भारत ने रूस के साथ मिसाइल एस-400 खरीद समझौते के दौरान अमेरिका को स्पष्ट कर दिया था कि भारत रूस से कुछ खरीदने के लए किसी भी देश का दखल बर्दाश्त नहीं करेगा। इससे पूर्व वाशिंगटन प्रशासन हथियारों की खरीद के लिए भारत को रूस व अमेरिका में से एक देश को चुनने के लिए कह रहा था। पिछले दिनों ‘हऊदी मोदी’ कार्यक्रम के अचानक बाद अमेरिका को ऐसा संदेश देना एक महत्वपूर्ण घटना है। नई कूटनीति अपनाकर भारत अपने पुराने मित्र रूस के साथ भी नजदीकियां बढ़ाने में सफल हुआ है। इससे भारत ने ‘एक पंथ दो काज’ वाला कार्य भी किया है। जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद अमेरिका ने भारत के निर्णय का समर्थन किया लेकिन चीन अपने मित्र पाकिस्तान के साथ खड़ा रहा। भले ही रूस ने भी भारत का समर्थन किया था लेकिन चीन को पछाड़ने के लिए भारत को अमेरिका की तरह रूस का भी समर्थन चाहिए था।
पाकिस्तान द्वारा यूएन में भी युद्ध की धमकियां देने के बाद भारत ने मिसाइल एस-400 खरीदने का निर्णय लिया है। यह मिसाइल एक समय में 72 मिसाइलें दागकर 400 किलोमीटर के दायरे में आने वाली मिसाइलों विशेष तौर पर परमाणु हथियारों से लैस मिसाइलों को नष्ट करने में सक्षम है। दो महाशक्तियों से समर्थन मिलने पर भारत अपने सम्प्रभु अस्तित्व व गुटनिरपेक्षता को बरकरार रखने में सफल रहा है। भले ही यह चिंताजनक स्थिति है कि महाशक्तियों का समर्थन भी अब हथियारों की खरीद-फरोख्त तक निर्भर हो गया है फिर भी इस दौर में अमेरिका व रूस के साथ बराबर मिलकर चलना भी भारत की एक बड़ी चुनौती है। अमेरिका की बढ़ रही सैन्य ताकत के बावजूद रूस को नजरअंदाज कर शक्ति संतुलन को बरकरार रखना मुश्किल है।
यह घटनाक्रम इस बात का प्रमाण है कि भारत अंतरर्राष्टÑीय मंच पर मजबूत देशों की कूटनीति का मुकाबला करने में निपुण है। यही अनुभव फिलीस्तीन व इज्रराइल के मामले में दोहराया जा चुका है। भारत ने दोनों देशों के साथ बराबर संपर्क बनाकर अपनी कूटनीति को मजबूत करने का प्रयास किया है। भारतीय राजनीति का मूल अहिंसा व गुटनिरपेक्षता है जिसे पूरा विश्व स्वीकार कर चुका है, तभी भारत के परमाणु कार्यक्रम, रक्षा साजोसामान पर कोई ऊंगली नहीं उठाता चूंकि वर्तमान विश्व में समृद्धि तभी सुरक्षित है यदि कोई राष्ट आत्मरक्षा में सक्षम है।
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