बेजुबान पशुओें के स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता
बेजुबान पशुओं के रखरखाव और उनकी सेहत के प्रति मौजूदा समय की भौगोलिक परिस्थितियों में खासा बदल आ चुका है। समाज ने जब से पशुधनों को नकारना शुरू किया तभी से तमाम किस्म के पशुओं की प्रजातियां भी लुप्त हो गई हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का भविष्य
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने कार्यों से विश्व स्वास्थ्य और रोग का प्रशासन संभाला है और वह विभिन्न देशों और संगठनों के बीच निगरानी मानदंडों और मानकों के प्रवर्तन और समन्वय का कार्य कर रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन को राजनीति से बिल्कुल मुक्त रखा जाना चाहिए ।
खुश हैं वन्य जीव और प्रकृति मुस्काने लगी
कोरोना के कारण तालाबंदी से पिछले 33 दिनों की अवधि ने घरों में कैद मानवीय जीवन में आये बदलाव से प्रकृति को पुन: नवल रूप धारण करने का एक स्वर्णिम अवसर प्रदान किया है। संचार के तमाम संसाधनों में चित्र और समाचार प्रकाशित प्रसारित होते रहे कि अब किस प्रकार प्रकृति खिली-खिली नजर आ रही है।
जीवन को लीलता मलेरिया
मलेरिया प्रतिवर्ष 40 से 90 करोड़ बुखार के मामलों का कारण बनता है, वहीं इससे 10 से 30 लाख मौतें हर वर्ष होती है। यानी कह सकते हैं कि मलेरिया से प्रति 30 सेकेंड में एक मौत होती है। इनमें से ज्यादतर पांच वर्ष से कम आयु वाले बच्चे होते हैं। गर्भवती महिलाएं भी इस रोग की वजह से संवेदनशील होती हैं।
सस्ते हुए तेल का भंडारण जरूरी
पूरी दुनिया में कच्चा तेल वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की गतिशीलता का कारक माना जाता है। ऐसे में यदि तेल की कीमतों में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है, तो इसका प्रत्यक्ष कारण है कि दुनिया में औद्योगिक उत्पादों की मांग घटी है। इस मांग का घटना इस बात का संकेत है कि समूचे विश्व पर मंदी की छाया मंडरा रही है।
चीन के एफडीआई पर भारत का हमला
केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के नवीनतम अधिसूचना के अनुसार भारत की भूमि से संबद्ध देशों के नागरिकों या इन देशों में स्थापित कंपनियों या इन देशों के नागरिकों के स्वामित्व वाली कंपनियों को भारत में किसी भी क्षेत्र में निवेश करने के लिए सरकार की अनुमति लेनी होगी।
मेरे लिए नहीं…..मैं खास हूं, तुम कौन?
लगता है हम ऐसे भारत में रह रहे हैं जहां पर केवल वीवीआईपी को महत्व दिया जाता है और जहां पर हम विशेषाधिकारों के लिए एक संकरी सी आधिकारिक पट्टी पर रह रहे हैं। जहां पर हमारे आम आदमी और खास आदमी के बीच एक गहरी खाई है जिसके चलते लोगों में शासकों के प्रति आक्रोश बढता जा रहा है और जिसके चलते लोग स्वयं भी कानूनों का उल्लंघन करने लगे हैं।
कोरोना आपदा में अच्छे मानसून की खबर
देश में इस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून सामान्य रहने का अनुमान है। यह खबर खेती-किसानी, कृषि मजदूर और उससे जुड़े व्यापारियों के लिए सुकून देने वाली है। यही खेती हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।
डब्ल्यूएचओ पर संदेह का कारण
डब्ल्यूएचओ निदेशक गेब्रेयसस जिन तौर-तरीकों से इस वैश्विक संगठन का संचालन किया है, उन्हें किसी भी रूप में उचित नहीं कहा जा सकता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य मसलों और अपने आपदा नियंत्रण अनुभवों के लिए विश्व स्तर पर पहचान रखने वाले ग्रेब्रेयसस उसी वक्त सतर्क क्यों नहीं हो गए थे जब 7 जनवरी को चीन ने कोरोना वायरस के फैलने की सूचना उन्हें दी थी।
बुजुर्गों की ‘मनोदशा’ को न होंने दें ‘लॉक’
लॉकडाउन में बुजुर्गों को कभी अकेला न रहने दें। अकेलापन उनके भीतर निराशा और हताशा का भाव पैदा करता है। जिसकी वजह से जीवन में नैराश्यता का भाव पैदा होता है। उम्र दराज लोगों से हमेशा बातचीत करते रहिए। उनके भीतर संवाद शून्यता का भाव पैदा न होने पाए।
महामारी: समेकित कार्यवाही की आवश्यकता
संपूर्ण लॉकडाउन विश्व का सबसे बडा मनोवैज्ञानिक परीक्षण है और इससे तनाव से जुड़ी अनेक समस्याएं पैदा होने की संभावना है। क्वारंटीन न केवल शारीरिक रूप से परेशानियां पैदा कर रहा है अपितु इसका मानसिक र्प्रभाव भी पड रहा है जो जीवन भर रह सकता है।
कोरोना में आशा की नई किरण- एमपीलैड लूट पर रोक
नियंत्रक महालेखा परीक्षक की विभिन्न रिपोर्टों में कहा गया है कि यह राशि जनकल्याण के लिए है किंतु इसका एक बड़ा हिस्सा लोगों की जेब में चला जाता है। सांसद और विधायक जिला मजिस्ट्रेट के साथ सांठगांठ कर यह सुनिश्चित करता है कि लागत को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाकर प्रत्येक योजना में ठेकेदारों से उसे कमीशन दिया जाए।
खास होगा लॉकडाउन का दूसरा चरण
देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए लॉक डाउन की अवधि को 3 मई तक के लिए बढ़ा दिया है, ऐसे में आशा जगती है कि आने वाले दिन देश के खास होंगे। लॉकडाउन-2 में पूरी तरह पता चल जाएगा कि हम कोरोना संक्रमण को रोकने में कहां तक सफल रहे हैं।
डब्लूएचओ बन गया कागजी शेर
सिर्फ दिखाने के लिए ही डब्लूएचओ का अस्तित्व है, वास्तव में उसके पास न तो संकटकाल से लड़ने और संकट काल से बाहर निकलने के लिए कोई कार्यक्रम हैं और न ही सशक्त नीतियां हैं। डब्लूएचओ के बड़े-बडे अधिकारी सिर्फ अपने भाषणों और समिनारों में ही रोगों से लड़ने और रोगों से जीवन बचाने की वीरता दिखाते हैं।
सीमा पर खून खराबा-भारत इसे कैसे रोके?
यह वास्तव में बहुत आहत करने वाली बात है कि जब संपूर्ण विश्व मानव के अस्तित्व के लिए मुकाबला कर रहा है तो हमारी सीमाओं पर पाकिस्तान द्वारा भ्रमित लोगों द्वारा ऐसी कार्यवाही की जा रही है।