PM e-Bus Seva : केन्द्र की एनडीए सरकार ने देश के 100 शहरों में 10 हजार ई-बसें चलाने का फैसला किया है। यह फैसला सही और समय की आवश्यकता है। वास्तव में यह समय है देश में तेल रहित साधनों की क्रांति लाने की। आज करोड़ों साधनों के कारण वायु प्रदूषण इतना ज्यादा बढ़ चुका है कि फेफड़ों के कैंसर की संभावना की तुलना तंबाकू का सेवन करने वालों के बराबर की जाने लगी है। हवा में लगातार जहर घुल रहा है। लोगों में जागरुकता की कमी होने के कारण साधनों को कम करना मुश्किल हो गया है। PM e-Bus Seva
यातायात के साधन जरुरत से अधिक सामाजिक रुतबे का प्रतीक बन गए हैं खासकर विवाह समारोह में लड़की को दहेज में कोई गाड़ी देने का पक्का रिवाज बन गया है अब यह रुझान जन्मदिन और वैवाहिक वर्षगांठ तक भी पहुंच गया है। ऐसे हालातों में साधनों की संख्या घटने संबंधी सोचना बेहद मुश्किल है। अगर साधन घटाए नहीं जा सकते तो साधनों को प्रदूषण रहित किया जाना ही एक हल है। इसी तरह बसें सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट का बड़ा साधन है। करोड़ लोग प्रतिदिन बसों पर सफर करते हैं अगर बसें ही तेल रहित हो जाएं तो वायु प्रदूषण में कटौती हो सकती है। इससे पहले ई-रिक्शा शुरु हो चुके हैं जिससे प्रदूषण में सुधार हुआ है।
सूर्या ऊर्जा का प्रचलन बढ़ रहा है। राज्य भी अपने स्तर पर कम्पनियों के साथ समझौते कर रहे हैं। अच्छा हो अगर आमजन भी जागरुक हो तो इलेक्ट्रिक साधनों का प्रयोग बढ़ सकता है। बिना शक केन्द्र सरकार के यह प्रयत्न सराहनीय हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ग्रीन हाऊस गैसों की निकासी में भारत की वर्णनीय कटौती हुई है। इलेक्ट्रिक बसों के आने से ग्रीन हाऊस गैसों की निकासी में और कटौती होगी जो विकासशील देशों के लिए प्रेरणा बनेगा। बिना शक वातावरण में सुधार के लिए बहुत बड़े कदम उठाने पड़ेेंगे।
विकसित देशों को भी चाहिए कि वह भारत जैसे विकासशील देश की तरह ठोस कदम उठाएं ताकि प्रदूषण के स्तर में गिरावट हो। वास्तव में कोरोना काल ने भी यह साबित कर दिया था कि यातायात के साधनों के कारण वातावरण बुरी तरह प्रभावित हो चुका है। लॉकडाउन के दौरान गाड़ियों-बसों के बंद होने के कारण आसमान साफ हो गया और पहाड़ बहुत दूर से नजर आने लगे थे। लॉकडाउन के बाद फिर आसमान में जहर घुल गया था।
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