सन् 1979 की बात है। मलोट आश्रम में मकानों का निर्माण हो रहा था। खूब सेवा चल रही थी। मैं भी वहां पर मिस्त्री की सेवा करने के लिए गया हुआ था। मैंने दो दिन तक खूब सेवा की। तीसरे दिन मेरे मन में ख्याल आया कि जब पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज हमारे पास आते हैं तो सभी मिस्त्री सेवादारों को शाबाशी देते हैं और नाम लेकर बुलाते हैं परंतु पूजनीय परम पिता जी ने मुझे कभी नहीं बुलाया। यह सोचकर मेरा मन उदास हो गया और मैंने यह निर्णय कर लिया कि अगर आज पूजनीय परम पिता जी ने मुझे नहीं बुलाया तो मैं कभी भी सेवा करने नहीं आऊंगा। उसी दिन शाम को पूजनीय परम पिता जी जब तेरावास से बाहर आए तो सीधे वहां पर आ गए, जहां सेवा चल रही थी। पूजनीय परम पिता जी मेरे पास आकर रूक गए और फरमाया, ‘‘महेन्द्र सिंह, कैसे हो। बेटा, आगे से ऐसा ख्याल कभी भी दिल में मत लाना।’’ मैंने उसी वक्त पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज से अपनी गलती की माफी मांगी। उस समय पूजनीय परम पिता जी मेरे पास दस मिनट तक खड़े रहे और मुझे बातों-बातों में अत्यधिक प्यार देते रहे। जिसका शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।
महेन्द्र सिंह, गांव साफूवाला, मोगा (पंजाब)
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