सच कहूँ/अश्वनी चावला, चंडीगढ़। विधानसभा चुनावों में शिरोमणि अकाली दल की ‘तकड़ी’ का भार भारतीय जनता पार्टी काफी ज्यादा घटाने में लगी हुई है। इन विधानसभा मतदान में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों का यदि नुक्सान किसी राजनीतिक पार्टी को हो रहा है तो वह शिरोमणि अकाली दल ही है। शिरोमणि अकाली दल को सब से ज्यादा नुक्सान उन शहरी सीटों पर होता नजर आ रहा है, जिन सीटों पर भाजपा की 15 हजार से ज्यादा वोट बैंक है।
पिछले कई दशकों से शिरोमणि अकाली दल को यह भाजपा का वोट बैंक मिलता आया है परन्तु इस बार भाजपा के साथ गठजोड़ नहीं होने के चलते भाजपा का यह वोट बैंक शिरोमणि अकाली के हाथों खिसक गया है और इसका नुक्सान साफ तौर पर होता हुआ भी नजर आएगा।
जिस कारण ही चण्डीगढ़ की सब से निकटवर्ती सीट डेरा बस्सी से लेकर राजपुरा होते हुए लुधियाना तक प्रभाव दिखाई दे रहा है तो फिल्लौर से लेकर जालंधर, अमृतसर तक नुक्सान पहुंच सकता है। अकाली संसद मैंबर हरसिमरत कौर के संसदीय हलके में बठिंडा शहरी में इसका प्रभाव दिखाई दे रहा है तो सुखबीर बादल की लोकसभा सीट फिरोजपुर भी इस नुक्सान से पीछे नहीं है।
सीधे तौर पर कहा जा सकता है कि शिरोमणि अकाली दल को इन विधान सभा चुनावों में भाजपा के गठजोड़ नहीं होने का सीधा प्रभाव दिखाई दे रहा है तो उन उम्मीदवारों में सब से ज्यादा घबराहट है, जो कि पिछले समय दौरान 5 हजार से 10 हजार तक वोट के साथ जीतते या फिर हारते आए हैं। इन 10 हजार से कम जीत-हार के फासले वाले विधान सभा हलके में शिरोमणि अकाली दल को ज्यादा नुक्सान होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
6 प्रतिशत तक वोट बैंक का सीधा घाटा
भाजपा के साथ गठजोड़ टूटने के बाद शिरोमणि अकाली दल को लगभग हर सीट पर 3 से 6 प्रतिशत तक वोट बैंक का घाटा पड़ने का अनुमान लगाया जा रहा है। गाँवों में भाजपा का कोई ज्यादा आधार नहीं है परन्तु शहरों में भाजपा पिछले समय से काफी ज्यादा वोट बैंक तैयार करती नजर आई है।
पंजाब के ज्यादा शहरों में भाजपा के 3 प्रतिशत से ले कर 6प्रतिशत तक वोटर हैं, जो कि भाजपा पर ही अपनी मोहर लगाते नजर आते हैं। पिछले विधान सभा चुनावों तक भाजपा का वोटर अकाली दल के उम्मीदवार को अपनी वोट देता था परन्तु इस बार वह अकाली दल की जगह पर भाजपा के उम्मीदवार या फिर गठजोड़ में अकाली दल संयुक्त और पंजाब लोक कांग्रेस को अपनी वोट देता नजर आएगा। जिस कारण अकाली दल को इस का नुक्सान होगा।
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