एक बार परस राम निवासी गांव शाहपुर बेगू जिला सरसा के खेत में फसल बहुत कम हुई। बाकी सभी गांव वासियों के खेतों में अनाज की भरपूर फसल हुई। लोग ताने देने लगे। लोकलाज से परस राम भी न बच सका। मन ने भी बहुत सी अड़चनें पैदा की। परस राम ने सोचा कि अब मैं कभी भी डेरा सच्चा सौदा नहीं जाऊंगा। दयालु शहनशाह जी ने एक सेवादार को परस राम के घर भेजकर उसे दरबार में बुलाया व उसे समझाते हुए फरमाया, ‘‘परस राम, अनाज कभी हुआ, कभी नहीं हुआ, आप तो ऐसे ही घबरा गए। पुत्र, दबाकर मेहनत कर, सतगुरू को हाजिर-नाजिर समझ। ’’ शहनशाही वचनों अनुसार परस राम के खेतों में अगली फसल दूसरों से तीन-चार गुणा अधिक हुई। जिंदाराम की बरकतें देखकर सभी दंग रह गए। फसल को संभालने का काम भी बहुत ही बढ़ गया। अनाज से घर पूरी तरह से भर गया। अनाज संभाले न संभले, चार महीनों तक दरबार में आना ही नहीं हुआ। घर में अनाज रखने की जगह ही नहीं बची। एक दिन वह एक ट्रक भर कर अनाज सरसा लेकर आ रहा था। जब डेरे के सामने से ट्रक निकलने लगा तो शहनशाह जी को खड़े देखकर परसराम ने आंखें चुरा ली। थोड़ा आगे जाकर ट्रक खराब हो गया। परस राम नीचे उतर कर आप जी के पास आया। शहनशाह जी ने उसे फरमाया, ‘‘परस राम! तू तो नारा बोलने से भी गया।’’ परस राम ने दबी हुई जुबान के साथ नारा लगाया व बताया कि बाबा जी, समय ही नहीं मिलता, अनाज अभी तक भी पूरा नहीं संभाल सका। हंसते हुए सांई जी ने परस राम से प्रेमपूर्वक कहा, ‘‘दोनों तरफ से मार, पहले अनाज कम पैदा हुआ तब भी रोता था और अब सैकड़ों मन अनाज अधिक निकला है तो भी रो रहा है।’’ परस राम पर दया मेहर देखकर सारा गांव हैरान रह गया।
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