वैश्विक स्तर पर वित्तीय मामलों में परामर्श देने वाली संस्था गोल्डमैन शश के प्रमुख कार्यकारी निदेशक जिम-ओ-नील ने 2001 में अपने एक लेख में लिखा था कि ब्राजील, रूस, भारत और चीन (बीआरआईसी) की अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत होगी कि साल 2050 तक यह देश दुनिया के आर्थिक ढांचे का निर्धारण करते दिखेगें। अब अठारह साल के बाद निर्धारित अंतराल से ब्राजील, रूस, भारत, चीन और (बाद में) दक्षिण अफ्रीका जैसे बड़े और तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश के नेताओं का एक ऐसे मंच पर एकत्रित होना जो दुनिया की कुल पूंजी निवेश के 53वें हिस्से पर काबीज है, जिम-ओ-नील की भविष्यवाणी को सच करने वाली घटना के रूप में दिखा रहा है। ब्राजील की राजधानी ब्रासीलिया में आयोजित ब्रिक्स देशों की ग्यारवीं बैठक ऐसे समय में हो रही है, जबकि वैश्विक जगत भारी उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। हालांकि शिखर सम्मेलन का आधार वाक्य ’नवोन्मेषी भविष्य के लिए आर्थिक वृद्घि’ इस दिशा में संतुलन का एक अहम बिंदू हो सकता है।
ब्राजील, रूस, भारत, और चीन के वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार के साझे प्रयासों को अंतरराष्ट्रीय राजनीति में ’ब्रिक’ के नाम से जाना जाता है। साल 2010 में दक्षिण अफ्रीका के सम्मिलित हो जाने से ’ब्रिक’ ’ब्रिक्स’ में बदल गया। दक्षिण अफ्रीका के आगमन और पहली दफा ब्रिक नेताओं की बैठक में सम्मिलित होने से ब्रिक्स का कद और बढ गया। ब्रिक्स बैठकों के भीतर लिये जाने वाले किसी भी निर्णय का प्रभाव केवल इन्हीं पांच सदस्य देशों तक सीमित नहीं रहता है, बल्कि आज ब्रिक्स के निर्णयों से पूरी दुनिया प्रभावित होती है। ब्रिक्स देशोंं के हित एक दूसरे से जुडेÞ हुए हैं और यह पूरी दुनिया पर निगाह रखने वाले मंच के रूप में उभर रहा है। लीबिया को ’नो फलाई जोन’ घोषित करने की पश्चिमी कार्रवाई का जोरदार ढंग से विरोध करके ब्रिक्स ने विश्व जगत को चेता दिया कि ब्रिक्स अपने कद के अनुरूप अपने दायत्वि और शेष विश्व के प्रति अपनी जिम्मेदारी को बहुत अच्छे से महसूस करता है।
ब्रिक्स की पहली शिखर बैठक 16 जून 2009 को रूस में हुई थी। आज पांचों ब्रिक्स देश विश्व की कुल 43 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं और 25 फीसदी भूभाग पर काबिज है। दुनिया भर के कुल पूंजी निवेश का 53 फीसदी हिस्सा इन्हीं पांच देशों में लगा हुआ है। विश्व का 18 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद और कुल व्यापार का 15 फीसदी हिस्सा इन्हीं देशों में होता है। वर्तमान में ब्रिक्स देशों के बीच 230 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार होता है, जो पिछले दशक में 28 प्रतिशत की तीव्र गति से बढा है। ब्रिक्स की अपनी एक विशिष्ट पहचान है। यह चार अलग-अलग महाद्वीपों में स्थित पांच बडेÞ देशों का मंच है। सभी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले लोकतांत्रिक देश है। इनके सदस्य देशों में सहयोग और मतभेद के स्वर साथ-साथ उभरते रहे हैं। ब्राजील, भारत और दक्षिण अफ्रीका पारम्परिक मित्र है। इब्सा के माध्यम से इनकी मित्रता अनेक अवसरों पर प्रकट हो चुकी है।
दूसरी तरफ इसमे भारत-चीन जैसे विरोधी विचारधारा वाले राष्ट्र भी हैं। ब्रिक्स की बड़ी विशेषता यही हैकि इसके सदस्य देश हजार मतभेदों के बावजूद साथ-साथ कम कर रहे हैं। इसकी सफलता का सूत्र विचारधारा और सहयोग के क्षेत्र को लगातार बढ़ाते रहना है। इसी सूत्र के आधार पर ब्रिक्स बहुस्तरीय सहयोगी ढांचा विकसित करने में सफल हुआ है। ब्रिक्स देशों ने डॉलर के स्थान पर अपनी स्थानीय मुद्रा में ही एक दूसरे को ऋण के आदान-प्रदान और अनुदान के लेन-देन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर सहमति व्यक्त की है। 1998 में जब रूस के प्रधानमंत्री प्रिमाकोव ने रूस, चीन व भारत के मध्य त्रिकोणीय सामरिक गठबंधन बनाने के विचार को व्यक्त किया तब सम्पूर्ण विश्वजगत ने इसे केवल काल्पनिक आदर्शवाद और अव्यवहारिक सुझाव बताकर अस्वीकृत कर दिया था। यह भी कहा गया था कि यह एक ऐसी कल्पना है जिसे यर्थाथ में लागू नहीं किया जा सकता है।
परन्तु मई 2018 में रूस के येकेटरिनबर्ग में सम्पन्न ब्रिक सम्मेलन ने यह स्पष्ट कर दिया कि विश्व राजनीति में नवीन गठबधनों के लिए अभी भी प्रयाप्त गुंजायश है। ब्रिक के पूर्व सम्मेलनों ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि रूस, चीन व भारत का आपसी सहयोग यूरोप व एशिया की सीमाओं से बाहर निकलकर न केवल अन्य क्षेत्रों में विस्तृत हो रहा है अपितु धीरे-धीरे अपने वैश्विक स्वरूप को ग्रहण करता जा रहा है। अब ब्रिक से साऊथ अफ्रीका भी जुड़ चुका है। तुर्की, मैक्सिको, नाइजीरिया, इंडोनेशिया और वियतनाम कतार में खडेÞ है। निकट भविष्य में ब्रिक जी-8 को चुनौती देने अथवा उससे सकारात्मक प्रतिस्पर्धा करने की स्थिति में आ जाएगा इसमें संदेह नहीं हैं।
ब्रिक्स का हर एक सदस्य ऊ र्जा विशेषज्ञता को प्राप्त किये हुए है। ब्राजील जैव ईंधन में, दक्षिण अफ्रीका कोयले द्वारा तरल प्रौद्योगिकी ’सीटीएल’ बनाने में और भारत को ऊर्जा के नए-नए स्रोत विकसित करने मेें मुहारत हासिल है। रूस सैन्य उत्पाद का सबसे बड़ा उद्योग है। चीन कृषि, आई टी, आॅयल व आॅटो मोबाईल के क्षेत्र में सिरमौर है। पांचों ही देशों की आर्थिक हैसियत इतनी तेजी से उभर कर आई है कि अमेरिका सहित किसी भी महाशक्ति के लिए इनकी अनदेखी करना संभव नहीं है। इस बार भारत से उद्योगपतियों का एक बडा प्रतिनिधिमंडल भी ब्रिक्स सम्मेलन मे मौजूद रहेगा। ये प्रतिनिधिमंडल ब्रिक्स बिजनेस फोरम में विशेष रूप से शिरकत करेगा। भारत के साथ-साथ सभी पांच देशों के कारोबारी भी सम्मेलन में मौजूद रहेगे। पीएम नरेन्द्र मोदी इस दौरान ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने के साथ-साथ चीन और रूस के राष्ट्रपति से मुलाकात करेंगे।
मोदी छठी दफा ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शिरकत कर रहे है। पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच एक महीने के अंदर दूसरी मुलाकात होगी। हाल में दोनों नेता महाबलीपुर में मिले थे। ये उम्मीद की जा रही है कि पीएम मोदी और शी जिनपिंग की इस मुलाकात में भारत-चीन व्यापार को लेकर बातचीत आगे बढ़ सकती है। ब्रिक्स की प्रस्तावित शिखर बैठक में यूएनओ के काम काज में व्यापक सुधार और सुरक्षा परिषद को नया रूप देने की वैश्विक मांग पर चर्चा हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय मसलों पर आपसी सहयोग, उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में उतार-चढाव को नियंत्रित करने, जलवायु परिर्वतन, द्विपक्षीय वार्ताओं के दौर को पुन: आरम्भ करने और वाणिज्य मंत्रियों की बैठकों को नियमित करने और टिकाऊ विकास के उपाय तलाशने जैसे मुद्दे पर भी ब्रिक्स देशों की इस बैठक में चर्चा हो सकती है। सदस्य देशों के बीच डिजिटल अर्थव्यवस्था, विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में संबंधों को मजबूत करने के साथ-साथ आतंकवाद के खिलाफ ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग बढाने के लिए तंत्र विकसित करने पर फोकस रहेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि ब्रिक्स की ताजा बैठक में उक्त मसलों पर सर्वसम्मती बन जाएगी।
लेखक: एनकके़ सोमानी
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