कर्मठ सेवादारों में गिने जाते थे हुकमचंद इन्सां
- बड़ी संख्या में उपस्थित साध-संगत ने इलाही नारों के साथ दी विदाई
ओढां। (सच कहूँ/ राजू) एक वो समय था जब लोग शरीरदान तो क्या नेत्रदान करने से भी हिचकिचाते थे। ऐसे में मेडिकल शोध कार्यांे में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले प्रशिक्षार्थियों को मृत देह के अभाव में काफी परेशानी आड़े आ रही थी। ऐसे में पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पावन प्रेरणाओं पर चलते हुए बड़ी संख्या में डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी आगे आए और प्रतिज्ञा पत्र भरते हुए ये प्रण लिया कि उनके मरणोपरांत उनकी देह इंसानियत हित में शोध कार्यांे हेतु दान कर दी जाए। इस मुहिम ने मेडिकल कॉलेजों की शोध की राह को ऐसा आसान बनाया कि मेडिकल कॉलेज डेरा सच्चा सौदा का आभार व्यक्त कर रहे हैं।
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शनिवार को इस मुहिम में एक नाम और शामिल हुआ मंडी कालांवाली निवासी हुकमचंद इन्सां का। उनकी मृत देह को ढोल-नगाड़ों व इलाही नारों के साथ फूलों से सजी गाड़ी में रवाना कर दिया गया। करीब 96 वर्षीय हुकमचंद इन्सां शनिवार अलसुबह सचखंड जा विराजे। हुकमचंद इन्सां ने पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज से नाम शब्द लिया हुआ था। उनके पुत्र जगदीश इन्सां ने बताया कि उनके पिता ने पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पावन प्रेरणाओं पर चलते हुए मरणोपरांत शरीरदान करने के लिए प्रतिज्ञा पत्र भरा हुआ था।
गाजे-बाजे के साथ करना रुखस्त
हुकमचंद इन्सां ने अपने तीनों पुत्रों जगदीश इन्सां, लक्ष्मण इन्सां व अजय इन्सां को पहले ही कह दिया था कि उनके मरणोपरांत उनका शरीरदान करना है। उनकी शव यात्रा गाजे-बाजे के साथ निकाली जाए। अपने पिता की इसी इच्छा को पूर्ण करते हुए शनिवार को हुकमचंद इन्सां के मरणोपरांत उनके पुत्रों ने उनकी मृत देह महावीर तिरंथकर मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट मेरठ को दान कर दी। उनको अंतिम विदाई देने हेतु शाह सतनाम जी ग्रीन एस वेलफेयर फोर्स विंग के सदस्य, साध-संगत, गणमान्य व्यक्ति व काफी संख्या में लोग मौजूद रहे। साध-संगत ने ‘सचखंडवासी हुकमचंद इन्सां अमर रहे’ के नारों व ढोल-नगाड़ों के बीच सैल्यूट करते हुए उनकी मृत देह को फूलों से सजी गाड़ी में विदाई दी।
वहीं बेटा-बेटी एक समान मुहिम के तहत उनकी अर्थी को कंधा उनकी बेटियों शीला इन्सां, सुनीता इन्सां, मीना इन्सां, रेनू इन्सां, सरोज इन्सां व प्रियंका इन्सां ने दिया। हुकमचंद इन्सां का नाम मंडी कालांवाली के 17वें शरीरदानी के रूप में हमेशा याद रखा जाएगा। हुकमचंद इन्सां नाते-पोतियों से भरा-पूरा परिवार छोड़कर गए हैं।
मुझे आश्रमों में घूमकर आना है
हुकमचंद इन्सां को तीनों पातशाहियों के पावन दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अखंड सुमिरन में वे हर रोज 24 में से 22 घंटे सुमिरन करते थे। चोला छोड़ने से करीब एक सप्ताह पूर्व उन्होंने अपने पुत्रों से कहा कि उन्हें पांचों आश्रम रानियां, लक्कड़ांवाली, गदराना, श्री जलालआणा साहिब व चोरमारखेड़ा में घूमकर आना है। उन्होंने उक्त आश्रमों में घूमने उपरांत लक्कड़ांवाली आश्रम में सेवादारों से नारा लगाकर विदाई लेते हुए कहा कि ये उनका आखिरी नारा है। हुकमचंद इन्सां ने अंतिम समय में भी नारा लगाकर चोला छोड़ दिया। हुकमचंद इन्सां के बेटे जगदीश इन्सां ने बताया कि उनके पिता उन्हें यही कहते थे कि सेवा-सुमिरन का पल्ला कभी नहीं छोड़ना।
कर्मठ सेवादारों में गिने थे जाते हुकमचंद इन्सां
हुकमचंद इन्सां कर्मठ सेवादारों में गिने जाते थे। उन्होंने शाह मस्ताना जी धाम, शाह सतनाम जी धाम, मलोट आश्रम, कोलायत, हिमाचल, श्री जलालआणा साहिब, चोरमारखेड़ा, लक्कड़ांवाली, गदराना सहित अन्य आश्रमों में काफी सेवा की। ब्लॉक प्रेमी सेवक सुरजीत इन्सां ने बताया कि हुकमचंद इन्सां सेवा-सुमिरन में ब्लॉक में अग्रणी थे। उनकी कमी हमेशा महसूस होगी।
हुकमचंद जैन के परिजनों ने उनका शरीरदान कर अति उत्तम कार्य किया है। मरने के बाद तो शरीर को जला ही देना होता है। ऐसे में परिजनों ने उच्च सोच अपनाते हुए जो महान कार्य किया है उसके लिए वे सराहना के पात्र हैं। समाज में ऐसे उदाहरण बहुत कम देखने को मिलते हैं। देह दान से न केवल मेडिकल के विद्यार्थियों को शिक्षा में मदद मिलेगी बल्कि समाज में भी जागृति आएगी।
– शीशपाल केहरवाला, विधायक (हलका कालांवाली)।
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