बिहार चुनाव के नतीजे आ-जा रहे हैं। एनडीए तीसरी बार सरकार बनाती दिख रही है। पर इस बार नीतीश कुमार का कद कमजोर हो रहा है। भाजपा को राज्य में 2015 से भी ज्यादा सीटें मिलती दिख रही हैं, जिसे 2015 में 53 सीटें मिली थी। नतीजों के अनुसार इस बार भाजपा 70 से 80 सीटों के बीच रह गई है। इस बार स्पष्ट देखा जा रहा है कि जदयू को करीब 20 से 25 सीटों का नुकसान हुआ, वहीं दो बातें भरोसे से कही जा सकती हैं, कि तेजस्वी यादव एक सितारे के तौर पर उभरे हैं।
वे बिहार की राजनीति के नए स्टार हैं और भविष्य में उन पर सबकी नजर होगी। वह सिर्फ बिहार के ही नहीं विपक्ष की राजनीति के भी एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी होंगे। उन्होंने जिस तरह कम साधनों और लगभग अकेले चुनाव का एजेंडा तय किया और भाजपा और जदयू की साझा ताकत का मुकाबला किया वह काबिले तारीफ है। इस बार बिहार में भाजपा और जदयू की भूमिका और रुतबा दोनों बदलेगा। जदयू अब तक बिहार में भाजपा के बड़े भाई की भूमिका में होती थी। सीट बंटवारे में भी यह दिखता रहा है।
नीतीश कहते रहे हैं कि हम बिहार की राजनीति करेंगे, भाजपा केंद्र की राजनीति करे। बड़े और छोटे भाई की भूमिका में बदलाव एक-दो साल में नहीं, बल्कि 20 साल में हुआ है। कुछ चुनावों में भाजपा को जदयू से ज्यादा सीटें भी मिलीं। इसके बावजूद जदयू और नीतीश ने भाजपा को छोटा भाई ही माना। 20 साल में 4 बार भाजपा के समर्थन से ही नीतीश मुख्यमंत्री बनते रहे हैं। 2005 में 13वीं विधानसभा के चुनावों में एनडीए को 92 सीटें मिलीं थी। भाजपा को 37 और जेडीयू को 55 सीटें मिलीं। किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला तो राष्ट्रपति शासन लगा। छह महीने बाद ही राज्य में फिर चुनाव हुए। एनडीए को 143 सीटें मिलीं। जदयू के 88 और भाजपा के 55 विधायक जीतकर आए। नीतीश मुख्यमंत्री बने।
इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा और जदयू के बीच 50-50 फार्मूला अप्लाई हुआ। इसके बावजूद जदयू 122 सीटों पर और भाजपा 121 सीटों पर लड़ी। हालांकि 2004 आम चुनाव में जदयू और भाजपा के बीच सीट बंटवारे का फॉर्मूला 70-30 का था। जेडीयू ने 26 और भाजपा ने 14 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इसमें से जेडीयू को 6 और भाजपा को महज 2 सीटों पर जीत मिली थी। 2019 के आम चुनाव में भी भाजपा का रिकॉर्ड जदयू से बेहतर रहा था। इसी वर्ष लोकसभा चुनाव में भाजपा और जदयू ने 17-17 सीटों पर और लोजपा ने 6 सीटों पर चुनाव लड़ा। भाजपा ने अपने कोटे की सभी 17 सीटों पर जीत हासिल की। जदयू को 17 में से 16 सीटों पर जीत मिली। वहीं, लोजपा ने भी अपने कोटे की सभी 6 सीटें जीत ली थीं।
भाजपा ने बिहार में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर एक मुकाम तो हासिल कर ही लिया है और अब यहां से उसके लिए बिहार को जीतना एक आसान लक्ष्य लग रहा है। इस चुनाव में भाजपा नेतृत्व ने लोजपा के माध्यम से जो खेल खेला वह खतरनाक तो था, लेकिन उसने जदयू और नीतीश का ‘कद’ तय कर दिया, जहां से उनके लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी लेना भी आसान न होगा और सरकार चलाना भी। भाजपा के लिए कई लाभ साफ दिख रहे हैं। लोकसभा चुनाव के बाद इस पहले विधानसभा चुनाव में वह आगे बढ़ी है।
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