नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। देशद्रोह कानून मामले पर पिछले दो दिनों से सुप्रीम कोर्ट में लगातार सुनवाई चल रही है। केन्द्र सरकार ने कल कोर्ट में कहा था कि वो राजद्रोह कानून में बदलाव को लेकर जांच के लिए तैयार है। लेकिन इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने इस कानून का बचाव किया था। इस बीच आज सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर केन्द्र सरकार से बुधवार तक अपना जवाब देने को कहा है। उच्चतम न्यायालय के समक्ष सरकार को बताना होगा कि इस कानून को रोका जा सकता है और इस कानून की समीक्षा के दौरान इसके तहत आरोपियों की रक्षा की जा सकता है? यानि अदालत ने सरकार से पूछा है कि जब तक केंद्र सरकार इस कानून की समीक्षा करे, तब तक उन लोगों के केस का क्या होगा, जो देशद्रोह कानून के तहत आरोपी हैं। इसके अलावा फैसला आने तक इस तरह के नए मामले दर्ज होंगे या नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान उन लोगों पर भी चिंता व्यक्त की जो पहले से ही देशद्रोह के आरोपों के तहत जेल में बंद हैं।
क्या है देशद्रोह
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि देशद्रोह क्या है? सरकार का लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करना या बदलाव की मांग करना हर नागरिक का अधिकार है लेकिन देश की सत्ता को गैरकानूनी तरीके से चुनौती देना देशद्रोह की कैटिगरी माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के वकील डी. बी. गोस्वामी ने बताया कि देश-विरोधी गतिविधियों में शामिल संगठन को बैन कर दिया जाता है। इसके तहत ही माओवादी और दूसरे अलगाववादी संगठनों को बैन किया गया है। आमतौर पर ऐसे संगठनों से संबंध रखनेवालों के खिलाफ देशद्रोह या इससे संबंधित धाराओं के तहत केस दर्ज होता है। हालांकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि आरोपी का अपराध किस तरह का है।
आईपीसी की धारा-121 में देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने वालों (आतंकवादी गतिविधियों में शामिल) को सजा दिए जाने का प्रावधान है। अगर कोई शख्स भारत के खिलाफ युद्ध करता है या ऐसी कोशिश करता है या ऐसे लोगों को बढ़ावा देता है तो उम्रकैद से लेकर फांसी तक की सजा हो सकती है। वहीं ऐसे किसी अपराध के लिए साजिश रचने पर धारा-121 ए के तहत सजा दी जाती है, जो 10 साल या अधिकतम उम्रकैद हो सकती है। यह जानना जरूरी है कि अनजाने में भी किसी को ऐसे संगठन या ऐसी विचारधारा वाले लोगों से संपर्क नहीं रखना चाहिए। ऐसे लोगों के साथ किसी भी तरह की सांठगांठ रखनेवालों को इस मामले में दोषी करार दिया जा सकता है।
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