अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की कथित आत्महत्या करने की घटना ने बॉलीवुड को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। सुशांत की मृत्यु के बाद जिस प्रकार से भाई-भतीजावाद (नेपोटिज्म) के आरोपों की चर्चा होने लगी है, इससे पहले कभी भी इतने गंभीर आरोप नहीं लगे। अब बॉलीवुड की प्रसिद्ध हस्तियों को जांच में शामिल कर पूछताछ की जा रही है। कोई दिन ऐसा नहीं जा रहा है जब सुशांत की मौत के मामले में बॉलीवुड कलाकार बयानबाजी न कर रहे हों। सुशांत की मौत के बाद बॉलीवुड मोटे तौर पर दो गुटों में बंटता नजर आ रहा है।
नए (आऊटसाईडर) और पुराने (इनसाईडर) कलाकारों भाई भतीजावाद की गूंज तो दशकों से ही चली आ रही थी लेकिन सुशांत की मौत ने पक्षपात की बुराई को चौराहे पर लाकर खड़ कर दिया है। दरअसल कई नए कलाकारों को यह शिकवा है कि फिल्म इंडस्ट्री में कामयाब होने के लिए उन्हें कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है, पुराने कलाकार नए कलाकार के इंडस्ट्रीज में पैर नहीं जमने देते, नए कलाकार का शोषण किया जाता है या फिर उन्हें इंडस्ट्री छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है। सोनू सूद ने तो अपने अनुभव में यहां तक कह दिया है कि नए कलाकार अपनी पूरी तैयारी के साथ आएं, जिनकी नसें स्टील की हों, दुख सहने की हिम्मत रखते हों
इन सभी आरोपों और दावों की वास्तविक्ता तो जांच का विषय है, लेकिन यह स्पष्ट है कि कला का क्षेत्र भी साफ-सुथरा नहीं रहा। लाखों युवा फिल्मी दुनिया में सफलता के सपना देखते हैं लेकिन यदि वर्तमान समय के सवालों की बात करें तब यह स्पष्ट व साधारण व्यक्ति के लिए बेहद मुश्किल भरा क्षेत्र है। फिल्मी क्षेत्र का भारतीय समाज पर आर्थिकता के साथ गहरा संबंध है। लाखों लोगों ने कला के बल पर रोजगार प्राप्त किया है। कुछ बड़ी हस्तियों ने एकाअधिकार कायम कर काबिल लोगों को भी परेशान किया है
और कई सुशांत जैसे लोग अपनी जिंदगी से ही हाथ धो बैठे हैं। मामले की सही जांच कर आरोपियों को सजा मिलनी चाहिए। यह घटनाक्रम फिल्मी कलाकार और फिल्म संगठनों के लिए भी आत्म-चिंतन करने का मौका है कि वह अनैतिक और गैर-कानूनी गतिविधियों का संज्ञान लेकर एक साफ-सुथरी फिल्मी संस्कृति को बढ़ावा दें, ताकि शरीफ व नए कलाकारों को मुश्किलें न आएं और न ही अपनी जिंदगी को दांव पर लगाएं। पैसे के मुकाबले जीवन और नैतिकता कहीं बड़ी है।