पानीपत (सन्नी कथूरिया)। लेकर क्या वापिस जाना या शरीर भी दान है डेरा सच्चा सौदा सिरसा द्वारा चलाए जा रहे 142 मानवता भलाई कार्यो में से एक कार्य मरने के बाद आंखें दान व शरीर दान की कड़ी को आगे बढ़ाते हुए पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन वचनों पर चलते हुए पानीपत वार्ड 11 के चांदनी बाग कॉलोनी में रहने वाले 81 वर्षीय गुरदयाल सिंह इन्सां शनिवार शाम को अपनी संसारी यात्रा पूरी करके मालिक के चरणो में जहां बिराजे और उनकी अंतिम इच्छा अनुसार उनके परिवार वालों ने आंखें दान शरीर दान करके महान कार्य किया। रविवार को सैकड़ों की संख्या में संगत व परिवार जन गुरुदयाल इन्सां के निवास स्थान पहुंचे और वहां से गुरदयाल इन्सां अमर रहे सतगुरु तेरी सोच पर पहरा देंगे ठोक के के नारे लगाते हुए उनके पार्थिव शरीर को मेडिकल रिसर्च हेतु रवाना किया।
नाम दान लेने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा
गुरुदयाल इन्सां ने डेरा सच्चा सौदा के दूसरी पातशाही बेपरवाह शाह सतनाम सिंह जी महाराज जी से 50 वर्ष पहले नामदान टोहाना से लिया था और तभी से वह सेवा कार्य में जुटे रहे और दिन-रात दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहते हैं। जब भी ब्लॉक की तरफ से सेवा का संदेश आता तो गुरुदयाल इन्सां सदा तैयार रहते गुरदयाल इन्सां ने हजारों लोगों को नामदान दिलवाकर नशों से दूर किया।
बेटी ने व बहु ने दिया कंधा
पूजा हजूर पिता द्वारा चलाए जा रहे मान्यता कार्य में से एक कार्य बेटा बेटी एक समान किनारे को सार्थक साबित करते हुए गुरुदयाल हिंसा के पार्थिव शरीर को उनकी बेटी बहू ने कंधा देकर यह साबित कर दिया कि आज के जमाने में बेटियां बेटों से कम नहीं है जितना हक आज के समय में बेटों पर मां बाप का है उतना ही अब बेटियों का भी है। गुरदयाल इन्सां की बेटी ने बताया कि उनके पिता की अंतिम इच्छा अनुसार उनके शरीर को मेडिकल रिसर्च प्रदान किया गया है जीते जी तो उन्होंने समाज की सेवा की है मरने के बाद भी वह समाज के लिए एक मिसाल कायम करके गए हैं।
शरीर दान करना एक महान कार्य…गुलाटी
जन सेवा दल के सदस्य चमन लाल गुलाटी ने बताया कि आज के युग में जहां भाई भाई का दुश्मन है बेटा बाप का दुश्मन बना हुआ है उस युग में दूसरों की सेवा के लिए दिन-रात तैयार रहना यह बहुत बड़ी बात है और आज जो इस बुजुर्ग आंखें दान वे शरीर दान करके नेक कार्य किया है यह भी अपने आप में एक बहुत बड़ा कार्य है क्योंकि मरने के बाद शरीर तो मिट्टी में मिल जाता है अगर मरने के बाद हमारा शरीर किसी के काम आ सके इससे बड़ा कोई पुण्य नहीं हो सकता। आंखें दान करने से तो अंधेरी जिंदगियों को रोशनी मिलती है और शरीर पर डॉक्टर रिसर्च करके एक कामयाब डॉक्टर बनते हैं और देश के लोगों की इलाज में मदद करते हैं।
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