भारतीय राजनीति में आजकल दो बड़े दलों के मनोबल का स्पष्ट प्रभाव दिख रहा है। भाजपा का मनोबल बना हुआ है, तो कांग्रेस का मनोबल ‘इस दिल के टुकड़े हजार हुए, कोई यहां गिरा कोई वहां गिरा’ की तरह पूरी तरह तितर-बितर हो चुका है। 2014 के लोकसभा चुनाव में हार कर सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान राहुल को सौंप दी। लोगों को लगा कि युवा अध्यक्ष नए सिरे से पार्टी का गठन करेंगे, पर नये और पुरानों की लड़ाई में वे पिस गए। यद्यपि तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक में कांग्रेस ने भाजपा से सत्ता छीन ली थी। इससे कांग्रेस वालों को लगा कि 2019 में भी ऐसा ही होगा; पर पूरी ताकत झोंकने पर भी उसे 52 सीटें ही मिलीं। यानि न खुदा ही मिला न बिसाल ए सनम। न इधर के रहे न उधर के रहे।
जो तीन राज्य जीते थे उनमें मध्य प्रदेश व कर्नाटक छिन गया, वहां भी नाक कट गई। तबसे कांग्रेस का मनोबल रसातल में है। पार्टी के सर्वेसर्वा ने अध्यक्ष पद छोड़ दिया। तब से आज तक कांग्रेस में लोगों को समझ ही नहीं आ रहा कि अपनी बात किससे कहें? अत: सांसद और विधायक भी जा रहे हैं। जिस बस में चालक न हो, उसमें बैठने वाला मूर्ख ही कहलाएगा। कर्नाटक, गोवा व मध्यप्रदेश में जो हुआ, वह नेतृत्व की अक्षमता का ही परिणाम रहा। पंजाब में मुख्यमंत्री बदलना पड़ा व मंत्रिमंडल नया बनाना पड़ा। अभी कल राजस्थान में भी कई मंत्रियों से इस्तीफा लेकर उनकी जगह सचिन पायलट के चहेतों को मंत्री बनाया जा रहा है। दूसरी ओर भाजपा का मनोबल कृषि बिलों पर भले थोड़ा गिरा है, क्योंकि कृषि बिलों पर भाजपा झुक गई।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने माफी मांगते हुए ये बिल वापिस ले लिए हैं लेकिन इससे कृषक वर्ग खुश है, अत: भाजपा को उम्मीद है कि किसान उसे माफ कर देगा, पर कांग्रेस को समझ ही नहीं आ रहा कि वो क्या करे? असल में कांग्रेस कई साल से जमीनी सच से कोसों दूर की राजनीति कर रही है। इसलिए पार्टी के प्रबुद्ध नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया, कैप्टन अमरेन्द्र सिंह, दर्जनों पूर्व सांसद व विधायक अब पार्टी के साथ नहीं हैं। राज्यसभा में तो पार्टी के सचेतक भुवनेश्वर कालिता भी पार्टी छोड़ गये, पर पार्टी है कि राहुल को मनाने में लगी है। सच तो ये है कि कांग्रेस के हर नेता और कार्यकर्ता का मनोबल गिरा हुआ है। इसका लाभ भाजपा उठा रही है। दुनिया चाहे जो कहे, पर किसान बिल वापिसी के मास्टर स्ट्रोक ने हर दल की बखिया उधेड़ दी है। अत: भा.ज.पा. का मनोबल गिरकर भी चरम पर है और उसे आगामी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी उतरने का अब डर नहीं है।
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