सरसा (सकब)। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि संत, पीर-फकीर सबको समझाते हैं, उनकी ड्यूटी होती है जीवों को नेकी-भलाई के राह पर चलाना। अल्लाह, वाहेगुरु, राम की तरफ से वे संसार में समझाने के लिए आते हैं। उनका मकसद जीव को भक्ति-इबादत का मार्ग बताकर आवागमन से मोक्ष-मुक्ति दिलाना है।
जीवन में अच्छे, नेक लोगों का संग करो
इस संसार में जब तक जीवन है तब तक गम, चिंता न हो, आजादी से, खुशियों से जीवन गुजार सको इसलिए सबका मार्ग-दर्शन करना है। संत, पीर-फकीर कभी किसी को बुरा नहीं कहते। बुराइयों और अच्छाइयों में से आप जिससे भी संबंध रखेंगे, आप वैसे ही बन जाएंगे। इस लिए जीवन में अच्छे, नेक लोगों का संग करो। जो लोग (Charity) परमार्थ में आपका सहयोग नहीं करते वो आपके अपने नहीं हैं।
इस बारे में पूज्य गुरु जी एक उदाहरण देते हुए समझाते हैं कि एक धनी आदमी के चार बेटे थे। वह आदमी भक्ति-इबादत करने वाला था। एक बार किसी आम फकीर ने सुना कि एक धनी आदमी भक्त है। वह उसके पास गया और उससे पूछा कि आपके कितने बेटे हैं? उसने कहा कि मेरे दो बेटे हैं। उसे बड़ी हैरानी हुई कि मैं इसे भक्त समझकर आया हूं और ये तो झूठ बोल रहा है जबकि इसके तो चार बेटे हैं।
वो कहने लगा कि आप तो रूहानियत को मानने वाले है, लेकिन आप तो झूठ बोल रहे हैं। वो कहने लगा कि परमार्थ में मेरा दो बेटे ही सहयोग करते हैं। बाकि जो दो हैं वो शराब, मांस खाने वाले, बुरे कर्म करने वाले हैं, इसलिए वो मेरे होते हुए भी मेरे नहीं हैं, मैं उन्हें मानता ही नहीं कि उन्होंने मेरे यहां जन्म लिया है, लेकिन वो दो बेटे हैं जो मेरा राम नाम में नेकी भलाई, परमार्थ में तन, मन, धन से मेरा बढ़-चढ़कर सहयोग करते हैं। इसलिए मैं कहता हूं कि मेरे दो ही बेटे हैं।
खुद को छोड़ कर दूसरों की मदद करो। सृष्टि में कोई भी दुखिया है, कोई परेशान है आप उसकी मदद करें
वास्तव में इस संसार में आकर जो परमार्थ करता है वो ही सच्चा साथी है, नहीं तो पशु है, क्योंकि पशु हमेशा अपने लिए सोचता रहता है। वैसे ही यदि आप परमार्थ नहीं करते तो इंसान होते हुए भी आप पशु हैं। इसलिए परमार्थ करना चाहिए, परमार्थ यानि पराया हित, दूसरों के बारे में सोचना। खुद को छोड़कर दूसरों की मदद करो। सृष्टि में कोई भी दुखिया है, कोई परेशान है आप उसकी मदद करें। अगर आप उनकी मदद करेंगे तो अल्लाह, राम, मालिक आपकी मदद करेंगे। अगर आप उनके लिए सोचेंगे तो मालिक आपके लिए सोचेंगे। इसलिए अपने अंत:करण को परमार्थ के लिए हमेशा तैयार रखो। यदि आप दान करना चाहते हैं तो वहां करो जहां जरूरत है।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि संतों का काम समझाना होता है। वो सबको राह दिखाते रहते हैं। आगे मर्जी आपकी है कि आप कौन-सा रास्ता चुनते हैं, मालिक ने आपको बहुत बड़ा दिमाग दिया है, सोचने समझने की ताकत दी है। जिस मर्जी रास्ते से अपनी जीवन रूपी गाड़ी को ले जाइये। मन-माया और मनमते लोग जो आपको गाइड करते हैं उनका कुछ नहीं जाएगा और आपका कुछ रहेगा नहीं। संतों का काम तो सबको समझाना होता है। वो हर जीव को हाथ जोड़कर समझाते हैं, सख्त अल्फाजों से भी समझाते हैं ताकि आदमी को समझ आ जाए और वो मालिक की खुशियों का हकदार बन सके।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।