मानवाधिकारों की चुनौतियां

Challenges of human rights

विश्व मानवाधिकार दिवस प्रत्येक वर्ष 10 दिसम्बर को मनाया जाता है। 1948 में 10 दिसंबर के दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानवाधिकार घोषणा पत्र जारी किया था तभी से प्रतिवर्ष 10 दिसंबर को विश्व मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। मानवाधिकार घोषणा पत्र में न्याय, शांति और स्वतंत्रता की बुनियाद के रूप में समाज के सभी वर्गों को सम्मान और बराबरी का अधिकार दिए जाने की बात कही गई थी। मानव अधिकार वे अधिकार है जो किसी भी व्यक्ति के लिए सामान्य रूप से जीवन बिताने एवं उसके अस्तित्व के लिए आवश्यक है। मानवाधिकार दिवस का प्रमुख उद्देश्य है विश्व में किसी भी व्यक्ति, समाज या वर्ग को परेशान न किया जाये। सभी को जीवन जीने की आजादी एवं समान अधिकार मिले।

मानवाधिकारों को सबसे ज्यादा चुनौती गरीबी से मिल रही है। विश्वभर में हर 8 में से 1 व्यक्ति भूख के साथ जी रहा है। दुनियां में 24 हजार व्यक्ति रोजाना भुखमरी के शिकार होकर अकाल मौत मर जाते है। ऐसे दौर में हम मानवाधिकारों की बात करते नहीं थकते यह सम्पूर्ण विश्व के लिए शर्मनाक है। मानवाधिकारों की बात करने वालों लिए यह किसी चुनौती से कम नहीं है। मानवाधिकार हर प्राणी के लिए मायने रखता है वह चाहे अमीर हो या गरीब। दुनियां के हर संपन्न व्यक्ति और देश को भूख से पीड़ित लोगों को पेटभर खाना खिला कर उनके मानवाधिकारों की रक्षा के लिए आगे आना होगा तभी हमारा सही अर्थों में मानवाधिकार दिवस मनाना सार्थक होगा। भूख और गरीबी से लोगों के जीने का अधिकार खतरे में पड़ जाता है तो अन्य मानवाधिकारों, जैसे- समानता, विचार अभिव्यक्ति, धार्मिक स्वतंत्रता आदि के बारे में बातें करना बेमानी है । बाल मजदूरी, महिलाओं का यौन शोषण, धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न, जातिगत भेद-भाव, लूट-पाट, बलात्कार आदि सभी बातें मानवाधिकारों के खिलाफ जाती हैं।

भारत ने 1993 में मानवाधिकार आयोग का गठन कर इसे एक कानून के रूप में लागू किया। मानव अधिकार से तात्पर्य उन सभी अधिकारों से है जो व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता एवं प्रतिष्ठा से जुड़े हुए हैं। यह सभी अधिकार भारतीय संविधान के भाग-तीन में मूलभूत अधिकारों के नाम से वर्णित किए गए हैं। मानवाधिकार दिवस मनाने का उद्देश्य पूरी दुनिया में लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करना है। इसके अलावा इसके विभिन्न पहलुओं पर विचार करना भी मानवाधिकार दिवस का प्रमुख उद्देश्य है, ताकि इसमें व्याप्त अनियमितताओं या कमियों को समय-समय पर विचार करके दूर किया जा सके। मानव अधिकार एक व्यक्ति की राष्ट्रीयता, उसके निवास, लिंग, राष्ट्रीयता या जातीय मूल, रंग, धर्म या अन्य स्थिति पर ध्यान दिए बिना सभी मनुष्यों के लिए निहित अधिकार हैं। सभी समान रूप से भेदभाव के बिना मानव अधिकारों के हकदार हैं। ये अधिकार आपस में संबंधित, अन्योन्याश्रित और अविभाज्य हैं। सच तो यह है की हम ऐसे समय में मानव अधिकारों की चर्चा कर रहे है जब अधिकांश जनता को अपने अधिकारों की जानकारी नहीं है। यह जनता आज भी रोटी कपडे मकान की बुनियादी सुविधाओं की प्राप्ति के लिए जूझ रही है। हमारा देश भारत जहां 70 प्रतिशत जनता आज भी गाँव में रोशनी का मतलब ढूंढ़ रही है। पीने का साफ पानी नही है, जिसके कारण हजारों बच्चे डायरिया का शिकार हो रहे हैं। जहां दो जून रोटी और गरिमा पूर्ण जीवन कि तलाश में कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या कर रहे हैं। वहां अधिकार की बात करने कौन आगे आयेगा? यह भी सच्चाई है की सरकार आती जाती रहती है मगर गरीब के अधिकार आज भी कुचले जा रहे है। गरीब ,दलित और दबे कुचले लोगों के चेहरों पर यदि मुस्कान आ जाये तो उन्हें मानवाधिकारों का आसानी से पता चल जायेगा।

भारत में मानव अधिकार आयोग होने और उनके संरक्षण के लिए कारगर कानून होने के बावजूद बच्चों और महिलाओं पर अत्याचार, तस्करी, आॅनर किलिंग, अस्पृश्यता, गरीबी, महिलाओं के साथ घर या सार्वजनिक तौर पर होने वाली हिंसा आजादी के 7 दशक बीत जाने के बाद भी जारी है। इसलिए हमें सब कुछ सरकार पर न छोड़कर अपने स्तर पर भी अपने आसपास होने वाले इन अपराधों को रोकने के लिए मिलकर कदम उठाने होंगे। हमें अपने अधिकारों का सही इस्तेमाल करना है तो यह तभी संभव होगा जब एक सभ्य समाज के नागरिक होने के नाते हम एक-दूसरे के दु:ख दर्द को समझें और एक-दूसरे के अधिकारों को बना रहने दें। इस दिवस की सार्थकता तभी होगी जब हम एक दूसरे के प्रति सद्भाव बनाये रखते हुए मानवाधिकारों की रक्षा के लिए समर्पित होंगे।

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