सावधान! ‘स्मार्टफोन’आपके बच्चों का बन रहा है दुश्मन, जानें, पूज्य गुरु जी ने क्या किए हैं वचन

Smartphone vs Kids

विडियो गेम के चक्रव्यू में फंसे आपके लाडले

सरसा (सच कहूँ डेस्क)। छोटे बच्चों के हाथों में स्मार्टफोन थमाना इन दिनों आम बात हो गई है। बच्चों की जरा-सी शैतानी और रोने पर अभिभावक उनके हाथ में मोबाइल थमा देते हैं। गेम लगाकर या फिर यूट्यूब पर वीडियो चलाकर बच्चों को दे देते हैं ताकि वे मोबाइल पर रमे रहें। लेकिन इस बीच अभिभावक यह भूल जाते हैं कि छोटे बच्चों के लिए मोबाइल जितना मनोरंजन का साधन है, उससे कई ज्यादा खतरनाक भी है। स्मार्टफोन से निकलने वाली खतरनाक रेडिएशन बच्चों की परवरिश पर असर डालती हैं। ये खतरनाक किरणें, बच्चों को कई तरह की बीमारियां भी दे सकती हैं। कई बच्चें वीडियो गेम खेलने के आदि हो जाते हैं जिससे मानसिक तनाव पैदा हो जाता है।

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“कुछ वर्ष पूर्व पूज्य गुरू संत डॉ गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने वीडियो गेम्स के इंसानी दिमाग पर होने वाले दुष्प्रभावों पर चेतावनी देते हुए फरमाया था कि कुछ वीडियो गेम्स ऐसे हैं , जो इंसान को समाज और अपनों से इस कद्र दूर कर रहे हैं कि वो अपनी उसी भ्रामक और काल्पनिक दुनिया में ही जीना चाहते हैं। इसकी लत इंसान को ऐसी स्थिति में ले जाती हैं जहां वो मानसिक तौर पर कई बीमारियों का शिकार हो जाता है जैसे डिप्रेशन, नींद न आना व अन्य साइक्लोजिक्ल इफैक्ट्स इत्यादि। इसी के साथ ही इंसान को मानसिक रोगों के साथ शारीरिक रोग भी घेरना शुरू कर देते हैं”।

 

एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत भूमिका कहती हैं कि आधुनिक जीवनशैली में परिवार एकल हो गए हैं। ऐसे में अक्सर नए-नए अभिभावक बने कपल्स बच्चों को सही से नहीं संभाल पाते हैं। वह बच्चों की जरा-सी शैतानी और रोने को भी बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं, ऐसे में वह या तो बच्चों को खेल लगाने के लिए लाउड म्यूजिक चला देते हैं या फिर उनके हाथ में स्मार्टफोन थमा देते हैं। पेरेंट्स यह भूल जाते हैं कि स्मार्टफोन की किरणें न सिर्फ बच्चों की आंखों के लिए हानिकारक हैं बल्कि स्वास्थ्य पर भी इनका घातक दुष्परिणाम होता है।

दरअसल, एक बार अगर बच्चों के हाथ में मोबाइल फोन दे दिया गया तो वह काफी देर तक उसमें ही रमे रहते हैं। इससे बच्चों को धीरे-धीरे मोबाइल फोन की लत लग जाती है। बच्चों घंटे मोबाइल फोन में या तो गेम खेलते रहते हैं या फिर उसकी स्क्रीन पर आंख गड़ाए रहते हैं। ऐसे में बच्चों की आंखें बचपन से ही कमजोर हो सकती हैं। भूमिका कहती हैं कि स्मार्टफोन की लत की वजह से बच्चों को कान और दिमाग का ट्यूमर होने का भी खतरा रहता है। 

कई शोधों में यह बात बताई गई है कि ज्यादा फोन यूज करने पर बच्चों के ब्रेन की एक्टिविटी पर असर पड़ता है। लेकिन अक्सर अभिभावक इन बातों को नजरअंदाज कर देते हैं। फोन बच्चों की एकेडमिक परफॉर्मेंस पर भी असर डालता है, अभिभावकों को यह बात नहीं भूलना चाहिए। भूमिका कहती हैं कि बच्चे बिना स्मार्टफोन के भी पल सकते हैं। बच्चों को रोने दें और शैतानी करने दे, लेकिन झट से उनके हाथ में मोबाइल फोन न थमाएं।

बच्चे पूरी तरह स्मार्टफोन पर हुए निर्भर

सबसे बड़ा नुक्सान तो यह होता है कि बच्चे पूरी तरह स्मार्टफोन पर निर्भर हो जाते हैं। यदि बच्चा स्मार्टफोन का उपयोग अपनी पढ़ाई के लिए भी कर रहा है तो भी नुक्सान हो रहा है। जिस उत्तर को खोजने के लिए उसे पुस्तक का पाठ पढ़ना चाहिए या फिर जिस शब्द का अर्थ जानने के लिए डिक्शनरी के पन्नों को पलटना चाहिए वह काम उसका झट से गूगल पर हो जाता है इसलिए बच्चों ने पुस्तकों को पढ़ना कम कर दिया है।

 

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स्मरण शक्ति को भी पहुँचता है नुक्सान

पहले लोग एक-दूसरे का फोन नंबर बड़ी आसानी से याद कर लेते थे, कोई घटा-जोड़ करना हो तो वह भी झट से उंगलियों पर कर लिया करते थे। यही नहीं लोगों के जन्मदिन या सालगिरह इत्यादि भी आसानी से याद रहती थीं लेकिन अब सब कुछ स्मार्टफोन करता है और बच्चों को अपना दिमाग लगाने की जरूरत ही नहीं पड़ती।

स्मार्टफोन ने बच्चों की नींद में की कटौती

बच्चों को पर्याप्त नींद लेना जरूरी है लेकिन स्मार्टफोन की लत लग जाए तो बच्चे माता-पिता से छिप कर रात को स्मार्टफोन पर गेम खेलते रहते हैं या फिर कोई मूवी आदि देखते हैं, जिससे उनके सोने के समय में तो कटौती होती ही है साथ ही लगातार स्मार्टफोन से चिपके रहने से आंखों को भी नुक्सान होता है।

स्वभाव हो रहा चिड़चिड़ा

ज्यादातर बच्चे जिनको स्मार्टफोन की लत लग चुकी है अगर आप उनकी तुलना उन बच्चों से करेंगे जोकि स्मार्टफोन से दूर हैं तो पाएंगे कि स्मार्टफोन उपयोग करने वाले बच्चे सिर्फ वर्चुअल वर्ल्ड में जी रहे हैं और घर वालों से उन्हें कोई मतलब नहीं है। साथ ही उनका स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो चुका होता है। अगर आप उन्हें थोड़ी देर के लिए भी स्मार्टफोन से दूर करेंगे तो वह गुस्से में आ जाएंगे या फिर चिल्लाना शुरू कर देंगे।

इंटरनेट से बच्चों पर पड़ रहा गलत असर

स्मार्टफोन में आप तरह-तरह के एप डाउनलोड कर सकते हैं साथ ही यूट्यूब पर जो भी वीडियो चाहे देख सकते हैं और इंटरनेट पर हर तरह की सामग्री उपलब्ध है। ऐसे में बच्चों को जो चीजें एक उम्र में जाननी चाहिए वह उन्हें कम उम्र में ही पता लगने लगती हैं, जिसका उनके दिमाग पर गलत असर होता है।

बच्चों की स्मार्टफोन की लत कैसे छुड़ाएँ

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  • कहते हैं ना कि बदलाव खुद से ही शुरू होता है, इसके लिए आप खुद भी दिन भर स्मार्टफोन से चिपके रहने की आदत को बदलें और घर पर परिवार के साथ समय बिताएँ ना कि फोन पर। घर पर बच्चों से उनकी पढ़ाई के बारे में बात करें और जितना समय घर पर रहें बच्चों के साथ किसी ना किसी गतिविधि में लगे रहें। इससे बच्चे धीरे-धीरे स्मार्टफोन से दूर होते जाएंगे और आपके साथ समय बिताना उन्हें अच्छा लगेगा। हर बच्चे की किसी ना किसी चीज में रुचि होती है आप उसके मुताबिक उसे डांस क्लास, स्पोर्ट क्लास, म्यूजिक क्लास, पेंटिंग क्लास या अन्य कोई ज्वॉइन करवा सकते हैं। बच्चों को बाहर खेलने के लिए प्रोत्साहित करें और उनके साथ खुद भी खेलें। इससे बच्चों का शारीरिक विकास भी होगा और आपको भी मजा आयेगा।
  • बच्चों को हम हर तरह की सुविधा देना चाहते हैं और उनसे कोई काम नहीं करवाते, यह तरीका गलत है। बच्चों से घर के रोजमर्रा के कामों में कुछ ना कुछ योगदान लें इससे उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का भी अहसास होगा और चीजों का महत्व भी पता चलेगा।
  • बच्चों को अगर सिर्फ इसलिए फोन देना है कि वह आपके साथ संपर्क में रहें तो उसे स्मार्टफोन देने की बजाय साधारण फोन दें इसका दुरुपयोग होने की संभावना कम होती है।

बच्चों को फोन देना आपको गर्व की जगह आत्मग्लानि महसूस ना करा दे

लंदन यूनिवर्सिटी में एक शोध के दौरान जो सामने आया वह काफी चौंका देने वाला है, वैज्ञानिकों ने बच्चों की फोन की लत के बारे में जानने के लिए लगभग 700 माता-पिताओं पर सर्वे किया, उनसे सवाल पूछे गए कि उनके बच्चे कितने समय तक टच स्क्रीन फोन या टैबलेट का इस्तेमाल करते हैं, शोध से स्पष्ट हुआ कि ब्रिटेन में लगभग 75 फीसदी बच्चे रोजाना टच स्क्रीन का उपयोग करते हैं जिसमें 51 फीसदी बच्चों की उम्र 6 से 11 महीने की है। जो बच्चा इतनी कम उम्र का चलना दूर ठीक से बैठना भी नहीं जानता वह स्मार्टफोन का उपयोग करना सीख जाता है।

यही कारण है कि मोबाइल से उत्पन्न होने वाला ऐडिएशन बच्चों के विकास को अवरुद्ध कर देता है। ब्रिटेन ही नहीं भारत में भी शोध किया जाए तो यहां आंकड़ा लगभग बराबर ही होगा, माता-पिता बच्चों को फोन पकड़ाकर इस बात से मुक्त हो जाते हैं कि वह कहीं चला न जाए या रोने ना लगे, साथ ही जब बच्चे मोबाइल या लैपटॉप चलाना सीख जाते हैं तो माता-पिता बड़ा ही गर्व महसूस करते हैं याद रखें बच्चों के फोन की यह लत गर्व की जगह आत्मग्लानि महसूस ना करा दे।

कनाडा की बाल रोग विशेषज्ञ के कैथरीन विरकेन का कहना है कि टच स्क्रीन फोन का 30 मिनट से ज्यादा उपयोग करने से बच्चों में देरी से बोलने की आशंका 49 फीसदी तक बढ़ जाती है। उनका कहना है कि बच्चों का मनोरंजन करने के लिए थोड़ी देर के लिए बच्चों को फोन के संपर्क में लाया जाना चाहिए, एक शोध के दौरान 2 साल से कम उम्र के 894 बच्चों पर अध्ययन किया गया जिसमें देरी से होने वाली समस्याएं सामने आर्इं।

सच कहूँ की अपील: स्मार्टफोन से निकलने वाली खतरनाक रेडिएशन से अभिभावाक अपने बच्चों को बचाएं और जितना हो सके उनके साथ समय बिताकर संस्कारवान बनाएं।

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