केन्द्र का कृषि सुधार हरियाणा के लिए बना जी का जंजाल

Agricultural Ordinances

हरियाणा में भाजपा-जजपा सरकार का कार्यकाल शांतिपूर्वक चल रहा था। आशा वर्करों व पीटीआई अध्यापकों के आंदोलन के सिवाय और कोई बड़ा विरोध सरकार को नहीं झेलना पड़ा था। विपक्ष के पास भी कोई बड़ा मुद्दा सरकार को घेरने के लिए नहीं था। हालांकि शराब घोटाला, चावल घोटाला, रजिस्ट्रियों में धांधली कुछ एक मुद्दों पर विपक्ष जरूर सरकार पर आक्रामक रहा लेकिन भाजपा-जजपा सरकार में दबंग मंत्री अनिज विज, जिन्हें गब्बर सिंह के नाम से भी पहचाना जाने लगा है, ये कोई भी मुद्दा विपक्ष के पास जाने ही नहीं देते। सरकार में रहते हुए खुद ही विपक्ष की भूमिका भी निभा लेते हैं। जो आवाज विपक्ष ने उठानी चाहिए वही आवाज खुद उठाकर विपक्ष की आवाज को कमजोर कर देते हैं। लेकिन केन्द्र सरकार का कृषि सुधार अब हरियाणा की भाजपा सरकार के लिए जी का जंजाल बनता दिखाई दे रहा है।

केन्द्र सरकार कृषि सुधार के लिए तीन अध्यादेश लेकर आई, इन अध्यादेशों से किसान व आढ़ती दोनों ही सरकार से खफा है। दोनों वर्गों का कहना है कि ये अध्यादेश आढ़तियों के रोजगार को तो खत्म करने वाला है ही, किसानों की भी कमर तोड़ने वाला और उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने वाला है। सरकार का कहना है कि अध्यादेश-1 के तहत कोई भी व्यापारी या प्राइवेट एजेंसी सीधा किसान के खेत से फसल खरीद सकेगी। इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी। जबकि किसानों का तर्क है कि इससे मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी और सरकार एमएसपी पर फसल खरीदने से बच जाएगी जिससे किसानों को मजबूरन एमएसपी से कम दाम पर फसल बेचनी पड़ेगी। अध्यादेश-2 के अनुसार आलु, प्याज, दाल, खाद्य तेल आदि को आवश्यक वस्तु अधिनियम से बाहर कर इनकी स्टॉक सीमा खत्म कर दी गई है जिससे किसानों को इन फसलों के अच्छे दाम मिल सकेंगे परन्तु किसानों का कहना है कि इस नियम का जमाखोर ही फायदा उठाएंगे।

किसानों को कोई लाभ नहीं होगा। अध्यादेश-3 में कांट्रेक्ट फार्मिंग की बात है कि कम्पनियां किसानों से अनुबंध कर खेती करवा सकेंगी जिससे कम्पनी की डिमांड पर किसान फसल उगाएंगे और अच्छे दाम मिलेंगे लेकिन किसान यह समझते हैं कि कांट्रेक्ट फार्मिंग उन्हें बुधआ मजदूर बना देगी। किसानों को कम्पनी के बीज, खाद, कीटनाशक ऊंचे दामों पर खरीदने पड़ेंगे और जब फसल तैयार होगी और यदि कांट्रेक्ट रेट बाजार भाव से कम होगा तो कम्पनियां फसल की गुणवत्ता में कमी निकालकर तय मूल्य देने से इनकार कर सकती है, जिससे किसानों को मार पड़ेगी। किसानों के तर्क वाजिब प्रतीत होते हैं। किसानों का कहना है कि सरकार किसी न किसी बहाने किसानों की उपज को खरीदने से बचना चाहती है। पिपली (कुरुक्षेत्र) में किसान बचाओ-मंडी बचाओ रैली ने सरकार के खिलाफ संघर्ष का बिगुल बजा दिया है। इस संघर्ष से बचने के लिए सरकार को कोई बीच का रास्ता निकालना ही पड़ेगा और कानून सम्मत किसान की इन चिंताओं का निवारण करना होगा, नहीं तो यह बिगुल सरकार की सरपट दौड़ती गाड़ी को पटरी से उतार देगा।

 

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