जम्मू-कश्मीर समस्या से निपटने का ब्लूप्रिंट तैयार

Blueprint ready to deal with Jammu and Kashmir problem

मोदी सरकार-टू के समक्ष जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और 35ए को हटाना पहाड़ फतेह करने जैसा होगा। इस मसले को हल करने की अहम जिम्मेदारी गृहमंत्रालय पर रहेगी। मंत्रालय के मुखिया अमित शाह हैं। शाह ने ही सबसे पहले इस मसले को चुनावी कैंपेन में उछाला था। सूत्र बताते हैं इसी कारण गृहमंत्रालय को उन्होंने खुद लिया। पदभार संभालने के बाद उन्होंने समस्या को सुलझाने के लिए तैयार किए गए ब्लूप्रिंट पर काम करना शुरू कर दिया है। सियासी गलियारों में सरकार बनने के बाद सिर्फ एक चर्चा आम है कि गृहमंत्री बनने के बाद अमित शाह जम्मू-कश्मीर को लेकर क्या बड़ा फैसला लेंगे? सभी की नजरें अमित शाह और उनके विभाग पर टिकी हैं। देश में सुरक्षा का खाका अब कैसा तैयार किया जाएगा। इसको लेकर सभी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर राज्य का वातावरण भी हिंदुस्तान के दूसरे राज्यों की तरह हो, ये समय की दरकार है। वहां की लोकल हुकूमतें सदियों से अप्रत्यक्ष तौर पर भारत का हिस्सा नहीं मानती रही हैं। उनके इस कृत्य में बराबर की भागीदार कांग्रेस भी रही। वहां की ज्यादातर सरकारों में कांग्रेस हिस्सेदार रही है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने उनके उस मिथ्य को तोड़कर वहां नई सुबह होने का जाल बिछा दिया है। वहीं, जम्मू-कश्मीर के लिए केंद्र सरकार के किसी भी कदम को उठाए जाने को लेकर वहां के सियासी दलों की पैनी नजर है।

यह निश्चित है कि धारा 370 और अनुच्छेद 35ए को हटाने पर वहां भारी हंगामा हो सकता है। क्योंकि पीडीपी ने पहले ही चेता दिया है कि अगर इन मसलों पर छेड़छाड़ की गई तो वहां का झंडा अलग होगा? प्रदेश में खूनखराबा होगा, माहौल एक बार फिर 1947 जैसा विभाजनकारी होगा। ऐसी तमाम धमकियां पीडीपी चीफ पूर्व में दे चुकी हैं। उनकी धमकियों का कैसा असर होगा, यह जल्द देखने को मिलेगा। क्योंकि अमित शाह जम्मू को लेकर नया ब्लूप्रिंट तैयार करने में लगे हैं। धारा 370 हटाने में कई तरह की कानूनी पचड़े भी आएंगे, लेकिन भाजपा आश्वस्त है कि वह यह काम आसानी से कर लेगी।

भाजपा की दलील है कि दशकों पहले इस अनुच्छेद को बिना संसद की अनुमति से लागू किया गया था। उनका दूसरा तर्क ये है कि देश के विभाजन के वक्त बड़ी तादाद में सरहद पार से शरणार्थी हिंदुस्तान में दाखिल हुए थे। तब जम्मू-कश्मीर सरकार ने अनुच्छेद 35ए के जरिए इन सभी लोगों को जम्मू-कश्मीर में स्थायी निवासी प्रमाणपत्र देकर बसा दिया था। लेकिन वहां के स्थाई निवासियों को तंग करना शुरू कर दिया था, क्योंकि उस वक्त वहां सबसे ज्यादा आबादी हिंदुओं की थी जिनको उनके मूल अधिकारों से वंचित कर बेघर कर दिया गया था।

कश्मीरी पंड़ितों के साथ घटी जुल्मकारी कहानी को शायद ही कोई भूल पाए। जो उस वक्त वंचित हुए थे, उनमें 80 फीसद लोग पिछड़े और दलित हिंदू समुदाय से थे। स्थानीय निवासियों पर एक और आफत आई थी। जम्मू-कश्मीर में विवाह कर बसने वाली महिलाओं और अन्य भारतीय नागरिकों के साथ भी जम्मू-कश्मीर सरकार ने अनुच्छेद 35ए की आड़ लेकर भेदभाव करना भी शुरू कर दिया था। कुल मिलाकर कई तरह की यातनाएं लोगों को दी गई। दुखी होकर लोगों ने अदालत की चौखट भी खटखटाई थी। कोर्ट में दाखिल याचिका में लोगों ने शिकायत की थी कि अनुच्छेद 35ए के कारण संविधान प्रदत्त उनके मूल अधिकार जम्मू-कश्मीर राज्य में छीन लिए गए हैं, लिहाजा राष्ट्रपति के आदेश से लागू इस धारा को फौरन रद्द किया जाए। लेकिन पिछले सत्तर सालों से यह मसला सियासी मुद्दा बना हुआ है, लेकिन आज तक कोई निर्णय नहीं हो सका। पर, अब उम्मीद जगी है कि शायद कुछ हो पाए।

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 35ए 14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने लागू किया था। हालांकि उस वक्त भी खासा विरोध हुआ था। तभी से यह मसला मात्र सियासी मुद्दा बनकर रह गया। हमें यह जानना जरूर कि अनुच्छेद 35ए से वहां की विधानसभा को स्थायी निवासी की परिभाषा तय करने का अधिकार मिलता है, जिसका मतलब है कि राज्य सरकार को यह अधिकार होता है कि वह आजादी के वक्त दूसरी जगहों से आए शरणार्थियों और अन्य भारतीय नागरिकों को जम्मू-कश्मीर में किस तरह की सहूलियतें दे अथवा नहीं? कानून के मुताबिक सरकारें अपने हिसाब से काम करती हैं। क्योंकि अभी तक जम्मू-कश्मीर की सरकारें हुर्रियतों की सोच में कैद रहीं। भाजपा की आदमगी के बाद वहां स्थितियां बदली हैं। बदलाव की बयार बहनी शुरू हुई है। मौजूदा चुनाव परिणाम के बाद वहां के स्थानीय दल इस बात से भयभीत है कि कहीं उनकी सियासी जमीन ही न खिसक जाए। क्योंकि पीडीपी चीफ का हारना सियासी घटना के तौर पर देखा जा रहा है।

जम्मू-कश्मीर पूर्ण रूप से भारत का हिस्सा बने, मौजूदा सरकार से पूरे भारत को ढेरों उम्मीदें हैं। क्योंकि अनुच्छेद 35ए को लागू करने का तरीका भी अजीबोगरीब था। इसका जिक्र किसी भी कानूनी किताब में खोजे से नहीं मिलता। दरअसल इस अनुच्छेद को संविधान में 14 मई 1954 को जगह मिली थी। संविधान सभा से लेकर संसद की किसी भी कार्यवाही में कभी अनुच्छेद 35ए को संविधान का हिस्सा बनाने के संदर्भ में किसी संविधान संशोधन या बिल लाने का जिक्र नहीं मिलता है। अनुच्छेद 35ए को लागू करने के लिए तत्कालीन सरकार ने धारा 370 के अंतर्गत प्राप्त शक्ति का इस्तेमाल किया था। लेकिन उन्हें शायद इस बात का आभास नहीं था कि इससे माहौल कितना खराब होगा। विकासशील देश में यह किसी को गवारा नहीं कि एक देश में दो तरह के कानून हो। सबका भला एक जैसे कानून से ही होगा। इसलिए समय की मांग यही है कि जम्मू-कश्मीर में लागू धारा 370 और अनुच्छेद 35ए को तत्काल खत्म किया जाए। जम्मू-कश्मीर की हवा भी दूसरे राज्यों की तरह बहे। विभाजनकारी शक्तियों की पहचान कर उनपर सख्त कार्रवाई की जाए। यह सच है कि जम्मू-कश्मीर में बदलाव सिर्फ भाजपा सरकार के दौर में हो सकता है।

-रमेश ठाकुर
गीता कालोनी, दिल्ली

 

Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।