विडंबना है कि आजादी के सात दशक से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी हमारे देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अंत नहीं हो पाया है। हाल ही में आई एनसीपीसीआर और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार देश में पिछले कुछ वर्षों में शादीशुदा लड़कियों में से 32 फीसदी 15 से 19 साल की उम्र में मां बनीं है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ग्रामीण भारत में 15-19 साल की उम्र में बाल विवाह का आंकड़ा 14.1 फीसदी और शहरी भारत में यह आंकड़ा 6.9 फीसदी है। इनमें लगभग 30 प्रतिशत लड़कियां अशिक्षित हैं तो वहीं 21.9 प्रतिशत प्राथमिक शिक्षा, 10 प्रतिशत माध्यमिक शिक्षा व 2.4 प्रतिशत लड़कियां उच्च शिक्षा प्राप्त हैं।
यह रिपोर्ट हमारे सामाजिक जीवन के उस स्याह पहलू की ओर इशारा करती है, जिसे अक्सर हम रीति-रिवाज व परंपरा के नाम पर अनदेखा करते हैं। तीव्र आर्थिक विकास, बढ़ती जागरूकता और शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद भी अगर यह हाल है, तो जाहिर है कि बालिकाओं के अधिकारों और कल्याण की दिशा में अभी काफी कुछ किया जाना शेष है। बाल विवाह न केवल बालिकाओं की सेहत के लिहाज से, बल्कि उनके व्यक्तिगत विकास के लिहाज से भी खतरनाक है। शिक्षा जो कि उनके भविष्य का उज्ज्वल द्वार माना जाता है, हमेशा के लिए बंद भी हो जाता है। शिक्षा से वंचित रहने के कारण वह अपने बच्चों को शिक्षित नहीं कर पातीं और फिर कच्ची उम्र में गर्भधारण के चलते उनकी जान को भी खतरा बना रहता है। प्रसिद्ध चिकित्सा शास्त्री धन्वन्तरि ने कहा था कि बाल विवाहित पति-पत्नी स्वस्थ एवं दीघार्यु संतान को जन्म नहीं दे पाते। कच्ची उम्र में मां बनने वाली ये बालिकाएं न तो परिवार नियोजन के प्रति सजग होती हैं और न ही नवजात शिशुओं के उचित पालन पोषण में दक्ष। कुल मिलाकर बाल विवाह का दुष्परिणाम व्यक्ति, परिवार को ही नहीं बल्कि समाज और देश भी भोगना पड़ता है। जनसंख्या में वृद्धि होती है जिससे विकास कार्यों में बाधा पड़ती है।
यह सोचकर बड़ा अजीब लगता है कि वह भारत जो अपने आप में एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है उसमें आज भी एक ऐसी अनुचित प्रथा जीवित है। एक ऐसी कुरीति जिसमें दो अपरिपक्व लोगों को जो आपस में बिलकुल अनजान हैं उन्हें जबरन जिंदगी भर साथ रहने के लिए एक बंधन में बांध दिया जाता हैं और वे दो अपरिपक्व बालक शायद पूरी जिंदगी भर इस कुरीति से उनके ऊपर हुए अत्याचार से उभर नहीं पाते हैं और बाद में स्थितियां बिलकुल खराब हो जाती हैं और नतीजे तलाक और मृत्यु तक पहुंच जाते हैं। दरअसल, कुछ लोग अपनी लड़कियों की शादी कम उम्र में सिर्फ इसलिए कर देते हैं कि उनके ससुराल चले जाने से दो जून की रोटी बचेगी। वहीं कुछ लोग अंधविश्वास के चलते अपनी लड़कियों की शादी कम उम्र में कर रहे हैं। जो भी हो इस कुप्रथा का अंत होना बहुत जरूरी है। वैसे हमारे देश में बाल विवाह रोकने के लिए कानून मौजूद है। लेकिन, कानून के सहारे इसे रोका नहीं जा सकता। बाल विवाह एक सामाजिक समस्या है। अत: इसका निदान सामाजिक जागरूकता से ही संभव है। सो समाज को आगे आना होगा तथा बालिका शिक्षा को और बढ़ावा देना होगा। बच्चों के अधिकारों को लेकर सजग होना पड़ेगा, इसके लिए स्कूल, घर, सिनेमा, टी.वी. मीडिया समेत सभी संस्थाओं को अपना योगदान देने की जरूरत है। तमाम सरकारी गैर-सरकारी संस्थाओं को आगे आना ही होगा।
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