भाजपा का दक्षिण भारत अभियान

BJPs South India campaign
ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनावों में 48 सीटें जीतकर भाजपा ने सबको हैरान कर दिया है। साथ ही भाजपा ने चुनावी रणनीति बनाने में श्रेष्ठता हासिल कर ली है। केवल दो विधायकों तक सीमित भाजपा ने बहुमत से सरकार चला रही टीआरएस को पराजित कर दिया। विगत चुनावों में भाजपा के पास केवल 4 सीटें थी, इस बार पार्टी को पहले के मुकाबले 11 गुणा ज्यादा सीटें हासिल हुई।
दूसरी तरफ असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम पहले की तरह ही अपनी 44 सीटें बचाने में सफल रही लेकिन ओवैसी की पार्टी का प्रदर्शन इस बात का प्रमाण है कि वे अपनी सांप्रदायिक बयानबाजी और टकराव वाली राजनीति के कारण पुराने हैदराबाद से आगे नहीं बढ़ सके। भाजपा की सीटों में बढ़ौतरी ओवैसी के लिए चुनौतीपूर्ण है व आगामी 2023 में विधान सभा चुनावों के लिए मैदान तैयार है। ओवैसी को यह समझना होगा कि वे धर्म के नाम पर विवादित राजनीति कर आम जनता का दिल नहीं जीत सकते।
यहां यह भी आवश्यक है कि भाजपा को यहां धार्मिक मुद्दों से निर्लिप्त होकर अपने ‘सबके लिए विकास’ वाले नारे पर काम करना होगा, क्योंकि राज्य में सत्ताधारी पार्टी तेलंगाना राष्ट्रीय पार्टी (टीआरएस) अभी भी सबसे बड़ी पार्टी है और निगम में अपना मेयर बनाएगी। यूं भी टीआरएस के लिए यह चुनाव एक बड़ा सबक है। हैदराबाद के लोगों ने सत्ताधारी पार्टी को सबक सिखा दिया है। मुख्यमंत्री चंद्र शेखर राव पिछले 6 वर्षों से निरंतर राज्य की सत्ता संभाल रहे हैं लेकिन हैदराबाद जैसा शहर जो विश्व के नक्शे पर अपनी, कई खूबियों के लिए चर्चा में रहता है, बुनियादी सुविधाओं में कमजोर हो गया है।
इस बार मानसून में पूरा शहर दो बार डूब गया। हालांकि शहरी विकास विभाग की कमान भी मुख्यमंत्री के बेटे केटी राव संभाल रहे हैं। चुनावों में लोगों ने टीआरएस पर गुस्सा जरूर निकाला है। विगत माह अपने गढ़ में दाबुक उप-चुनाव में भी टीआरएस हार चुकी है। टीआरएस को पूरी शिद्दत से हार की समीक्षा करने की आवश्यकता है। हैदराबाद के निगम चुनावों को विधान सभा चुनावों का सेमीफाइनल माना जाता है। इस दक्षिणी राज्य की राजनीति में यह बहुत बड़ा परिवर्तन देखा गया है, जिसका प्रभाव आगामी चुनावों पर पड़ना स्वाभाविक है।

 

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