प्रदूषण रोकने के लिए सरकार व समाज दोनों सक्रिय हों

Air Pollution

दीपावली की रात में इंसान को बेहतर आबोहवा देने की सुप्रीम कोर्ट की उम्मीदों का दीप खुद ही इंसान ने बुझा दिया। शाम आठ बजे के बाद जैसे-जैसे रात गहरी हो रही थी, केंद्र सरकार द्वारा संचालित सिस्टम-एयर क्वालिटी ऐंड वेदर फोरकास्टिंग ऐंड रिसर्च अर्थात सफर के एप पर दिल्ली-एनसीआर का एआईक्यू (एयर क्वालिटी इंडेक्स) बदतर होता चला गया। साफ हो गया कि बीते वर्षों की तुलना में इस बार दीपावली की रात का जहर कुछ कम नहीं हुआ, कानून के भय, सामाजिक अपील, सबकुछ पर सरकार ने खूब खर्च किया, पर भारी-भरकम मेडिकल बिल देने को राजी समाज ने सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश के बाद भी समय, आवाज की कोई भी सीमा नहीं मानी। दुर्भाग्य यह है कि जब प्रधानमंत्री शून्य कार्बन उत्सर्जन जैसा वादा अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने कर रहे हैं, तब एक कुरीति के चलते राजधानी सहित समूचे देश में वह सब कुछ हुआ, जिस पर पाबंदी है, और उस पर रोक के लिए न ही पुलिस और न ही अन्य कोई निकाय मैदान में दिखा।

यदि यह समझा जा रहा है कि साल में दो-चार दिन और खासकर दीपावली पर पटाखे चलाने से प्रदूषण गंभीर रूप ले लेता है, तो यह समस्या का सरलीकरण है। यह विचित्र है कि पटाखों के इस्तेमाल को रोकने पर तो जरूरत से ज्यादा जोर दिया जा रहा है, लेकिन प्रदूषण फैलाने वाले अन्य कारकों, जैसे पराली के दहन, वाहनों-कारखानों से होने वाले उत्सर्जन और सड़कों एवं निर्माण स्थलों से उड़ने वाली धूल को रोकने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। दुर्भाग्य से यह एक माहौल बना दिया गया है कि प्रदूषण के लिए पटाखे ही सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। इसके चलते अदालतों से लेकर सरकारें तक पटाखों पर पाबंदी को लेकर मनमाने आदेश दे रही हैं। दोनों ही स्थितियों का सामना करने के लिए हमें दो बातों को समझना होगा, उन्हें अपने लोगों को प्यार से समझाना होगा। पहली बात, उत्तर भारत के मैदानी इलाके का भूगोल ऐसा है कि यह एक कटोरे के तल की तरह है।

यहां हवा कम चलती है। एक तरफ, हिमालय, पश्चिम में मरुस्थल और दक्षिण में ऊंचे पठार और विंध्य पर्वत हैं। इस क्षेत्र में अधिक धुआं पैदा करने वाले सभी प्रयोजनों को रोकना जरूरी है। दूसरी बात, हमें पर्यावरण की बात अपने सामाज के स्वभाव और संस्कृति के अनुरूप करनी होगी। यानी लोगों को यह जताना होगा कि हमारे त्योहार ही नहीं, हमारा जीवन और उसका आनंद भी प्रकृति के वैभव का हिस्सा है। हमें अपने उत्सवों में आनंद की मात्रा बढ़ानी होगी, जहरीले अट्टाहास को कम करना होगा। ऐसे में दीपावली पर पटाखों पर रोक को लेकर कुछ ज्यादा ही सख्ती बरती जाने लगी है, इसलिए यह आवश्यक है कि उनके निर्माण एवं उपयोग को लेकर कोई समग्र-सुविचारित नीति बनाई जाए, ताकि उत्सवों का उल्लास भी बना रहे और पटाखा उद्योग भी चौपट न होने पाए।

 

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और TwitterInstagramLinkedIn , YouTube  पर फॉलो करें।