केंद्र सरकार ने भिन्न-भिन्न राज्यों में गैर-जिम्मेवार 381 उच्च अधिकारियों के विरूद्ध कार्रवाई करते हुए किसी को समय से पहले सेवामुक्ति व किसी की तनख्वाह एवं भत्तों में कटौती की है। सरकार के इस निर्णय की पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली व दृढ़ता साफ नजर आ रही है।
मोदी की ओर से बार-बार उच्चाधिकारियों को सचेत किया जाता है कि वह काम करें, प्रधानमंत्री का कहना है कि सभी को काम करना होगा, क्योंकि काम ही इस सरकार में नौकरी का आधार है। यहां तक कि इस सरकार में भाजपा सांसदों एवं मंत्रियों को भी तेजी से कार्य करने की नसीहत है।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि केंद्रीय मंत्रालयों एवं विभागों में सरकारी कामकाज में तेजी साफ देखी जा सकती है। अफसरशाही की जवाबदेही तय हो रही है। भूतल परिवहन के भारी भरकम कार्य हों या पर्यावरण मंत्रालय में फंसी हजारों फाइलों का निपटारा सब काम पूरी चुस्ती से हो रहे हैं।
परंतु राज्यों के प्रशासन में अभी भी अफसरशाही एवं कर्मचारियों में कामों को लेकर मनमर्जी चल रही है। राज्य प्रशासन अभी भी अपनी भ्रष्ट कार्यशैली को छोड़ने के लिए तैयार नहीं।
आमजन को सरकारी कार्यालयों में मामूली कागजात पाने के लिए, छोटे-छोटे कामों के लिए चक्कर कटवाए जाते हैं, जो थोड़ी बहुत रिश्वत दे देता है या किसी राजनेता का समर्थक है उसका काम हो जाता है।
यदि सार्वजनिक एवं विकास कार्याें की बात करें तब लोगों के काम धरने-प्रदर्शनों के बाद ही किए जाते हैं। अभी बरसात का मौसम है। शहरी आबादी हर जगह जलभराव की समस्या से जूझ रही है, जबकि ये समस्याएं आती नहीं यदि प्रशासन समय रहते जलनिकासी प्रबंधों को दुरूस्त कर लेता।
अत: केंद्रीय सरकार की कार्यशैली को राज्य स्तर तक भी प्रभावी बनाया जाए। राज्य सरकारें यदि प्रशासन को चाक-चौबंद कर लें तब यहां देश की आबादी को बड़ी राहत मिलेगी, वहीं विकास कार्याें में तेजी आएगी एवं भ्रष्टाचार रूकेगा। लेकिन कोई भी सुधार अनुशासित तरीके से कठोरता की मांग करता है जोकि राजनीतिज्ञों को करनी चाहिए।
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