़ी को बर्बाद कर रही है।

अमेरिका में जागरुकता से आई कमी, भारत में भी इसकी जरुरत

अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) की रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2017 से 2018 तक एक वर्ष में ई-सिगरेट का उपयोग कम उम्र के बच्चों में बढ़ा है। यह उपयोग भारत में हाई स्कूल के छात्रों में 78 प्रतिशत और माध्यमिक स्कूल के छात्रों में 48 प्रतिशत तक बढ़ा है। खास बात यह है कि अमेरिका जैसे विकसित देशों में धूम्रपान के खिलाफ प्रचार और जागरुकता के चलते वहां के किशोरों में पारम्परिक धूम्रपान का प्रचलन 15.8 फीसदी से घटकर मात्र 7.6 प्रतिशत रह गया है। जो कि बड़ी उपलब्धि है। इसी तरह का अभियान हमारे देश-प्रदेश में भी चलाने की जरूरत है।

ई-सिगरेट के उपयोग के रूप में किशोरों में ईएनडीएस (इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिसटम्स) की लोकप्रियता ने पारंपरिक सिगरेट में कमी को पीछे छोड़ दिया है। यह इस अवधि में 1.5 प्रतिशत से बढ़कर 11.7 प्रतिशत हो गया। अब इसमें कोई दोराय नहीं कि ये किशोर समय के साथ परिवर्तित होंगे और ई-सिगरेट के साथ नियमित सिगरेट का भी इस्तेमाल करने से नहीं हिचकेंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अध्ययन और रिपोर्ट्स में कहा गया है कि तम्बाकू का उपयोग नहीं करने वाले युवाओं, वयस्कों और गर्भवती महिलाओं के लिए भी ईएनडीएस कतई सुरक्षित नहीं है। अगर वे ई-सिगरेट का इस्तेमाल करते हैं या ऐसे लोगों के प्रभाव में रहते हैं तो उनको नुकसान होना लाजिमी है।

हरियाणा समेत देश के 1061 चिकित्सकों ने लिखा पत्र

र्ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने को देश के 24 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों के 1061 चिकित्सकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। इसमें हरियाणा के 47 चिकित्सक शामिल हैं। गुरुग्राम से संचालित वॉयस आॅफ टोबेको संस्था की ओर से कैंसर रोग विशेषज्ञ डा. वेदांत काबरा के मुताबिक शोध से साबित हुआ है कि ईएनडीएस सुरक्षित नहीं है या धूम्रपान की समाप्ति के विकल्प नहीं हैं। निकोटीन स्वास्थ्य के लिए एक प्रमुख खतरा है। यह एक अत्यधिक नशे की लत वाला रसायन है। संस्था की डायरेक्टर आशिमा सरीन ने बताया कि ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे 2017 के अनुसार भारत में 100 मिलियन लोग धूम्रपान करते हैं, जो ईएनडीएस के निमार्ताओं के लिए एक बड़ा बाजार है। ईएनडीएस लॉबी भारत में प्रवेश पाने की कोशिश में बहुत धन खर्च कर रही है।

ये हैं ई-सिगरेट की वैरायटी

ई-सिगरेट को ई-सिग, वेप्स, ई-हुक्का, वेप पेन भी कहा जाता है, जो इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम (ईएनडीएस) हैं। कुछ ई-सिगरेट नियमित सिगरेट, सिगार या पाइप जैसे दिखते हैं। कुछ यूएसबी फ्लैश ड्राइव, पेन और अन्य रोजमर्रा की वस्तुओं की तरह दिखते हैं। जो युवाओं को बेहद आकर्षित करने वाले होते हैं।

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