महान मुगल सम्राट अकबर के दरबार में बीरबल उनके नौ रत्नों में से एक थे। वे अपनी हाजिर जवाबी के लिये प्रसिद्ध थे। बातों-बातों में वे अपनी तीव्र बुद्धि और सूझबूझ से समस्या का समाधान कर देते थे। बादशाह को बीरबल की बुद्धिमता पर गर्व था। अकबर बादशाह हास्य विनोद के द्वारा समय-समय पर बीरबल की बुद्धि परीक्षा लेते रहते थे। एक बार अकबर ने बीरबल को दरबार में बुलाया और कहा-‘बीरबल, मैं तुम्हें एक काम सौंप रहा हूँ’ ‘हुक्म कीजिये महाराज।’ बीरबल ने विनम्र स्वर में कहां-‘जितनी जल्दी हो सके, तुम्हें गिनती करके यह बताना है कि दिल्ली में कुल कितने कौवे बसते हैं ” अकबर ने कहा।
बीरबल ने कहा-बादशाह सलामत मुझे दस दिन का समय दीजिये, मैं पूरी और सही जानकारी लेकर आपके सम्मुख उपस्थित हो जाऊंगा।’ बादशाह अकबर ने बीरबल को दस दिन का समय दे दिया। ठीक दस दिन के पश्चात बीरबल दरबार में उपस्थित हुआ और बादशाह से कहा-‘हुजूर, आपके हुक्म के मुताबिक मैंने दिल्ली के कौवों की गिनती कर ली है। दिल्ली में कुल आठ हजार चार सौ पचपन कौवे हैं।
”अकबर ने मुस्करा कर कहा- ”अगर गिनती करने पर उससे कम या ज्यादा निकले तो’बीरबल ने झट से कहा -‘हुजूर अगर गिनती करने पर कौओं की संख्या मेरी गिनती से ज्यादा निकले तो समझ लीजिये कि उतने कौवे बाहर से दिल्ली में अपने रिश्तेदारों के यहां बतौर मेहमान आए हुए हैं और अगर कौवे गिनती में कम निकले तो समझ लीजिये कि उतने ही कौवे दिल्ली से बाहर अपने मित्र या रिश्तेदारों के यहां गए हुए हैं।’ बीरबल का उत्तर सुनकर अकबर बादशाह खुश हुए। इसके विपरीत कोई दूसरा तर्क था भी नहीं।
-परशुराम संबल
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