छोटे से भूटान की बड़ी कहानी

Bhutan

भूटान अपनी प्राकृतिक खूबसूरती , शांत वातावरण और सस्ता देश होने के कारण पर्यटकों की पसंदीदा जगह है। यहां पर पूरे बरस पूरी दुनिया से लाखों की संख्या में पर्यटक आते हैं, जिनमें सर्वाधिक भारत से होते हैं। भारत और भूटान के बीच खुली सीमा है लेकिन अब तक दोनों देशों के बीच आने-जाने पर कोई प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाता था लेकिन अब भूटान ने नियमों में बदलाव किया है। नए नियमों के मुताबिक जुलाई, 2020 से भारतीय पर्यटकों को भूटान जाने के लिए हर रोज के हिसाब से 1200 रुपए प्रवेश शुल्क देना होता है। भारत के अलावा बांग्लादेश और मालदीव के पर्यटक भी यह शुल्क अदा करते हैं। इसे सस्टेनेबल डवलपमेंट फीस का नाम दिया गया है।

मैं तो भूटान की संस्कृति और प्रकृति प्रेम का कायल हूँ। छोटे से इस हिमालय देश की बड़ी-बड़ी कहानियां अचंभित करती हैं। भूटान ने अपनी कल्चर के संरक्षण को सदियों तक वैश्विक दूरियां बनाए रखी हैं। पश्चिमों देशों की मानिंद आधुनिकता की दौड़ में कभी शुमार नहीं रहा है। आप जानकर हैरत में होंगे, करीब आठ लाख की आबादी वाले देश में इंटरनेट और टेलीविजन की एंट्री 20वीं सदी से बिल्कुल आखिरी में हुई। 1970 में पहली बार किसी विदेशी पर्यटक ने भूटान की धरती पर अपने चरण रखे। यहाँ पर्यटन के द्वार खुले 50 बरस हो गए हैं। इस स्वर्ण जयंती काल के दौरान कहीं आमूल-चूल बदलाव हुए हैं तो कहीं-कहीं कड़ाई की इंतहा भी देखने-सुनने को मिलती है।

प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग 1999 से ही प्रतिबंधित है। तम्बाकू का उपयोग भी लगभग पूरी तरह से गैर कानूनी है। कमाल के प्राकृतिक दृश्यों और शानदार संस्कृति के बावजूद भूटान अब भी अपने को पर्यटन से बचा रहा है। भूटान में खुशी से खिलखिलाते हुए चेहरे दुनिया के लिए मिसाल हैंङ्घबेमिसाल हैंङ्घ। आपका सवाल एकदम मौजूं हो सकता है, कैसे? सारी दुनिया जहाँ अपनी जीडीपी को आगे ले जाने की होड़ में शामिल है, वहीं भूटान जीएनएच यानी ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस की राह पर है। भूटान की इस सूरत और सीरत के लिए अवाम के संग-संग वहां की सरकार को भी श्रेय जाता है। बाजारीकरण के माहौल में वहां की सरकारों ने हमेशा पर्यावरण को वरीयता दी है। नई सरकार का गठन हुआ तो वहां के अवाम की नजरें उसकी नीतियों पर थीं, लेकिन सरकार ने भूटान की सुंदरता से कोई समझौता नहीं किया। सरकार ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके अनुसार किसी भी कीमत पर वन क्षेत्र 60 प्रतिशत से कम नहीं करने का संकल्प दोहराया गया।

इस छोटे से हिमालयी देश के बारे में विदेशी बहुत कम जानते हैं। अब भूटान में चीजें तेजी से बदल रही हैं। राजधानी थिम्पू में अब स्मार्टफोन और बार आम हो गए हैं। युवा यहां आबादी में बहुतायत में हैं। उन्होंने सोशल मीडिया को आसानी से स्वीकार कर लिया है। स्ट्रीट फैशन में बदलाव है। राजनीति में ज्यादा खुलकर चर्चा हो रही है। पर्यावरण क्षेत्र में उल्लेखनीय भूटान अंतर्राष्ट्रीय ट्रेंड्स में भी अग्रणी रहा है। बावजूद इसके सरकार पर्यटकों की संख्या को सीमित रखती है। दक्षिण एशिया के बाहर से आने वालों से 250 डॉलर प्रतिदिन के हिसाब से धनराशि वसूलती है। पर्यटन आय का यह एक महत्वपूर्ण स्रोत है। तर्क यह है, पर्यटन का पर्यावरण और संस्कृति पर प्रभाव कम से कम पड़े। आर्थिक पैमाने परंपरागत नहीं हैं।भूटान के पास सेना तो है लेकिन चारों ओर जंगलो से घिरा होने की वजह से नौसेना नहीं है।

इसके पास वायुसेना भी नहीं है लेकिन इस क्षेत्र में भारत उनका ख़्याल रखता है। भारत, अमेरिका और ब्रिटेन में स्टडी कर चुके राजा जिग्मे खेसार नामग्येल वांगचुक की अब भी पूजा की जाती है। भूटान के लोग अपने राजा को बेपनाह मुहब्बत करते हैं। रानी जेटसुन पेमा भी बेहद लोकप्रिय हैं। भूटान के लोगों को सचमुच में पेड़ लगाना पसंद है। हजारों लोगों ने अपने राजा-रानी के पहले बच्चे-राजकुमार ग्यालसे के जन्मदिन का जश्न 1,08,000 पौधे लगाकर मनाया। भूटान में पेड़ लगाना बेहद लोकप्रिय है, क्योंकि यहां पेड़ लंबे जीवन , सुंदरता और सहानुभूति के प्रतीक हैं। 2015 में भूटान ने मात्र एक घंटे में 50,000 पेड़ लगाने का गिनीज विश्व रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज कर चुका है।

भूटान की संसद ने इस शुल्क को लगाने के लिए टूरिज्म लेवी एंड एग्जम्पशन बिल आॅफ भूटान, 2020 बिल को मंजूरी दी है। इस बिल के मुताबिक 18 साल से अधिक उम्र के व्यक्ति के लिए 1200 रुपए प्रतिदिन जबकि छह से 12 साल के बच्चों के लिए 600 रुपये प्रतिदिन की फीस तय की गई है। भूटान सरकार का मानना है, देश के ऊपर पर्यटकों के बोझ को नियंत्रित करने के लिए फीस वसूलने का फैसला लिया गया है। हालांकि, अन्य देशों के लिए ये शुल्क अलग है। उन्हें भूटान यात्रा के लिए करीब 65 डॉलर यानी लगभग 4627 रुपये सस्टेनेबल डवलपमेंट फीस देनी है। साथ ही 250 डॉलर – लगभग 17,798 रुपए फ्लैट कवर चार्ज भी देना होगा। भारतीय नागरिकों के भूटान जाने के लिए वीजा की जरुरत नहीं होती है। वे दो वैध दस्तावेज लेकर जा सकते हैं।

इनमें भारतीय पासपोर्ट ले जा सकते हैं, जो कम से कम 6 महीने के लिए वैध हो। वोटर आईडी कार्ड भी मान्य है। साल 2018 के आंकड़ों के मुताबिक भूटान में 2,74,097 पर्यटक आए थे, जबकि सितम्बर 2019 तक पर्यटकों में 13 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। 2020 की दुनिया सबके सामने है। कोविड-19 को लेकर चौतरफा हाहाकार है। 2018 में 2017 के मुकाबले 7.61 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी। कुल पर्यटकों में भारत से आने वाले पर्यटकों की संख्या सबसे ज्यादा थी। भारत से 1,91,896 पर्यटक भूटान गए थे। इसके बाद अमेरिका से 10,561 और फिर बांग्लादेश से 10,450 पर्यटक भूटान गए। भारत और भूटान के बेहद नजदीकी रिश्ते जगजाहिर हैं।

2016 में भारत, नेपाल और बांग्लादेश ने बीबीआईएम समझौते पर हस्ताक्षर किए, लेकिन भूटान इस समझौते में शामिल नहीं हुआ। इस समझौते के तहत इसमें शामिल देश ट्रकों और अन्य कमर्शियल वाहनों को एक-दूसरे के राजमार्गों पर चलने की इजाजत देते हैं। बीबीआईएम समझौते से भूटान के पीछे हटने का कारण पर्यावरण को लेकर उसकी चिंता ही थी। वह अपने यहां वाहनों की आवाजाही को नहीं बढ़ाना चाहता था। इसी कड़ी में ही प्रवेश शुल्क भी लगाया गया है क्योंकि बहुत से पर्यटक वहां कूड़ा-कचरा फैलाते हैं। इससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता हैं। हरित होने के अलावा भूटान की दूसरी बड़ी खूबी यह है कि सालों से वहां प्लास्टिक के कई सारे प्रोडक्ट बैन हैं। वहां आपको प्लास्टिक के बैग और बोतल जैसा कुछ भी नहीं मिलेगा। भूटान ने इन पर बैन कर रखा है। इसके अलावा प्रदूषण रहित होने के लिए भूटान ने अपने यहां सिगरेट और धूम्रपान पर भी पाबंदी लगा रखी है।

कहते हैं वर्तमान में भूटान ने खुद को पूरी तरह स्मोक फ्री बना लिया है! अगर कोई इंसान वहां पब्लिक प्लेस, आॅफिस या फिर पब और बार में भी सिगरेट पीता है तो वह गुनाह कर रहा है। उसे कानूनन सजा हो सकती है। जीवाश्म ईंधन की बढ़ती मांग वहां की बड़ी समस्या बन रही है। इससे निपटने के लिए भूटान सरकार ने इसके वैकल्पिक स्रोतों को बढ़ावा दिया है। इलेक्ट्रिक कारें चलन में आ सकें, इसके लिए लोगों के बीच जागरुकता अभियान चलाया जाए। वह यहीं नहीं रुकी है । उसने एलईडी लाइट्स और इलेक्ट्रिकल पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन की दरों में सब्सिडी का इंतजाम किया। साथ ही वह ग्रामीण परिवारों को मुफ्त बिजली देने के लिए कदम उठा रही है , ताकि वहां के लोगों को खाना बनाने के लिए लकड़ी जलाने की जरुरत न पड़े। खबर है कि वहां की सरकार पेपरलेस होने की दिशा में भी बढ़ रही है।

                                                                                                             -श्याम सुंदर भाटिया

 

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