पूर्वी लद्दाख की गालवान घाटी में विगत रात (15/16 जून) चीन और भारत की सेना के आमने-सामने के संघर्ष में भारतीय सेना के एक अधिकारी समेत 19 जवानों की मौत हुई है। यह विवाद अब केंद्र सरकार के खिलाफ चुनौती बन गया है। चीनी सैनिकों ने लद्दाख में जिस तरह सीमा में घुसकर भारतीय सैनिकों की निर्ममता से हत्या की है वह न केवल दर्दनाक है बल्कि यह भारत की प्रभुसत्ता को बड़ी चुनौती है। इस हमले के बाद चीन का धोखेबाज चेहरा फिर बेनकाब हो गया है। कुछ दिन पूर्व चीनी अधिकारियों ने सीमा विवाद को लेकर भारतीय अधिकारियों के साथ बैठकर विवाद को बातचीत से सुलझाने की सहमति जताई थी, फिर एक सप्ताह बाद ही चीनी सैनिकों ने अपने वायदे से मुकरते हुए भारत की पीठ में छुरा घोंप दिया।
इससे पहले भारत-चीन सीमा पर 1975 में यानी 45 साल पहले किसी सैनिक की मौत हुई थी। तब भारतीय सेना के गश्ती दल पर अरुणाचल प्रदेश में एलएसी पर चीनी सेना ने हमला किया था। इससे पहले 1967 में नाथु ला में सीमा पर दोनों देशों की सेना के बीच हिंसक झड़प हुई थी। अब यह मामला भारत की प्रतिष्ठा का सवाल है। बेशक युद्ध नहीं होना चाहिए, किंतु इस हमले का कठोरता से जवाब देने के लिए ठोस रणनीति बनानी होगी। भारत सरकार के सीमाओं की सुरक्षा के लिए दृढ़ता संबंधी ब्यान जरूर आ रहे हैं, लेकिन भारतीय क्षेत्र से चीन को खदेड़ने के लिए लिए क्या कदम उठाए जाएंगे?, यह सवाल अहम व महत्वपूर्ण है। चीन ने अपनी नीच हरकत से भारत को उकसाया है और साथ ही भारतीय सेना पर सीमा का उल्लंघन करने के आरोप लगाए हैं, जिससे चीन चोर भी और चतुर भी नजर आ रहा है।
दरअसल चीन जान-बूझकर पाकिस्तान की तरह लद्दाख को विवादित क्षेत्र बनाने के लिए ऐसी कार्रवाई कर रहा है। चीन का सरकारी मीडिया सरेआम युद्ध की धमकियां ही नहीं दे रहा बल्कि विवादित गालवान घाटी पर अपना अधिकार जताने का दावा कर रहा है। अब भारत के लिए समझदारी से निर्णय लेने का वक्त है। केंद्र में भाजपा सरकार के कार्यकाल में यह दूसरी बार है जब किसी देश की सेना ने हमारे क्षेत्र में दाखिल होकर युद्ध जैसे हालात पैदा किए। इससे पहले 1999 में भाजपा के नेतृत्व में अटल बिहारी वाजपाई सरकार के कार्यकाल में पाकिस्तानी सेना कारगिल में दाखिल हुई थी, बड़ी लड़ाई लड़कर भारतीय जाबांजों ने पाक सेना को पराजित किया था।
उरी और पुलवामा हमले के लिए भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ दो सर्जिकल स्ट्राईक कर करारा जवाब दिया। यहां सवाल यह है कि क्या भारत पाकिस्तान की भांति चीन को भी सबक सिखाए। चीन कूटनीतिक तौर पर खुद को निर्दोष साबित करने के लिए जुटा हुआ है और भारत के खिलाफ बल भी इस्तेमाल कर रहा है। दोनों स्तरों पर यह समय सरकार के लिए परीक्षा की घड़ी है।
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