बरनावा। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आज के वक्त स्वार्थ का बोलबाला है। कई नगरों में तो राम-राम कहने पर भी पूछते हैं कि क्या चाहिए? यानि ग़र्ज के बिना राम-राम भी मंजूर नहीं करते। जबकि राम-राम बोलने से मुँह पवित्र होता है, आत्मा पवित्र होती है। तो इसलिए ऐसे भयानक घोर कलियुग में, स्वार्थी युग में जो लोग परहित परमार्थ तन, मन, धन से करते हैं धन्य हैं उनके माँ-बाप और धन्य वो लोग होते हैं, जो ऐसी सेवा करते हैं।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि हमने जब खूनदान का कैंप शुरू करवाया, आई कैंप लगा करते थे, उस दरम्यिान देखा कि लोग भाग-भाग कर सेवा कर रहे हैं। पर उससे पहले हमने 1980 से 1990 के बीच में कई बार देखा कि अगर ब्लड की जरूरत पड़ती तो सगा भाई सगे भाई को नहीं देता था। एक बार हम किसी के साथ गए थे तो डॉक्टर साहिबान कहने लगे कि ब्लड डोनेट करना पड़ेगा। तो मरीज के भाई का ब्लड ग्रुप उससे मिलता था। लेकिन जब उनसे मांगा गया तो वो आगे चले गए, साइड में चले गए, वापिस लौटे ही नहीं। तो ऐसा टाइम भी था। और आज राम-नाम के प्यारे लाखों में हैं, जो ब्लड डोनेट को तैयार रहते हैं, बेमिसाल, कमाल।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि नौजवान पीढ़ी को हमने देखा कि विवाह शादी के दिन ब्लड डोनेट करके आते हैं, जन्म दिन के दिन ब्लड डोनेट करते हैं, पेड़ लगाते हैं, मानवता का भला करते हैं, ये बेमिसाल बातें हैं। वो कहावत है पुरातन वनडे हीरो, शादी जब होती है तो वो हीरो ही होता है, सबका ध्यान उसी पर ही होता है। तो एक दिन का तो वो हीरो है ही है, लेकिन अगर वो हीरो जाकर ब्लड डूनेट करता है और मरणोपरांत आँखेंदान और शरीरदान का प्रण करता है तो वास्तव में वो लंबे समय के लिए हीरो बन जाता है। अपनी इन्सानियत की वजह से, अपनी मानवता की वजह से। तो ये अपने आप में बहुत बड़ी बात है। तो भाई ज्यों-ज्यों सेवा करते जाओगे तो आपका ध्यान, आपके विचार सुमिरन में लगने लगेंगे और ज्यों-ज्यों सुमिरन करोगे, त्यों-त्यों आत्मबल बढ़ता जाएगा, त्यों-त्यों आप अपने हर क्षेत्र में शारीरिक, मानसिक, रूहानी यानि आत्मिक पर तरक्की करेंगे और समाज के लिए कुछ ना कुछ अच्छा करते चले जाएंगे, जिससे आपका नाम हमेशा के लिए अमर हो जाएगा।
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