मानवता के लिए वरदान सतगुरू जी के पवित्र वचन

Words-of-Satguru

सत्संग की महिमा

भक्ति मार्ग से संबंधित श्री राम चन्द्र जी फरमाते हैं कि भक्ति स्वतंत्र है। इसे किसी भी प्रकार के सहारे की आवश्यकता नहीं है। भक्ति सब सुखों का खजाना है, लेकिन इस पवित्र भक्ति को मनुष्य बिना सत्संग (बिना संत-महात्मा की संगत) के प्राप्त नहीं कर सकता। यह सिद्धांत भी अटल है। सत्संग को वह महान शक्ति प्राप्त है, जो जन्म-मरण के चक्र का अंत करती है। सतगुरू को प्राप्त करने की कुंजी सत्संग ही है। मनुष्य जीवन का केवल यही सबसे बड़ा लाभ है कि मनुष्य मन, कर्म, अर्थ और साधूवाद अपनाकर भक्ति में लीन हो जाए और कुल मालिक के चरणों में सेवा करे। जो मनुष्य तन-मन से मालिक के प्यारों व भक्ति रस में लीन होकर संत-महात्माओं की सेवा करता है, उस पर संत प्रसन्न होते हैं।

जय राम जी की

एक दिन पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज मजलिस के बाद गुफा (तेरावास) में जा रहे थे। एक व्यक्ति पहली बार आश्रम में आया और उसने परमपिता जी को आदरपूर्वक कहा, ‘‘महाराज जी जय राम जी की।’’ परमपिता जी ने नजदीक खड़े सेवादारों को समझाया, बेटा, यह भी मालिक का ही नाम है, उसके तो करोड़ों नाम हैं। अपनी-अपनी भाषा में जैसे भी कोई बोलता है तो वैसे ही मालिक को मंजूर करता है। इसलिए सत्संगियों को चाहिए कि अगर कोई तुम्हें राम-राम कहता है तो उसका जवाब राम-राम में ही दो। अगर कोई सत-श्री-अकाल कहता है तो आप भी सत-श्री-अकाल ही कहो। किसी के साथ भी नफरत ना करो। अच्छे व्हवहार के साथ ही इंसान साथ जुड़ता है।’’

ज्ञाता घट-घट के

एक बार मैं डेरा सच्चा सौदा, सरसा में सेवा करने आया हुआ था। मेरे मन में ख्याल आया कि पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने मुझे अपने पवित्र कर-कमलों के साथ कभी प्रशाद नहीं दिया। पल-पल की जानने वाले पूज्य परमपिता जी ने उसी समय सत बह्मचारी सेवादार लक्ष्मण सिंह को मुझे बुलाने के लिए भेजा। मैं जब गुफा में गया तो परमपिता जी ने मुझे दो केले प्रशाद के रूप में दिए और वचन फरमाए, ‘‘बेटा! ऐसे नहीं करना चाहिए। सतगुरु सेवा का फल बिना मांगे ही दे देता है।’’ यह वचन सुनकर मेरे मन के सभी भ्रम दूर हो गए। मैंने उसी समय परमपिता जी से माफी मांगी। इस पर परमपिता जी ने मुझे भरपूर आर्शीवाद और अथाह खुशियां बख्शीं।

केहर सिंह, गांव पक्का कलाँ, बठिंडा (पंजाब)।

शाहूकार दे पल्ले

27 दिसम्बर 1957 नेजिया  खेड़ा, सरसा (हरि.)
शाह मस्ताना जी महाराज डेरा सच्चा सौदा सतलोकपुर धाम, नेजिया खेड़ा पधारे। शहनशाह जी के लिए गुफा (तेरावास) तैयार हो गई थी। शेष कार्य अभी चल रहा था। शहनशाह जी ने सभी सेवादारों को प्रसाद दिया और वचन फरमाए, ‘‘पुत्तर, तुसीं शाहूकार दे पल्ले बन्ने (जुड़े) हो। किसी खुट्टल (कंगाल) के पल्ले नहीं हो। पुत्तर जिस बीबी (औरत) का मर्द मौजूद है, क्या उसे फिक्र होता है कि मेरे घर नमक नहीं, चीनी नहीं? तो तुम्हें क्या फिक्र है जबकि तुम्हारा सतगुरु तुम्हारे साथ हर समय मौजूद है। आप साध-संगत की सेवा करते हो मालिक तुम्हें दोनों जहान की खुशियां देगा।

मानवता का मार्गदशर्न करते है पवित्र वचन

पूज्य शाह मस्ताना जी महाराज के पवित्र वचन है कि अपने गुरु के वचनों की उल्लंघना करने वाले इंसान को इस संसार में कही भी शांति व खुशी प्राप्त नहीं होती। जैसे कि कोई बच्चा स्कूल से कोई वस्तु चुराकर लाता है। जब उसके माता-पिता को पता लगता है तो वह उसे खुद सजा देते हैं ना कि उसे पुलिस के हवाले करते हैं। ऐसे ही सतगुरु होते हैं जो इंसान द्वारा गलती करने पर भक्त को कभी काल रूपी पुलिस के हवाले नहीं करते। बल्कि उसे खुद सजा देकर अपने साथ सचखंड लेकर जाते हैं। अगर पूर्ण गुरु रात को दिन कहे तो भक्त का फर्ज है कि वह भी दिन ही कहे और अपनी अक्ल का प्रयोग न करें। क्योंकि पूर्ण गुरु के वचनों में कोई न कोई राज होता है। मालिक सभी के अंदर बैठा है। इंसान जो भी कार्य करता है बेशक अच्छा, बेशक बुरा, मालिक सब देखता है। उस समय मालिक किसी को कुछ नहीं कहता समय आने पर मालिक इंसान को उसके बुरे कर्मों की सजा जरुर देता है।

देखने वाली आँख नहीं

सन् 1958 की बात है, गर्मी का मौसम था। शहनशाह मस्ताना जी महाराज सतलोकपुर धाम, नेजिया से पैदल ही साध-संगत के साथ वापिस शाह मस्ताना जी धाम आ रहे थे। उनके साथ कुछ सेवादार थे। जब आप जी नेजिया वाले टिब्बे से होते हुए सड़क पर पहँुचे तो वहीं एक बुजुर्ग सत्संगी अपने खेत में काम कर रहा था। जमींदार ने सामने अपने मुर्शिद को आता देखकर आदरपूर्वक नारा लगाया। सार्इं जी वहीं पेड़ के नीचे छाया में खड़े हो गए। जमींदार ने प्रेमपूर्वक आप जी को पानी पीने की अर्ज की। सार्इं जी ने फरमाया, ‘‘पुत्तर! प्रेम के साथ पिलाओगे तो जरुर पिएंगे। वह गिलास साफ करने लगा।’’ आप जी ने फरमाया, पुत्तर! हम गिलास के साथ नहीं बल्कि ओक (अंजुली) के साथ पानी पिएंगे।

पानी पीने के बाद आप जी ने उससे पूछा, क्या हाल है?’’ वह बोला,‘‘ क्या बताएं सार्इं जी, यह धरती रेतीली है, बरसात कम होती है, इसलिए फसल नहीं होती। रात को जब अंधेरी चलती है तो सुबह तक हम रेत में दबे हुए महसूस करते हैं। इस टिब्बे (टीले) से बहुत दुखी हैं।’’ इस पर सार्इं जी ने फरमाया, ‘‘पुत्तर! तेरी देखने वाली आँख नहीं है। समय आने पर इस टिब्बे पर बाग-बहारें लगेगी। अनेक तरह की फल-सब्जियां लगेगी। इस टिब्बे पर विश्वभर से लोग आएंगे। नेजिया से सरसा तक इतनी साध-संगत होगी कि यहां से थाली फेकेंगे तो संगत के सिर पर ही रह जाएगी परंतु नसीबों वाले देखेंगे। इतने वचन करके सार्इं जी शाह मस्ताना जी धाम में पहुँच गए। पूर्ण सतगुरु के वचन युगों-युग तक अटल होते हैं और पूरे होकर रहते हैं। जो भी वचन शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने फरमाए, सौ फीसदी पूरे हुए और हो रहे हैं।

श्री जलालआणा साहिब पधारे शाह मास्ताना जी महाराज

इस पर पूजनीय परमपिता जी ने अर्ज कि, ‘सांई जी, आपजी ने खुद ही इन सभी नाम दान देना है व आप जी ने खुद ही इन सभी को संसार सागर से पार लगाना है फिर हम जिम्मेवार कैसे हुए?’ बेपरवाह जी ने वचन फरमाया, ‘नहीं वरी! आप ही इन सभी के जिम्मेवार हो। अगले जहान के भी जिम्मेवार आप ही हो। इनके लिए यहां के जिम्मेवार भी आप ही हो।’ चंद सिंह (मैनेजर) ने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज को साथ लेकर पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज जी की पावन हजूरी में अपने घर में पवित्र चरण रखने के लिए अर्ज की।

उसकी प्रार्थना तुरंत स्वीकार भी हो गई। हालांकि घर में पहले कोई भी तैयारी नहीं की गई थी। बेपरवाह जी ने अपने चरण कमल टिकाकर चंद सिंह की हार्दिक इच्छा को पूरा किया। उस समय मकान की छत कच्ची थी। चंद सिंह ने अर्ज की, ‘‘सार्इं जी! गरीबी है।’’ सांई जी ने वचन फरमाया, ‘‘नाम में इतनी शक्ति है कि गरीबी तो पड़ोस में भी नहीं रहती।’’ इस तरह परम पूजनीय शहनशाह शाह मस्ताना जी महाराज बारी-बारी से कुछ अन्य सेवादारों के घर भी गए व गांव के लगभग सभी सेवादारों की हार्दिक इच्छा पूरी करने के बाद परम पूजनीय शहनशाह शाह मस्ताना जी महाराज गांव चोरमार की तरफ रवाना हो गए।

श्री जलालआना साहिब में डेरा बनाने की मंजूरी

अगस्त 1956 की बात है। गाँव के कुछ श्रद्धालुओं ने पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज (गुरूगद्दी से पहले और तब आप का शुभ नाम सरदार हरबंस सिंह जी था) के साथ आकर पूजनीय शहनशाह मस्ताना को गाँव में डेरा बनाने के लिए अर्ज की। आपजी ने प्रसन्न होते हुए हुक्म फरमाया कि आपका डेरा मंजूर है। जमीन बताओ कहाँ बनाओगे। सभी ने गाँव के बिल्कुल निकट 2 एकड़ 16 मरले जमीन का नक्शा दिखाया। जो गाँव के उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है। यह वह जमीन है जहाँ अब दरबार (मौज मस्तपुरा धाम) स्थित है और नहर भी नजदीक से गुजरती है। पूजनीय सार्इं जी ने मंजूरी देते हुए फरमाया, ‘‘वरी! यह जमीन ठीक है।

कच्ची र्इंटे निकालकर डेरा बनाना शुरू कर दो। र्इंटे खुद अपने हाथ से निकालनी हैं।’’ इसी तरह अपने प्यारे मुर्शिद दाता जी के हुक्म अनुसार गाँव की साध-संगत में बहुत ही जबरदस्त खुशी का माहौल था। पूजनीय परमपिता जी अपने घर से एक थाल गुड़ ले आए। उसी शाम को निशान लगाकर गुफा की नींव खोद दी गई। सभी को गुड़ का प्रशाद बाँटा गया। अपने प्यारे सतगुरु जी के हुक्म अनुसार आश्रम की सेवा शुरू कर दी गई। दिन के समय र्इंटे निकाली जाती और रात को सारी साध-संगत नींव की खुदाई करती। पूरे गाँव में ही डेरा बनाने के लिए पूरा उत्साह था। पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज भी साध-संगत के साथ दरबार में र्इंटे निकालते। इसी तरह साध-संगत के पूरे उत्साह के साथ डेरा में एक गुफा, उसके ऊपर एक बरामदा, एक छोटा चोबारा, मुख्य द्वार व कच्ची चारदीवारी बन गई। डेरा बनने पर पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज अपने प्यारे रहबर खुदा को लेकर आने के लिए डेरा सच्चा सौदा, सरसा दरबार में आये। एक अन्य श्रद्धालु हाकम सिंह भी साथ आए थे।

शहनशाह जी के हुक्म अनुसार हाकम सिंह को पहले वापस श्री जलालआना साहिब में इस लिए भेज दिया गया ताकि साध-संगत पूजनीय मुर्शिद दातार जी के स्वागत की तैयारी करे। पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के साथ जीप में सवार होकर श्री जलालआना साहिब में पधारे। यह बात सन् 1958 की है। साध-संगत ने पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी के पधारने पर और पवित्र चरण-कमलों के साथ डेरा को पवित्र करने पर पूरे उत्साह के साथ ढोल-नगाड़ों के साथ भरपूर अभिनंदन किया। बेपरवाह जी बहुत खुश थे। डेरा में पधारने पर शीशम के पेड़ के नीचे कुर्सी पर विराजमान होकर सच्चे पातशाह जी ने वचन फरमाया, देखे भई, ‘‘मुलक माही दा वस्से, कोई रोवे ते कोई हस्से। क्योंकि शहनशाह जी के हुक्म के साथ गांव गदराना का डेरा गिरवा दिया गया था। इस तरह पूजनीय दाता जी ने श्री जलालआना साहिब में बने डेरा का नाम मौज मस्तपुरा धाम रखा। सार्इं जी ने ढोल-नगाड़ें वालों को नोटों के हार पहनाए। उन दिनों शहनशाह मस्ताना जी महाराज इस डेरा में 18 दिन रहे।

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आप जी ने परम पूजनीय परमपिता जी को बुलाकर हुक्म फरमाया, ‘‘सरदार हरबंस सिंह जी, आप गदराना डेरा का सामान र्इंटे, लाल बजरी, काठ-कड़ी आदि सब कुछ यहां डेरा (मस्तपुरा धाम) में उठा लाओ। शहनशाह जी ने 5-7 अन्य श्रद्धालुओं की ड्यूटी भी परमपिता जी के साथ लगा दी। शाम को डेरा में टहलते हुए पूजनीय सार्इं जी एक पेड़ के नीचे खड़े हो गए। आप जी ने सच्चे प्रेम की बात पर वचन फरमाया, ‘‘वरी (भाई)! प्रेम बहुत बड़ी वस्तु है। प्रेम ही गुरु होता है। आपका प्रेम डेरा के रुप में प्रकट हुआ। आपका डेरा बना, यह प्रेम की प्रत्यक्ष निशानी है। आपके अंदर प्रेम था और बाहर प्रकट हुआ। इसी तरह एक दिन फिर उसी तरह रात को हुक्म फरमाया, ‘‘लाओ वरी! अभी जा कर गाँव से एक नाम वाली रूह लेकर आओ। मालिक का हुक्म है उस रूह को जरुर नाम देना है। उस समय रात के लगभग एक बजे का समय था। दो श्रद्धालु गाँव में जाकर एक व्यक्ति को लेकर आए जिस को शहनशाह जी ने उस समय नाम दिया।

सतगुरु बनाएंगे, तेरे सामने, तुम खुद देखोगे

इसी तरह एक दिन पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज आश्रम के आँगन में कुर्सी पर विराजमान थे। गाँव की संगत भी बैठी हुई थी। सार्इं जी ने गाँव के श्रद्धालु मक्खन सिंह जी को पूछा कि आपके सरदार हरबंस सिंह जी के पास कितना रुपया है। मक्खन सिंह जी सत बह्मचारी सेवादार जो कि बचपन से ही परमपिता जी के साथ रहे थे, ने कहा कि, ‘‘सार्इं जी! पैसा तो सरदार हरबंस सिंह जी के पास बहुत है परंतु खर्च करना मुश्किल है। इस पर पूजनीय बेपरवाह जी ने फरमाया, वरी! तुझे नहीं पता उसके अंदर कितना प्रेम है। परमार्थ में अपना सब कुछ लुटा देंगे।’’ सतगुरु के हाथ बहुत लंबे हैं। उसे सतगुरु बनाएंगे, तेरे सामने, तुम खुद देखोगे।’’ समय आने पर बेपरवाह जी के वचन सौ प्रतिशत पूरे हुए।, जब पूज्य परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया तो उसे देखकर सब हैरान रह गये।

एक दिन पूजनीय बेपरवाह जी ने सेवादारों को हुक्म फरमाया, ‘‘भई, फावड़े ले आओ। बेरी का पेड़ उखाड़कर लाएंगे। वह काफी बड़ा पेड़ है। उसे उखाड़कर डेरा में दूसरी जगह पर लगाना था। काफी गहरा गड्ढा खोदकर बेरी की गाची (उसके साथ लगी हुई मिट्टी) बना ली गई परंतु जब उसे गड्ढे में निकालने लगे तो गाची टूट गई और उस पेड़ की जड़ बाहर से नंगी हो गई। सच्चे पातशाह जी मुस्कराते हुए फरमाया, ‘‘भई! सचमुच इसकी जड़ रब्ब को दिख गई है। वाकई ही दिख गई है भई! परंतु आपको क्या यकीन है कि आपके साथ कौन घूम रहा है।

– स्त्रोत: डेरा सच्चा सौदा के पवित्र ग्रंथ, संकलन: सच कहूँ टीम।

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