मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक कार्यक्रम में मरीजों और डॉक्टरों के बीच भावनात्मक रिश्ते की जरूरत को उजागर किया। उनका कहना था कि गलाकाट व्यावसायिकता ने मानवीय संवेदनाओं को लील लिया है, लिहाजा इसका असर डॉक्टर और रोगी के संवेदनशील संबंधों पर पड़ रहा है। यह बिल्कुल ठीक बात है लेकिन यह भी सोचा जाना चाहिए कि आखिर क्या कारण है कि डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है लेकिन वे शैतानियत पर उतर रहे हैं। यदि रिश्ते खराब हुए हैं तो उसके बीज दोनों ही वर्गों में छुपे हैं। डॉक्टरों में अनेक कमियां हैं। सरकारी अस्पतालों में जहां चिकित्सा सुविधाओं एवं दक्ष डॉक्टरों का अभाव होता है, वहीं निजी अस्पतालों में आज के भगवान रूपी डॉक्टर मात्र अपने पेशे के दौरान वसूली व लूटपाट ही जानते हैं।
उनके लिये मरीजों का ठीक तरीके से देखभाल कर इलाज करना प्राथमिकता नहीं होती, उन पर धन वसूलने का नशा इस कदर हावी होती है कि वह उन्हें सच्चा सेवक के स्थान पर शैतान बना देता है। जो शर्मनाक ही नहीं बल्कि डॉक्टरी पेशा के लिए बहुत ही घृणित है। डॉक्टरों की लिखी दवा मेडिकल कंपनियों के सौजन्य से अस्पताल, क्लीनिक या नर्सिंग होम के सामने वाली दुकान पर ही मिलती है। पैथोलाजी से कमीशन बंधा होता है। उसकी विश्वसनीयता हो या न हो, खास कारणों से डॉक्टर जांच वहीं कराएगा। सरकारी अस्पताल का डॉक्टर रोगी को घर बुलाता है।
अस्पतालों में दवाएं नहीं मिलतीं। जांच के लिए खरीदी गई महंगी मशीनें जानबूझकर खराब कर दी जाती हंै और मरीज को बाहर से जांच करानी पड़ती है। ऐसे और भी कारण हैं जिन्होंने रोगी और चिकित्सक के बीच के पवित्र रिश्ते को कमजोर किया है। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि सरकारी नौकरी करने वाला भी सरकारी अस्पतालों से बचता हैं। परंतु यह तस्वीर का एक पहलू है। यदि डॉक्टर संवेदनहीन हुए हंै तो उनके ऊपर भार भी बहुत है। आबादी इतनी बढ़ चुकी है कि अस्पतालों के बाहर लाइन कम ही नहीं होती। मरीज के साथ ऊंच नीच हो जाने पर डॉक्टर के साथ मारपीट तक कर दी जाती है, जो निंदनीय कृत्य है। रोगी चिकित्सक संबंध सुधारने के लिए सरकार को अस्पतालों के संसाधन बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। डॉक्टर का पेशा एक विशिष्ट पेशा है। एक डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है, इसलिये इसकी विशिष्टता और गरिमा बनाए रखी जानी चाहिए।
एक कुशल चिकित्सक वह है जो न केवल रोग की सही तरह पहचान कर प्रभावी उपचार करें, बल्कि रोगी को जल्द ठीक होने का भरोसा भी दिलाए। कई बार वह भरोसा, उपचार में रामबाण की तरह काम करता है। ऐसे में एमबीबीएस छात्रों के पाठ्यक्रम में डॉक्टरों और मरीजों के रिश्ते को भी शामिल किया जाना उचित ही है। एक व्यक्ति डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, जज बनने से पहले अच्छा इंसान बने, तभी वह अपने पेशे के साथ न्याय कर सकते हैं। आज डाक्टरी पेशा नियंत्रण से बाहर हो गया है। मनुष्य के सबसे कमजोर क्षणों से जुड़ा यह पेशा आज सबसे कुटिल व हृदयहीन पेशा बन चुका है। डॉक्टरों एवं अस्पतालों को नैतिक बनने की जिम्मेदारी निभानी ही होगी, तभी वे चिकित्सा के पेशे को शिखर दें पाएंगे और तभी मरीज एवं डॉक्टर के बीच का संवेदनशील रिश्ता धुंधलाने से बच सकेगा।
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