नए वित्तीय वर्ष में प्रवेश करते समय देश की आर्थिक स्थिति संतोषजनक नहीं है। मुद्रा स्फीति विशेषकर खाद्यान्न महंगाई नियंत्रण में नहीं है जिसका सीधा प्रभाव समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों पर पड़ता है। देश में बेमौसमी बरसात देश के कुछ भागों में कम वर्षा और हीट वेव की भविष्यवाणी के चलते देश की कठिनाइयां और बढ़ने वाली हैं। वैश्विक आर्थिक स्थिति ने भी भारतीय आर्थिक परिदृश्य पर बुरा प्रभाव डाला है। अमरीकी मौसम एजेंसियों ने लगातार तीसरे माह इस बात की आशंका व्यक्त की है कि इस बार गर्मियों में अल नीनो प्रभाव पैदा हो सकता है। प्रशान्त महासागर में स्थितियों के बारे में नेशनल ओसिएनिक एंड एटमोसफेरिक एडमिनिस्टेशन से जुड़ी अमरीकी एजेंसियों ने 11 मार्च को जारी अपनी रिपोर्ट में अपनी पिछले दो माह की भविष्यवाणियों को दोहराया है जिसमें कहा गया कि इस वर्ष जुलाई-अगस्त में अल नीनो प्रभाव पैदा हो सकता है।
अल नीनो प्रभाव के पैदा होने का संकेत भारतीय मौसम विज्ञान के अधिकारियों सहित विशेषज्ञों ने भी व्यक्त किया है। उनका कहना है कि अगले माह इस बारे में स्पष्ट तस्वीर सामने आ जाएगी जब प्रशान्त क्षेत्र की स्थिति को भी ध्यान में रखा जाएगा। इस वर्ष अल नीनो प्रभाव पैदा होने की संभावना से देश में मानसून के मौसम में बरसात की स्थिति अच्छी रहने की संभावना नहीं है जिसके चलते खरीफ फसलों के उत्पादन पर प्रभाव पड़ेगा। जून-सितंबर मौसम के दौरान वर्षा की मात्रा पर कई अन्य कारकों का भी प्रभाव पड़ेगा जैसा कि हिन्द महासागर में नई स्थितियां, यूरेशिया में बर्फ, मौसम के बीच में उतार चढ़ाव आदि।
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क्लाइमेट ट्रेंड की रिपोर्ट के अनुसार मौसम की वर्तमन स्थिति धरती के तापमान में वृद्धि का परिणाम है। धरती के औसत तापमान में निरंतर वृद्धि से पश्चिमी विक्षोभ, अल नीनो सदर्न ओसिलेशन जैस स्थितियां देखने को मिल रही हैं। पश्मिी विक्षोभ का प्रभाव सामान्यता देश के पूर्वी भाग की ओर होता है। इसी तरह यदि बंगाल की खाड़ी में कोई स्थिति पैदा होती है और दोनों का टकराव पैदा होता है तो इसके चलते उत्तर-पूर्वी भारत में अच्छी बरसात होती है। किंतु मौसम विज्ञानियों का कहना है कि उत्तर बंगाल में पश्चिमी विक्षोभ का पर्याप्त प्रवाह देखने को नहीं मिल रहा है। स्काइमेट वैदर के अनुसार धरती के तापमान में वृद्धि के कारण पश्चिमी विक्षोभ हल्का होता जा रहा है और आर्कटिक हीट वेव बढ़ती जा रही है। जिसके चलते यह अधिक उंचाई वाले स्थानों की ओर बढ़ रहा है और इसका भारत के मौसम पर प्रभाव नहीं पड़ रहा है।
उल्लेखनीय है कि जलवायु परिवर्तन एक वास्तविकता बन गई है क्योंकि ठंडे क्षेत्र अब उतने ठंडे नहीं रह गए हैं तथा उत्तरी, मध्य, पश्चिमी और यहां तक कि पूर्वी भागों में भी गर्मी का मौसम बढ़ गया है और वहां तेजी से गर्मी पड़ रही है। इस वर्ष गर्मियों के मौसम में अत्यधिक गर्मी पड़ने और कम बरसात होने की संभावना है जिसके पिछले पांच वर्षों के औसत से कम रहने की संभावना है। अर्थव्यवस्था उच्च खाद्यान्न महंगाई का सामना कर रही है और प्रतिकूल जलवायु दशाओं के कारण भारत के कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। एक अन्य प्रवृति यह देखने को मिल रही है कि सरकारी व्यय में थोड़ी वृद्धि हुई है किंतु यह अभी भी महामारी पूर्व स्थिति में नहीं पहुंचा है। पूंजीगत व्यय भी उस स्तर तक नहीं पहुंचा है जिसके चलते रोजगार के अवसरों में वृद्धि की अतिरिक्त मांग का सृजन होता किंतु अच्छे मानसून की संभावना के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में मांग में वृद्धि की संभावना भी नहीं दिखाई दे रही है।
जीएसटी संग्रहण बैंक ऋण, दुपहिया वाहनों की बिक्री आदि की सामान्य वृिद्ध दर से भी प्रतिकूल संकेत मिल रहे हैं। आर्थिक पुररुद्धार भी समान नहीं है क्योंकि महामारी का प्रभाव घरों और व्यवसायियों पर समान नहीं पड़ा था। वैश्विक परिदृश्य से भारतीय अर्थव्यवस्था घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है और इसको नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। विकसित देशों में लंबे समय बाद मुद्रा स्फीति बढ़ रही है और भारत भी इससे अछूता नहीं है किंतु इस वर्ष अमरीका में ब्याज दरों में 500 मूलांकों की वृद्धि प्रमुख केन्द्रीय बैंकों द्वारा मौद्रिक स्थिति को सरल बनाने के लिए एक असाधारण कदम माना जा रहा है और यह बताता है कि सभी देशों में ऋण का स्तर बहुत अधिक है।
वृद्धि दर को आगे बढ़ाने के लिए घरेलू मांग की क्षमता भी संदेह में है। कृषि, खनन, सेवा और निर्माण क्षेत्रों में सुधार के बावजूद देश में उपभोक्ता मांग अपेक्षा से कम रही है। कारपोरेटों और बैंकों की स्वच्छ बैलेंस शीट के आधार पर निजी निवेश में वृद्धि और ढ़ांचागत सुधार तथा अनुकूल नीतियों को विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि में गिरावट द्वारा चुनौती दी जा रही है। अत: स्थिति बहुत उत्साहजनक नहीं है हालांकि राजनेता जी 20 की अध्यक्षता की शेखियां बघार रहे हैं। महत्वपूर्ण यह है कि देश की जनसंख्या के निचले स्तर के 40 प्रतिशत लोगों की आय स्तर में वृद्धि की जानी चाहिए।
यहां इस बात को दोहराए जाने की आश्यकता है कि सुरक्षा या एयरोस्पेस व्यय में वृद्धि या देश के समृद्धतम लोगों की संपत्ति मे वृद्धि या अरबपतियों की संख्या में वृद्धि महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि देश के संघर्षरत लोगों को जीवन और कार्यकलापों की मुख्य धारा में लाया जाना चाहिए। इस संबंध में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जाने चाहिए जिसमें मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के लिए आपूर्ति श्रृंखला में सुधार करना। भारत में आपूर्ति का प्रबंधन करने के लिए सेक्टरवार लक्षित प्रयास किए जाने चाहिए ताकि मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण रखा जा सके।
उदाहरण के लिए मुद्रा स्फीति का एक बड़ा कारक खाद्यान्नों के मूल्यों में वृद्धि है। सरकार को इस संबंध में अवसंरचना निर्माण के प्रयास करने चाहिए ताकि कृषि और कृषि व्यवसाय आपूर्ति श्रृंखला का इष्टतम उपयोग हो सके। किसानों को क्रेताओं से जोड़ने तथा दोनों के बीच वार्ता की सुविधा उपलब्ध कराकर बाजार लिंकेज विकसित किया जाना चाहिए। साथ ही रोजगार सृजन के लिए सेवा सेक्टर प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। सरकार अवसंरचना निर्माण और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों पर ध्यान दे रही है जो उचित भी है क्योंकि ये क्षेत्र सभी लोगों के लिए रोजगार के अवसर सृजित करते हैं। रिटेल, व्यापार, या सूचना प्रौद्योगिकी आदि सेवा क्षेत्र में विपुल संभावनाएं हैं इसलिए प्रोडक्ट लिंक इंसेटिव जैसी योजनाओं के विनिर्माण और सनराइज सेक्टर को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
ग्लोबल इनहाउस सेंटर की स्थापना करने के प्रयासों से सेवा क्षेत्र का पुनरुद्धार हो सकता है और इससे रोजगार के अवसर सृजित हो सकते हैं। इसके अलावा राजस्व के नए स्त्रोतों की तलाश की जानी चाहिए। सरकार को वैश्विक स्थितियों और वैश्विक आर्थिक मंदी के प्रभाव को कम करने के लिए व्यय में वृद्धि करनी चाहिए। व्यय के लिए संसाधन जुटाना एक चुनौती होगी इसलिए यदि अति समृद्ध लोगों पर एक या दो वर्ष के लिए उपकर लगाया जाए तो बेहतर होगा। कर राजस्व में वृद्धि हुई है। इसलिए सरकार को परिसंपत्तियों का मौद्रीकरण करना चाहिए ताकि वह 2023-24 मे अपने व्ययों को पूरा कर सके। सरकार को ऐसे राज्यों पर ध्यान देना चाहिए जहां पर मौद्रीकरण का बड़ा आधार है।
जब वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार आए तो भारत को अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए तैयार रहना चाहिए। सरकार को चालू अवसंरचना परियोजनाओं को पूरा करना चाहिए और उन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देना चाहिए जिनका सुदृढ़ लिंकेज हो और जिनका अलग अलग क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ता है। अनेक अवसंरचना परियोजनाओं में प्रगति अच्छी है। राजमार्ग नेटर्क में अभी गति नहीं आई है। विद्युत और उर्जा क्षेत्र में प्रगति सामान्य है।
इसके अलावा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों को सहायता देकर भारत समावेशी वृद्धि प्राप्त कर सकता है। जैसा कि इस स्तंभ में बार -बार कहा गया है कि सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर समाज के कमजोर वर्गों की प्रगति का सूचकांक नहीं हो सकता है। इसलिए वर्तमान में आवश्यकता मांग में वृद्धि करने, संगठित और असंगठित क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करने और रोजगार सृजन की संभावनाओं की तलाश करने की है जो मांग में वृद्धि में सहायता करेगा और अर्थव्यवस्था को आगे बढ़Þाएगा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)
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