सफल प्रोफेशनल्स और एम्प्लॉयर्स के अनुसार फोकस जॉब पर नहीं, करियर पर करना चाहिए। इसके बावजूद सच यह है कि करियर मैनेजमेंट अक्सर लोगों के लिए एक उलझाऊ वाक्य बन कर रह जाता है। वह इसे हल्के तौर पर लेते हैं, जिसका कोई मतलब नहीं होता। सच्चाई यह है कि करियर मैनेजमेंट बहुत जरूरी और विशिष्ट प्रक्रिया है और जब उस पर विधिवत कार्य किया जाता है तो उसके दीर्घकालिक लाभ जरूर मिलते हैं। लिहाजा किसी भी संस्थान के हितों को ध्यान में रखते हुए वहां काम करने वालों की समग्र तरक्की से जुड़ी योजना ही करियर मैनेजमेंट कहलाती है, जो करियर की शुरुआत में भी अमल में लाई जाती है और मध्य में भी। दरअसल एक अनुशासित वित्तीय निवेश की ही तरह करियर मैनेजमेंट द्वारा करियर में बेहतरी की दिशा में लगातार किए गए प्रयास अच्छा फल देते हैं। वहीं दूसरी ओर मजबूत करियर मैनेजमेंट प्लान के बिना आप खुद को सतह पर ही पाएंगे। आपको यह भी दिखेगा कि आपके मौजूदा क्रियाकलाप आपकी भविष्य की योजनाओं को फलीभूत नहीं कर सकते और जल्दी ही वह समय आएगा, जब आपका करियर आपको चला रहा होगा।
उद्देश्य और लक्ष्य: जीवन में काम के उद्देश्य के बारे में एक धारणा कहती है कि कार्य से ही किसी भी व्यक्ति के अस्तित्व की पूर्ति होती है। वही अभिव्यक्ति का स्रोत भी होता है। इसके विपरीत एक अन्य मत के अनुसार व्यक्ति के करियर और उसके जीवन के बीच बहुत अंतर होता है। जो भी हो, करियर क्योंकि जीवन का महत्वपूर्ण अंग होता है, इसीलिए उसे व्यवस्थित करने की जरूरत पड़ती है। करियर मैनेजमेंट की शुरुआत उद्देश्यों और लक्ष्यों से होती है। इस प्रक्रिया में शॉर्ट टर्म को जल्दी व लॉन्ग टर्म उद्देश्यों व लक्ष्यों को एक निश्चित अवधि में प्राप्त किया जाना चाहिए। यह ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि करियर मैनेजमेंट आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है, इसलिए रास्ते में किसी रुकावट को देख कर अपना मार्ग न बदलें। साथ ही यह एक सक्रिय अभ्यास है। आप अलग-थलग बैठ कर दूसरों को अपने लिए काम करने को नहीं कह सकते। आपको खुद सक्रिय भूमिका निभानी होगी। करियर मैनेजमेंट के आपके प्रयास तभी सफल होते हैं, जब इसका एक निश्चित ढांचा बनाया जाए। इसके बिना अधिकांश लोग इस ओर से तब तक आंखें फेरे रहते हैं, जब तक कोई आपात स्थिति नहीं आती। एक विशिष्ट ढांचागत आकार इसे हर परिस्थिति में लगातार चलाए रखता है। स्थापना, जांच और त्रुटि निवारण करियर मैनेजमेंट की असली समझ इस आधार पर तय होती है कि व्यक्ति इस क्षेत्र में क्या प्राप्त करना चाहता है। यह पक्ष समझना अपने आप में बहुत कठिन भी होता है। यहां प्रत्येक लक्ष्य से जुड़े काम अलग करके उनके आधार पर लक्ष्य तय करना चाहिए। इसके बाद अपने कार्य की तरक्की की जांच करें। यहां मतलब आपके लक्ष्यों और उन्हें हासिल करने के लिए किए गए प्रयासों से है। इस जांच से रुकावट दूर होती है और आपके जीवन में करियर लक्ष्य विधिवत आ मिलते हैं। करियर के लक्ष्य भी समय के साथ-साथ बदलते और बढ़ते हैं। इसमें प्रत्येक कदम पर आपको उस तक पहुंचने से जुड़ी समझ विकसित करनी होती है।
क्या करें: सेल्फ असेस्मेंट करियर मैनेजमेंट का एक बहुत जरूरी पक्ष है। इसके आधार पर आप अपने हुनर, क्षमताओं, अपने मजबूत पक्षों और लक्ष्य प्राप्ति करने की अपनी क्षमता का आकलन करते हैं। इन पक्षों के आधार पर आप अपनी भावी योजना भी तैयार करते हैं। भावी योजना से मतलब प्रोफेशन या करियर के रूप में वह रास्ता चुनना है, जिस पर आप भविष्य में चलना चाहते हैं। यहां जरूरी होता है कि करियर से जुड़ी अपनी पहली पसंद के अलावा भी अन्य कुछ रास्ते खुले रखे जाएं। यदि करियर के रूप में अपनी पहली पसंद से आप संतुष्ट नहीं हैं या कुछ समय बाद आपको उसकी सीमा का अंदाजा होता है तो आपके पास बैकअप प्लान तैयार रहना चाहिए। इसके बाद बारी आती है सेल्फ डेवलपमेंट की। यहां आपको उपरोक्त योजना की कमियों को दूर करना होता है। उदाहरण के लिए यदि आप किसी क्षेत्र विशेष में काम करना चाहते हैं तो उससे जुड़े प्रशिक्षण आदि को प्राप्त करने के लिए आपके पास समुचित जानकारी होनी चाहिए। अपने लिए करियर्स की सूची बनाने के बाद उनसे जुड़े हुनर प्राप्त करने के लिए जरूरत होती है उन क्षेत्रों में व्यापक रिसर्च करने की। आपके शोध का आधार होना चाहिए चुने गए करियर क्षेत्र की सीमाओं को जानना। यह जानना कि क्या आपके कार्य क्षेत्र की भविष्य में मांग रहेगी? क्या इस कार्य क्षेत्र में विस्तार की गुंजाइश भी होगी?
एक्शन: उपरोक्त आधार पर काम शुरू करने के बाद अगला कदम स्वत ही एक कार्यकारी पद्धति का विकास करना होता है। कागज पर अपनी भावी योजना को उकेरें। कार्यकारी पद्धति या एक्शन प्लान को अमल में लाने का सबसे कारगर तरीका होता है अपने लिए छोटे-छोटे लक्ष्य तय करना। एक बार छोटे लक्ष्य तय करने के बाद हमारे सामने अपने वृहद लक्ष्य को प्राप्त करने से जुड़ी तस्वीर साफ होती जाती है। छोटे लक्ष्य बड़े मकसद का आधार बनते हैं। यहां जरूरी है अपनी गतिविधियों पर नजर रखना और यह जानना कि आप सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं या नहीं।
युवा कर्मचारी: युवा कर्मियों के लिए करियर मैनेजमेंट को करियर डेवलपमेंट के विचार से जोड़ कर देखा जा सकता है। उन्हें स्पष्ट करना होता है कि वह एक जॉब की उम्मीद कर रहे हैं या करियर की नींव डाल रहे हैं। इसके लिए उन्हें कुछ तैयारियों की जरूरत होती है। जैसे कि उन्हें अपनी जॉब का कौन-सा पक्ष नापसंद है या अपने करियर के किस हिस्से को वह सबसे अधिक पसंद करते हैं? शुरुआत में यह पहेली सुलझाना आसान नहीं होता। अधिकांश व्यक्ति इस पहेली में मार्ग से भटक जाते हैं। सिर्फ एक स्पष्ट योजना इस सवाल का जवाब बन सकती है। यहां आशय करियर गाइडेंस से भी है, जो अन्य बातों के साथ-साथ करियर और निजी जीवन में भी संतुलन स्थापित करने में भूमिका निभाती है।
परिभाषा करियर की: आधुनिक संदर्भ में करियर की परिभाषा को समझना जरूरी है। दरअसल करियर के दायरे में रोजगार के सभी पक्ष आते हैं। सेमी-स्किल्ड से लेकर स्किल्ड तक और सेमी-प्रोफेशनल से लेकर पूर्ण प्रोफेशनल तक। साथ ही करियर के दायरे में किसी व्यक्ति का अपने समूचे कार्यकाल में किसी एक प्रोफेशन, बिजनेस फर्म या किसी हुनर पर काम करना भी आता है। हालांकि पिछले कुछ समय में करियर की कथित परिभाषा में विस्तार करते हुए निकट व सुदूर भविष्य रोजगार में परिवर्तन या स्थानांतरण को भी शामिल किया गया है। एजेंसी