वैश्विक मोर्चों पर बरकरार रहेंगी चुनौतियां

Global Front

26 जनवरी 2021 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन भारत के गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में भारत आ रहे हैं। जॉनसन के सत्ता में आने के बाद भारत-ब्रिटेन संबंधों लगातार मजबुत हुए है। ब्रिटेन यूएन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है। मार्च 2021 में ब्रिटेन परिषद का अध्यक्ष बनेगा। इधर, भारत की भी अस्थायी सदस्य के रूप में परिषद में एंट्री होगी। अगस्त 2021 में भारत को भी रोटेटिग प्रेसिडेन्सी अर्थात परिषद की अध्यक्षता का मौका मिलेगा। भारत अगले दो साल परिषद में रहेगा। ऐसे में दोनों देशों के बीच मजबूत रिश्ते भारत के हीत में ही है। हालांकि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग हो जाने के बाद जहां एक ओर भारत को ब्रिटेन के साथ अपने संबधों को पुन: परिभाषित करना होगा वहीं यूरोपीय संघ के साथ भी बेहतर तालमेल के लिए मशक्त करनी होगी।

साल 2020 सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से उथल-पुथल वाला रहा है। साल के आंरम्भ में ही देश और दुनिया से कोरोना वायरस की जो डरावनी खबरें आ रही थी उसका वास्तविक रूप भारत ने भी देखा। कोविड-19 के बुरे दौर में भारत आतंरिक मामलों के प्रंबध में तो व्यस्त रहा ही विदेश मोर्चे पर भी उसकी सक्रियता लगातार बनी रही। हालांकि, महामारी के कारण वैश्विक यात्राओं पर प्रतिबंध था। इस लिए इस साल राष्ट्राध्यक्षों व शासनाध्यक्षों के आने-जाने का सिलसिला न के बराबर रहा। कोरोना के प्रभाव से पहले जनवरी माह में ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर मेसियस बोलसोनारो चार दिन की भारत यात्रा पर नई दिल्ली आए थे। वे 71 वें गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि थे। बोलसोनारो की इस यात्रा के दौरान भारत और ब्राजील के बीच सामाजिक सुरक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में 15 समझौते हुए। फरवरी 2020 में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ट ट्रंप परिवार सहित भारत आए। साल साल 2016 में राष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद यह उनकी पहली भारत यात्रा थी। ट्रंप की यात्रा से पहले और उसके बाद ट्रंप-मोदी की दोस्ती ने देश और दुनिया में खूब सुर्खियां बटोरी थी।

दक्षिण एशियाई देशों के साथ रिश्तों में कोई खास परिर्वतन या बहुत बड़ी उपलब्धि इस साल भारत के लिए नहीं रही। नेपाल में सत्ता परिर्वतन व केपी शर्मा ओली के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत नेपाल संबंधों में तनाव के जो बिन्दू उभर रहे थे वे इस साल भी बरकरार रहे। भारत के पिथौरागढ जिले से लगे सीमावर्ती क्षेत्र लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधूरा पर नेपाल सरकार ने अपना दावा करके सीमा विवाद को हवा दी। अभी प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के संसद भंग करने के फैसले से नेपाल में एक बार अस्थिरता का दौर शुरू हो गया है। राष्ट्रपति विधादेवी भंडारी ने नए चुनाव करवाये जाने की तारीखों के ऐलान के बाद चीन पूरे मामले पर निगाह रखे हुए हैं।

चीनी राजदूत हाओ यांकी के नेपाली राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री से मिलने के समाचार भी आ रहे हैं। भारत को भी नेपाल में अपने हितों की सुरक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाने चाहिए। नेपाल, चीन व भारत के बीच बफर स्टेट होने के कारण सामरिक दृष्टि से भारत के लिए काफी अहम है। पाकिस्तान के साथ भारत अपनी पंरम्परागत नीति पर ही आगे बढता दिखाई दे रहा है। पिछले साल जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने व पीओके को भारत में शामिल करने आहृान से दोनों देशों के बीच ब्यानबाजी का जो आक्रामक दौर शुरू हुआ था, वह इस साल थोड़ा मंद रहा। हाँ, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के विरूद्ध जहर उगलने की उसकी नीति जारी रही। बांग्लादेश में भारत समर्थक शेख हसीना के दोबारा सत्ता में आने से बांग्लादेश को लेकर भारत की चिंता कुछ कम हुई है।

नदी जल को लेकर दोनों देशों के बीच जब-तब विवाद उठता रहता है। साल के अंतिम माह में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ पीएम नरेन्द्र मोदी की वर्चुअल शिखर बैठक व सात समझौतों के हस्ताक्षर के बाद भारत-बांग्लादेश संबंध नई ऊंचाईयों को छूते हुए प्रतीत हो रहे हैं। भारत को इस बात का ध्यान रखना होगा कि वह बांग्लादेश के साथ अल्पकालिक लाभ हेतू अपने दीर्घकालिक हितों के साथ समझौता न करे। दोनों देशो के मध्य नदियों के जल प्रबधन के कार्य को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। उम्मीद है साल 2021 में दोनों देश इस दिशा में प्रयास करते नजर आएंगे। भारत-श्रीलंका संबंधों की बात की जाए तो दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक व परंपरागत संबंध रहे हैं। गृह युद्ध के वक्त के मतभेदों को छोड़ दिया जाए तो लगभग संबंध सोहार्दपूर्ण ही है।

नवनिर्वाचित राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे का चीन की ओर आकर्षण भारत के लिए चिंता का विषय है। अपने चुनाव प्रचार के दौरान भी गोटबाया ने यह बात खुलकर कही थी कि यदि वे सत्ता में आते हैं, तो चीन के साथ रिश्तों को मजबूत बनाएंगे। लेकिन नवबंर 2019 में अपनी पहली राजकीय यात्रा पर भारत आकर गोटबाया ने भारत की चिंताओं को कुछ कम जरूर किया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले वर्षों में भारत श्रीलंका के साथ रिश्तों को बेहतर कर सकेगा। भूटान भी भारत का प्रमुख पड़ोसी देश है। भूटान का राजनीतिक रूप से स्थिर होना भारत की सामरिक और कूटनीतिक रणनीति के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। डोकलाम विवाद के बाद चीन की विस्तारवादी नीति ने दोनों देशों के सामने सीमा सुरक्षा संबंधी चुनौतियां खड़ी कर दी है।

चीन भूटान के साथ औपचारिक राजनयिक और आर्थिक संबंध स्थापित करने का इच्छुक है, अगर ऐसा होता है तो आने वाले दिनों में भूटान में भारत के लिए ंिचंता के नये कारण पैदा हो सकते हंै। 20 जनवरी को जो बाइडेन अमेरिका के 46 वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेगें। ट्रंप और मोदी के दोस्ताना संबंध (हाउडी मोदी और नमस्ते ट्रंप) के बीच सवाल यह उठ रहा है कि बाइडेन भारत को किस निगाह से देखेगे। हालांकि बाइडेन ने भारत के साथ बेहतर संबंधों के संकेत दिए है। वे बराक ओबामा के साथ बतौर उपराष्ट्रपति भारत आ चुके हैं। सीनेट में विदेश मामलों की कमेटी के अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने भारत पर लगे परमाणु प्रतिबंधों को हटाने की बात कही थी।

संभावना इसी बात की है कि बाइडेन आगे भी भारत को साथ लेकर चलने की नीति पर चलते हुए दिखेगें। उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की राय कुछ मामलों में बाइडेन से इतर हो सकती है। बाइडेन प्रशासन ट्रंप द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों को भी हटाना चाहेगा। भारत ईरान से तेल का आयात बढ़ा सकेगा। दक्षिण एशिया से बाहर पश्चिम एशिया, मध्य एशिया, अफ्रीका तथा मुस्लिम देशों व यूरोपीय देशों के साथ रिश्तों की बात करें तो हम उसी परंपरागत रूप से आगे बढ़ते रहेंगे, जिसके लिए भारत की विदेश नीति जानी जाती हैं। हाल-फिलहाल जो स्थितियां बनी हुई हैं उन्हें देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अगले साल भी भारत विदेशी मोर्चों पर दो-दो हाथ करते दिखेगा।

                                                                                                              -डॉ. एन.के.सोमानी

 

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