गत 3 नवम्बर को हुए कर्नाटक उपचुनावों में भाजपा की उम्मीदों को जबरदस्त झटका लगा है। तीन लोकसभा और दो विधानसभा सीटों पर हुए इन उपचुनावों में कांग्रेस-जेडीएस 4 सीटों पर जबकि भाजपा केवल एक सीट पर विजय पताका लहराने में सफल हो सकी। अगले वर्ष होने जा रहे लोकसभा चुनावों और चंद दिनों के भीतर हो रहे पांच विधानसभा चुनावों के मद्देनजर भाजपा के लिए यह एक बड़ा आघात है। हालांकि उपचुनावों का असर इतना व्यापक नहीं माना जाता किन्तु पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले उपचुनावों के परिणामों को कमतर भी नहीं आंका जा सकता। प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुके कर्नाटक उपचुनाव में कांग्रेस-जेडीएस को मिली बम्पर जीत को दिवाली बोनस बताया जा रहा है, वहीं गठबंधन के इस बेहतरीन प्रदर्शन से भाजपा के लिए मुश्किल हालात पैदा हो गए हैं। भाजपा केवल अपनी ही शिमोगा सीट को बरकरार रखने में सफल रही है लेकिन उसे भाजपा का गढ़ मानी जाने वाली दूसरी लोकसभा सीट बेल्लारी गंवानी पड़ी और विधानसभा की दोनों सीटों पर भी हार का मुंह देखना पड़ा।
1999 में सोनिया गांधी ने भाजपा की सुषमा स्वराज को बेल्लारी में परास्त किया था किन्तु 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा कांग्रेस से यह सीट छीनने में सफल रही थी और तभी से वह इस सीट पर काबिज थी लेकिन पूरे 14 साल बाद कांग्रेस अब भाजपा यह किला ढ़हाने में सफल हो गई है, इसलिए कांग्रेस की यह एक बड़ी सफलता मानी जा रही है। इससे एक ओर जहां कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सफलता पर मोहर लगी है, वहीं भाजपा के घटते प्रभाव का भी स्पष्ट संकेत मिलता है। मांडया लोकसभा सीट पर जनता दल (एस) उम्मीदवार ने जीत दर्ज की और दो विधानसभा सीटों जमखंडी तथा रामनगरम पर भी क्रमश: कांग्रेस व जेडीएस अपना कब्जा बरकरार रखने में सफल रहे। बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को कर्नाटक की कुल 28 सीटों में से 17 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि कांग्रेस को 9 तथा एच डी कुमारस्वामी की जेडीएस को 2 सीटें मिली थी। फिलहाल जिन पांच सीटों पर उपचुनाव हुए, उनमें से 4 सीटें इस्तीफा दिए जाने के कारण और एक सीट विधायक के निधन के बाद खाली हुई थी। जामखंडी सीट से कांग्रेस विधायक सिद्दू न्यामगौड़ा का निधन हो गया था जबकि रामनगरम सीट सीएम कुमारस्वामी के इस्तीफे के बाद, बेल्लारी सीट भाजपा के श्रीमुलु, शिमोगा सीट भाजपा के बी एस येदियुरप्पा तथा मांडया सीट कांग्रेस के सी एस पुद्दाराजू के इस्तीफे के बाद खाली हुई थी।
बेल्लारी लोकसभा क्षेत्र खनन उद्योग के विवादित रेड्डी बंधुओं का मजबूत गढ़ माना जाता है, जहां कांग्रेस उम्मीदवार वी एस उगरप्पा ने भाजपा प्रत्याशी जे. शांता को 243161 मतों के बड़े अंतर से पराजित किया जबकि मांड्या लोकसभा सीट पर जेडीएस के एल आर शिवरामेगौड़ा ने रिकॉर्ड 324943 वोटों के अंतर से भाजपा उम्मीदवार को हराकर बाजी मारी। शिमोगा लोकसभा सीट भाजपा के दिग्गज नेता बी एस येदियुरप्पा का गढ़ मानी जाती है, जहां उन्हीं के पुत्र भाजपा प्रत्याशी बीवाई राघवेंद्र जेडीएस के मधु बंगारप्पा को 52148 वोटों के अंतर से हराने में सफल रहे। रामनगरम विधानसभा सीट से मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की पत्नी अनिता कुमारस्वामी जबकि जामखंडी विधानसभा सीट से कांग्रेस के आनंद सिद्दू न्यामागौड़ा ने भाजपा प्रत्याशियों को परास्त कर शानदार जीत दर्ज की।
इन परिणामों से कर्नाटक में तो कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी ही, 2019 के आम चुनावों के लिए भी गठबंधन को नई ऊर्जा मिलने की संभावनाएं जताई जाने लगी हैं। लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन की ताकत, गठबंधन की पार्टियों का आपसी तालमेल और जनता पर गठबंधन की राजनीति का असर भी देखने को मिला है, जो आने वाले दिनों में कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है। राजनीतिक हलकों में कयास लगाए जाने लगे हैं कि आगामी लोकसभा चुनावों के दौरान गठबंधन की राजनीति को और आगे बढ़ाने में कांग्रेस को अब अपेक्षित मदद मिलेगी। मुख्यमंत्री कुमारस्वामी तो उपचुनावों में जीत के बाद कह भी चुके हैं कि लोकसभा चुनाव भी दोनों पार्टियां मिलकर लड़ेंगी। उपचुनावों में हालांकि बेल्लारी को छोड़कर शेष सभी चारों सीटों पर भाजपा, कांग्रेस व जेडीएस ने पूर्ववत पकड़ बनाए रखी है लेकिन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के चुनावी माहौल में कर्नाटक में कुल पांच में से चार सीटों पर भाजपा का हार जाना उसके लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता। उपचुनाव परिणामों ने भाजपा की विधानसभा में ताकत बढ़ाने की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। उपचुनाव के बाद 224 सदस्यीय कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस-जेडीएस के विधायकों की संख्या अब 120 हो गई है जबकि भाजपा के पास कुल 104 विधायक हैं।
निश्चित रूप से कांग्रेस अब इन परिणामों को आसन्न चुनावों में अपने पक्ष में भुनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ेगी किन्तु भाजपा के लिए यह एक बड़ी चेतावनी है और चुनाव परिणामों के बाद कर्नाटक में पार्टी के वरिष्ठतम नेता बी एस येदियुरप्पा ने भाजपा की स्थिति स्पष्ट भी कर दी है कि नतीजे भाजपा के लिए चेतावनी है और पार्टी को सही दिशा में काम करने की जरूरत है। बीते कुछ सालों में विभिन्न राज्यों में हुए उपचुनावों में अधिकांश में नतीजे भाजपा के पक्ष में नहीं रहे हैं। पिछले साढ़े चार वर्षों में भाजपा को 10 चुनावों में पराजय का मुंह देखना पड़ा है। कर्नाटक उपचुनाव में तो पराजय का सामना करने के बाद भाजपा के माथे पर चिंता की लकीरें उभरना स्वाभाविक ही है क्योंकि चंद ही दिनों में पांच राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं और कर्नाटक उपचुनावों के नतीजों का कुछ असर तो इन विधानसभा चुनावों पर भी पड़ना तय माना जा रहा है।
बहरहाल, कर्नाटक के नतीजों से एक बात तो साफ हो गई है कि कांग्रेस अगर भाजपा विरोधी दलों के साथ गठबंधन के अपने प्रयत्नों में सफल हो जाती है तो आम चुनावों में वह भाजपा पर भारी पड़ सकती है और उपचुनाव के नतीजों के बाद महागठबंधन की सोयी हुई उम्मीदों को फिर बल मिलने लगा है। भाजपा के लिए चिंता की स्थिति इसलिए भी बनती जा रही है कि जिन मुद्दों को लेकर कांग्रेस को घेरते हुए देशभर में कांग्रेस विरोधी माहौल बनाकर उसने 2014 का लोकसभा चुनाव जीता था, आज वही मुद्दे उसके गले की फांस बनते जा रहे हैं। आतंकवाद, पाकिस्तान, महंगाई, पैट्रोल-डीजल व रसोई गैस की कीमतें, किसानों की समस्याएं, भ्रष्टाचार इत्यादि जिन मुद्दों को लेकर पिछले चुनाव में भाजपा आक्रामक थी, भाजपा नेताओं के उन्हीं पुराने बयानों को लोग अब सोशल मीडिया पर वायरल कर पार्टी से सवाल पूछ रहे हैं कि इन सभी मुद्दों का क्या हुआ और भाजपा की विड़म्बना यह है कि उसके पास साढ़े चार साल सत्ता में रहने के बावजूद इनमें से किसी भी सवाल का कोई स्पष्ट जवाब नहीं है। अब देखना होगा कि भाजपा इस नुकसान की पूर्ति के लिए किस प्रकार की रणनीति बनाती है।
योगेश कुमार गोयल
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