आज हमारे पास कोरोना से बचाव की वैक्सीन उपलब्ध हैं । कोरोना की वैक्सीन के लिये महाअभियान और टीका उत्सव भी देश में जारी है। वहीं तस्वीर का दूसरा रूख यह कि कोरोना की दूसरी लहर का कहर दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। पहली लहर से निपटने के बाद ये लगने लगा था कि अगर दूसरी लहर आएगी तो उससे आसानी से निपट लिया जाएगा। लेकिन दूसरी लहर के सामने सारी व्यवस्थाएं कम पड़ती दिख रही हैं।
चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े अनुभवी लोग भी कोरोना की बदले हुए रूप को लेकर भ्रमित है। संक्रमण की तीव्रता मरीज और डाक्टर दोनों का बचाव और संभलने का अवसर ही नहीं दे रही है, नतीजन मौत का आंकड़ा लगातार बढ़त की ओर है। नयी लहर के पीछे हम सब और सारी व्यवस्था कसूरवार है। लेकिन अब इन बातों पर विचार करने का समय अब बीत चुका है। अब सामने खड़ी समस्या पर विचार करना ही श्रेयस्कर होगा। एक साल से कोरोना को झेलते और इसकी विभीषिका को जानते हुए भी आम आदमी बचाव के नियम नहीं मान रहा है, ये बड़ा दुखद पहलू है।
वास्तव में जब कोरोना की पहली लहर आई तो सरकार ने सख्त कदम उठाते हुए पूर्ण लॉकडाउन लगा दिया। हमारे देश में उतने मामले नहीं आए, जितने आने चाहिए थे। दूसरे देशों ने भी भारत की सराहना की। लेकिन जब लॉकडाउन हटा तो लोगों की आवाजाही खूब बढ़ी। एक तो हम घनी आबादी वाले देश हैं, दूसरा यहां लोकतंत्र है।
इसलिए लोगों की आवाजाही और आयोजनों को जबरन रोका नहीं जा सकता। जब लॉकडाउन हटा तो लोगों को लगा कि कोरोना चला गया। शादी-ब्याह, दूसरे उत्सव मनाए जाने लगे। हजारों-लाखों की भीड़ जुटने लगी। इसलिए दूसरी लहर आई तो ज्यादा तीव्रता के साथ आई।
दुनिया में आबादी के लिहाज से हमारा नम्बर दूसरा है। 135 करोड़ की आबादी को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करा पाना किसी भी सरकार के बूते की बात नहीं है। कोरोना वायरस की रोकथाम को लेकर किये जा रहे तमाम उपाय अब दम तोड़ते दिख रहे हैं। अस्पतालों में बिस्तर कम पड़ने से लाखों लोगों को मजबूरन घरों में रहकर इलाज करवाने को बाध्य किया जा रहा है।
तस्वीर का सुखद पहलू यह है कि कोरोना की दूसरी लहर के समानांतर टीकाकरण देशभर में जारी है। अब देशवासियों में टीके के प्रति व्याप्त प्रारंभिक हिचक भी खत्म हो गई है। लेकिन इस सबसे अलग बात है हमारी अपनी सोच। क्योंकि कोरोना का जो नया रूप आया है उसके फैलने के पीछे हमारी अपनी लापरवाही बड़ी वजह है। ये कहना कहीं से भी गलत न होगा कि संक्रमण की पहली लहर की वापिसी का एहसास होते ही जिस तरह की लापरवाही देखने को मिली उसका ये नतीजा होना स्वाभाविक ही था। बीते कुछ दिनों से जो आंकड़े आ रहे हैं उनकी वजह से भय का माहौल तो है लेकिन अब भी बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो स्थिति की गम्भीरता को समझने से दूर भाग रहे हैं।
बीते 24 घण्टे में कोरोना का दूसरा हमला यदि शुरूआत में ही तेज हो गया तो उसके पीछे ऐसे ही लोग हैं जिनको न अपनी चिंता है और न अपने परिवार की। मौजूदा हालातों में सरकार और चिकित्सा जगत जो कर रहे हैं उनमें ढेर सारी खामियां हैं जिनकी आलोचना करने बैठें तो समय कम पड़ जाएगा। लेकिन ऐसे समय में जनता का अनुशासित होना सबसे ज्यादा जरूरी है। जिन देशों के लोगों ने कोरोना से जुड़े अनुशासन का पालन किया वहां हालात काबू में बने रहे। दूसरी ओर अनेक विकसित देशों में लोगों को अपने यहां की चिकित्सा सुविधा पर बड़ा घमंड था। इसलिए वे बेहद लापरवाह रहे जिसकी वजह से वहां मौत का तांडव हुआ।
फिलवक्त जो टीका लगाया जा रहा है वह भी कोविड-19 पर तो कारगर था किन्तु उसके नए रूप पर उसका कितना असर होगा इस पर चिन्तन-मंथन चिकित्सा जगत में जारी है। लेकिन एक बात जो दुनिया भर के विशेषज्ञों ने स्वीकार की है और वह यह है कि बचाव के परम्परागत तरीकों से कोरोना को हराने में सफलता मिल सकती है। विषम हालातों के बीच भी मीडिया के माध्यम से ऐसी तस्वीरें और खबरें सामने आ रही हैं कि देश में अभी भी बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जिनके लिए उक्त सभी उपाय फालतू की चीजें हैं। ये हालात तब हैं जब देश में प्रतिदिन डेढ लाख से अधिक कोरोना संक्रमित सामने आ रहे हैं। और आठ सौ से ज्यादा जानें ये घातक वायरस ले रहा है।
देश में बने टीके के कारण आम जनता का आत्मविश्वास भी बढ़ा। लेकिन उसके अति आत्मविश्वास में बदल जाने से लौटती हुई मुसीबत के कदम वापिस घूम पड़े और जब तक हम कुछ समझ और संभल पाते उसने हमें चारों तरफ से घेर लिया। एक तरफ तो टीकाकरण चल रहा है दूसरी तरफ संक्रमण दोगुनी और चौगुनी ताकत से हमला करने पर आमादा है। ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि हर व्यक्ति इस विषम परिस्थिति में बजाय भयभीत होने या व्यवस्था को कोसते रहने के अपनी प्राण रक्षा के लिए जो वह खुद कर सकता है, उतना तो करे ही।
महामारी विशेषज्ञ पद्मश्री डॉक्टर रमन गंगा खेडकर का कहना है कि अगर कोरोना से बचाव के लिए जारी गाइडलाइन को देश के 95 फीसदी लोग मानेंगे, तो मेरे ख्याल से दो हफ्ते में हम इससे उबर सकते हैं, लेकिन हमने अगर मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग की गाइडलाइन को नहीं माना तो फिर दूसरी लहर कितना कहर बरपाएगी, कुछ नहीं कहा जा सकता। लॉक डाउन लगे या न लगे लेकिन ये मानकर चलना चाहिए कि कोरोना नामक मुसीबत से छुटकारा पाने में अभी समय लगेगा और तब तक छोटी से भी लापरवाही बड़े नुकसान का कारण बन सकती है। पिछली बार लॉकडाउन अचानक से लगाना पड़ गया था, मगर साल भर में सरकार कोई वैकल्पिक प्लान नहीं बना पाई, ये भी दुखद पहलू है।
राजेश माहेश्वरी
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।