एक समय की बात है एक शरीफ आदमी था। उसके पास एक बंदर था, वह बंदर के जरिए अपनी आजीविका कमाता था। बंदर कई तरह के करतब लोगों को दिखाता था। लोग उस पर पैसे फेंकते थे, जिसे बंदर इकट्ठा करके अपने मालिक को दे देता था। एक दिन मालिक बंदर को चिड़ियाघर लेकर गया, बंदर ने वहां पिंजरे में एक और बंदर देखा। लोग उसे देख- देख कर खुश हो रहे थे तथा उसे खाने को फल बिस्किट इत्यादि दे रहे थे। बंदर ने सोचा कि पिंजरे में रहकर भी यह बंदर कितना भाग्यवान है, बिना किसी परिश्रम के ही इसे खाना-पीना मिल जाता है। उस रात वह बंदर भी भागकर चिड़ियाघर में रहने पहुंच गया, उसे मुफ्त का खाना और आराम बहुत अच्छा लगा। पर कुछ दिनों में ही बंदर का मन भर गया। उसे अपनी स्वतंत्रता की याद आने लगी, अपनी आजादी वापिस चाहता था।
वह फिर चिड़ियाघर से भागकर अपने मालिक के पास पहुंच गया। उसे मालूम हो गया की रोटी कमाना कठिन होता है, किंतु आश्रित होकर पिंजरे में कैद रहना उससे भी कठिन है। अपने पौरुष से ही मनुष्य की महानता है, मुफ्त की चीजें लोगों को निक्कमी बना देती है। ‘जिंदगी तो अपने दम पर जिया जाता है यारों, दूसरों के कांधों पर तो सिर्फ जनाजे निकलते हैं।’
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter, Instagram, LinkedIn , YouTube पर फॉलो करें।