अमेरिका का राष्ट्रपति अपने देश का संवैधानिक प्रमुख तो होता ही है साथ ही उसे पूरी दुनिया के सबसे ताकतवर नेता के रूप में भी देखा जाता है। लेकिन इस साल अमेरिका की कमान सँभालने वाले जो बाइडन सबसे कमजोर राष्ट्रपति माने जा रहे हैं। पूरी दुनिया में उनकी आलोचना हो रही है क्योंकि बाइडन ने इतनी बड़ी गलती कर दी है जिसके लिए इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।
बाइडन ने अमेरिका के माथे पर 21वीं सदी का सबसे बड़ा कलंक लगवा दिया है। अफगानिस्तान में अमेरिका लड़ाई जिस तरह हारा है उसका ठीकरा सिर्फ बाइडन सरकार पर नहीं फोड़ा जायेगा बल्कि हर अमेरिकी के साथ यह बात दर्ज हो गयी है कि उसका देश जिस तरह वियतनाम से पीठ दिखा कर भागा था वैसा ही उसने अफगानिस्तान में भी किया। अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों के सुरक्षित भागने की होड़ इतिहास के पन्नों पर अमेरिका की बड़ी हार के रूप में दर्ज हो गयी है। तालिबान का राज हो जाने से अफगानिस्तान एक बार फिर आतंकवादियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बनेगा और दुनियाभर में आतंकवाद बढ़ सकता है।
जिस तरह पहले अल कायदा या अन्य आतंकवादी संगठनों के केंद्र अफगानिस्तान में थे वही स्थिति अब दोबारा हो सकती है। कहा जा सकता है कि बाइडन ने सिर्फ अफगानिस्तान ही नहीं पूरी दुनिया को खतरे में डाल दिया है। खुद अमेरिका के लिए आने वाले समय में मुश्किलें बढ़ सकती हैं क्योंकि तालिबान पर चीन और पाकिस्तान का प्रभाव ज्यादा है और इन दोनों ही देशों से अमेरिका के संबंध सहज नहीं हैं। अमेरिका मानवाधिकारों के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करता है। दुनियाभर में किस देश का मानवाधिकारों के सम्मान की दृष्टि से कौन-सा स्थान है इसकी रैंकिंग जारी करता है।
लेकिन जिस तरह से अफगान लोगों के मानवाधिकारों को अमेरिका ने खतरे में डाल दिया है उसके लिए उसे कभी माफ नहीं किया जा सकता। जो बाइडन राष्ट्रपति बनने से पहले बराक ओबामा के कार्यकाल के दौरान आठ साल देश के उपराष्ट्रपति भी रह चुके हैं। अनुभवी राजनेता और प्रशासक होने के बावजूद उनसे इतनी बड़ी गलती हुई है जिसे अब वह ढंकने का प्रयास कर रहे हैं अमेरिकी राष्ट्रपति अगर यह कहें कि हमें इतनी जल्दी काबुल की हार का अंदाजा नहीं था तो साबित होता है कि वहां प्रशासन किस तरह चलाया जा रहा है।
शुरूआती आकलन के मुताबिक बाइडन के एक फैसले की वजह से अफगानिस्तान की 20 लाख से ज्यादा लड़कियों का स्कूल, कॉलेज छूट गया है। बहरहाल, अफगानिस्तान के इतिहास के सबसे लंबे युद्ध में इस विफलता का बोझ अमेरिका तो ढोयेगा ही साथ ही दक्षिण, पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका का हर कोना किसी न किसी तरह से प्रभावित होगा।
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