पश्चिम बंगाल में निकट भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर राज्य में ‘राजनैतिक तापमान ‘ बढ़ता ही जा रहा है। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जिन्हें ‘बंगाल की शेरनी’ भी कहा जाता है, अपने अकेले दम पर न केवल बंगाल की सत्ता पर दशकों तक काबिज रही वामपंथी सरकार को सत्ता से बेदखल करने जैसा अदम्य साहस दिखा चुकी हैं बल्कि कांग्रेस व भाजपा जैसे राष्ट्रीय राजनैतिक दलों को भी वक़्त वक़्त पर बंगाल की राजनीति में धूल चटाती रही हैं। परन्तु इस बार के होने वाले विधान सभा चुनाव ममता बनर्जी के राजनैतिक जीवन के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकते हैं।
इसका मुख्य कारण यही है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) राज्य में अपने हिंदुत्ववादी एजेंडे के साथ अपनी पूरी ताकत के साथ न केवल दस्तक दे चुकी है। निश्चित रूप से भाजपा अन्य राज्यों की ही तरह यहां भी ‘साम दाम दण्ड भेद’ की नीति का इस्तेमाल करते हुए किसी भी तरह बंगाल में अपनी सत्ता शक्ति का विस्तार करना चाह रही है। भाजपा नेताओं ने इसी राह पर आगे बढ़ते हुए तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है। इनमें कई ऐसे दागदार व भ्रष्ट नेता भी शामिल हैं जिनके नाम पर निशाना साधते हुए भाजपा ममता शासन पर भ्रष्ट शासन होने का आरोप लगाती थी।
परन्तु जैसा कि पहले भी होता आया हैबंगाल में ‘चाणक्य बनाम चाणक्य’ किसी भी पार्टी का कोई भी भ्रष्ट से भ्रष्ट नेता (Corrupt Leader) यदि भाजपा में शामिल हो जाए तो उसे गोया ‘शिष्टाचार’ व ईमानदरी का प्रमाण पत्र मिल ही जाता है। खबरों के अनुसार यहां भाजपा ने अपने ‘कुंबा विस्तार’ अभियान में केवल टी एम सी नेताओं को ही नहीं बल्कि उन वामपंथी नेताओं को भी शामिल किया है जो भाजपा के अनुसार ‘चीनी मानसिकता’ से ग्रसित हैं तथा ‘भारत चीन (Indo-China) युद्ध के दौरान चीन के साथ खड़े दिखाई देते थे’।
बहरहाल यह सच है कि भाजपा अपने बांग्लादेशी घुसपैठिये जैसे सांप्रदायिकतावादी मुद्दे पर सवार होकर ममता बनर्जी पर, कांग्रेस की ही तर्ज पर ‘तुष्टिकरण’ का आरोप मढ़ते हुए राज्य के हिन्दू (Hindu) मतों का ध्रुवीकरण कराना चाह रही है। बंगाल चूँकि गुरूदेव रविंदर नाथ टैगोर व नेताजी सुभाष चंद बोस की जन्म व कर्मभूमि रही है इसलिए भाजपा देश के इन दो सबसे कद्दावर व्यक्तित्व की अनदेखी नहीं कर पा रही है। भाजपा नेताओं की मजबूरी है कि व इन दोनों हस्तियों को चुनावों में बार बार याद करें,उनके स्मारकों पर जाएं तथा उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करते दिखाई दें।
भाजपा के कद्दावर नेताओं का शांति निकेतन जाना,विश्व भारती विश्वविद्यालय की विरासत पर अधिकार जमाने की कोशिश करना आदि उसी सिलसिले की ही एक कड़ी है। परन्तु दरअसल इन दोनों ही महापुरुषों की विचारधारा भाजपा की संघ विचारधारा से बिल्कुल विपरीत है। टैगोर व बोस दोनों ही कट्टर राष्ट्रवाद और धर्म आधारित राष्ट्रवाद के घोर विरोधी थे। वे भारत को धर्म नहीं बल्कि मानवता प्रधान देश के रूप में देखना चाहते थे। ये उन्हीं के सपनों का बंगाल है जिसमें मुसलमानों की अधिकांश संख्या उर्दू-फारसी या अरबी नहीं बल्कि केवल बंगाली बोलती, पढ़ती व समझती है।
परन्तु निश्चित रूप से चूँकि भाजपा के पास राष्ट्रीय स्तर पर जन स्वीकार्य नेताओं का घोर अभाव है इसीलिये पार्टी भ्रमित रहती है और कभी सरदार पटेल जैसे सच्चे गांधीवादी कांग्रेसी व घोर संघ विरोधी नेता को अपना कर गुजरात में उनकी विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा बनवाकर यह सन्देश देती है कि उनकी नजर में संघ या भाजपा नेताओं से भी कद्दावर हस्ती सरदार पटेल की है उसी तरह बंगाल में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बजाए गुरूदेव रवींद्र नाथ टैगोर व सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose)की तरफ यहां तक कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की ओर अपनी ‘स्नेह वर्षा’ कर बंगाली मतदाताओं का दिल जीतने की कोशिश में लगी है।
पिछले दिनों भाजपा के ‘चाणक्य’ (Chanakya) समझे जाने वाले नेता गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने एक बाउल लोक गीत गायक के घर पर भोजन ग्रहण किया था। इस कार्यक्रम के फौरन बाद ही यह खबर आने लगी थी कि जिस लोक गायक के घर गृह मंत्री ने भोजन किया उससे उन्होंने कोई बात ही नहीं की। आखिरकार वही बाउल लोक गायक अमित शाह को भोजन कराने के बाद ममता बनर्जी के साथ स्टेज पर बैठा दिखाई दिया। बोलपुर में जहाँ अमित शाह ने पिछले दिनों रोड शो किया था।
और इसी रोड शो की भीड़ देख गद गद होकर यह कहा था कि उन्होंने अपने जीवन में इतना बड़ा व सफल रोड शो पहले कभी नहीं देखा। उसी बोलपुर में ममता बनर्जी ने भी अमित शाह के बाद रोड शो किया जो अमित शाह के रोड शो से भी अधिक भीड़ भाड़ वाला था। खबरों के अनुसार 4 किलोमीटर लंबे इस रोड शो में ममता स्वयं जनता के बीच पैदल चल रही थीं। अमित शाह ने अपने इसी रोड शो को देखकर कहा था कि भाजपा बंगाल में 200 से अधिक सीटें जीतने जा रही है। साथ ही दल-बदल को प्रोत्साहित करते हुए उन्होंने यह भी कहा था कि चुनावों तक दीदी अकेली रह जाएंगी।
तो दूसरी तरफ एक और प्रसिद्ध ‘चुनावी चाणक्य’ तथा इस समय ममता बनर्जी (Mamta benerjee) के चुनावी रणनीति कार प्रशांत किशोर ने पहली बार इस बात का दावा किया है कि बंगाल में भाजपा सीटों के मामले में दहाई की संख्या तक भी नहीं पहुंच पाएगी। उन्होंने बड़े ही आत्म विश्वास से कहा कि सीटों के मामले में भाजपा पश्चिम बंगाल में दहाई के आंकड़े को पार करने के लिए भी संघर्ष करेगी और 100 से भी कम सीटें हासिल करेगी। प्रशांत किशोर ने भरे आत्म विश्वास के साथ यह भी कहा कि -‘यदि भाजपा को इससे ज्यादा सीटें मिलती हैं तो मैं अपना काम छोड़ दूंगा’।
इसी के साथ साथ प्रशांत किशोर ने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को भी सार्वजनिक तौर पर यह स्वीकार करने की चुनौती दी कि अगर भगवा दल पश्चिम बंगाल (W. Bengal) में 200 सीटें हासिल करने में विफल रहा तो इस तरह का दावा करने वाले नेता भी अपने पद छोड़ देंगे। बंगाल में होने वाला ‘चाणक्य बनाम चाणक्य’ चुनाव यह साबित करेगा कि सत्ता शक्ति व मीडिया प्रोपेगंडा की जीत होती है या ‘सोनार बांग्ला’ की उस संस्कृति की जो सर्वधर्म समभाव व मानवता पर आधारित है ?