14 साल जेल की सजा काटने व मौत के पांच साल बाद माथे से मिटा देशद्रोह का कलंक

Calcutta High Court
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देशद्रोह मामले में उम्रकैद की 14 साल की सजा काट रहे तीन लोगों को कलकत्ता हाईकोर्ट ने बरी कर दिया। इनमें से एक की मरने के पांच साल बाद देशद्रोह के कलंक से मुक्ति मिली

कोलकाता एजेंसी। देशद्रोह के मामले में 14 साल से उम्रकैद की सजा काट रहे तीन लोगों को कलकत्ता हाईकोर्ट ने बरी कर दिया। इनमें से एक की मौत हो चुकी जिन्हें मरने के पांच साल बाद देशद्रोह के कलंक उन्हें मुक्ति मिली है। तीनों को निचली अदालत ने 2005 में देशद्रोह के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

निचली अदालत के इस फैसले को 2006 में कलकत्ता हाईकोर्ट में चुनौती दी गई

इसके बाद निचली अदालत के इस फैसले को 2006 में कलकत्ता हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। हालांकि इस मामले पर फैसला आने से पहले ही निचली अदालत में दोषी करार सुशील राय की मौत 2014 में हो गई। हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव बनर्जी व जस्टिस शुभ्रा घोष की खंडपीठ ने शुक्रवार तो तीनों को देशद्रोह के आरोपों से मुक्त कर दिया।

गौरतलब है कि सुशील राय, पतितपावन हल्दर व संतोष देवनाथ को राज्य के कभी माओवाद प्रभावित जंगलमहल के झाड़ग्राम से गिरफ्तार किया गया था। उन पर आम लोगों को सरकार के खिलाफ हथियार उठाने के लिए उकसाने का आरोप लगा था। निचली अदालत में दोषी करार दिए गए तीनों के अधिवक्ता अम‌र्त्य घोष के अनुसार उनके मुवक्किलों के पास से कुछ माओवादी साहित्य व अन्य सामग्रियां बरामद हुई थीं, लेकिन हथियार नहीं मिले थे।

तीनों के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि उनके मुव्वकिलों को पुलिस ने देशद्रोह व आ‌र्म्स एक्ट के झूठे मामले में फंसाया था, जबकि पुलिस का दावा किया था कि उन लोगों के हुगली स्थित किराए के मकान से पास जिलेटिन स्टीक के साथ .303 की राइफल बरामद हुई थी।

पुलिस के दावों को खारिज करते हुए प्रतिवादी पक्ष के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि जहां से हथियारों की बरामदगी हुई थी, वहां उनके मुवक्किलों के रहने के कोई कागजी सबूत नहीं है। इधर वादी पक्ष के सरकारी अधिवक्ता एन अहमद ने इन तमाम दावों को खोखला बताते हुए दोषी करार दिए गए तीनों को हार्डकोर माओवादी बताया। हालांकि दोनों पक्षों की दलील सुनने व पुलिस द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य व गवाहों की बातें सुनने के बाद खंडपीठ ने तीनों को सभी आरोपों से बरी कर दिया।

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