कृषि अध्यादेशों के खिलाफ किसान आंदोलन के समर्थन में उतरे भूपेन्द्र हुड्डा

Bhupendra Hooda came out in support of farmer movement against agricultural ordinances

उठाया सवाल- सरकार कोरोना काल में सरकार क्यों लाई किसान विरोधी अध्यादेश?

  • सी2 फार्मूला के तहत एमएसपी और सदन में चर्चा के बिना लागू करना गलत
सच कहूँ/ अश्वनी चावला चंडीगढ़। पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने 3 नए कृषि अध्यादेश के खिलाफ जारी किसान आंदोलन के समर्थन का ऐलान किया है। हुड्डा का स्पष्ट कहना है कि ये आंदोलन सिर्फ किसान का ही नहीं, इसमें मजदूर, आढ़ती और छोटे व्यापारी भी शामिल हैं। सभी का मानना है कि बिना एमएसपी के ये अध्यादेश किसान हित में नहीं हैं। अगर सरकार इन्हें लागू करना चाहती है तो सबसे पहले इसमें एमएसपी पर खरीद का प्रावधान शामिल करना चाहिए। या उसके लिए अलग से चौथा बिल लाना चाहिए। बिल में स्पष्ट प्रावधान हो कि अगर कोई एजेंसी एमएसपी से नीचे किसान की फसल खरीदती है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी।भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि बीजेपी को अपना वादा पूरा करते हुए किसानों को स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के सी2 फार्मूला के तहत एमएसपी देनी चाहिए। जब तक किसान की पूरी लागत को ध्यान में रखते हुए एमएसपी तय नहीं होती, तब तक किसानों की आय नहीं बढ़ सकती।
कांग्रेस सरकार के दौरान अलग-अलग फसलों के एमएसपी में रिकॉर्ड 2 से 3 गुना की बढ़ोत्तरी हुई थी। गन्ना, गेहूं, धान आदि के रेट में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी करते हुए किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए कदम उठाए गए थे। लेकिन इस सरकार ने एमएसपी देने की बजाय किसान के जले पर नमक छिड़कने का काम किया है। हुड्डा ने सवाल उठाया कि अगर सरकार को कोरोना या किसान की इतनी ही चिंता है तो इन 3 अध्यादेशों को लागू करने के लिए कोरोना काल को ही क्यों चुना गया? क्यों नहीं स्थिति के सामान्य होने का इंतजार किया गया? क्यों नहीं इन बिलों को लागू करने से पहले संसद और विधानसभा में चर्चा करवाई गई? किसान को उसकी फसल का भाव देने के बजाय सरकार धान, चावल, सरसों और बाजरा खरीद जैसे घोटालों को अंजाम देने में लगी थी। आज भी मंडियों में 1509 और परमल धान पिट रही है। हमारी सरकार के दौरान 1509 धान 4000 से 5000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिकती थी, लेकिन आज उसकी बिकवाली सिर्फ 1800 से 2100 रुपये के बीच हो रही है। परमल के लिए तो किसान को एमएसपी भी नहीं मिल पा रही है और मजबूरी में उसे अपना पीला सोना 1100 से 1200 रुपये में बेचना पड़ रहा है। धान ही नहीं बाजरा किसानों के साथ भी ऐसा ही अन्याय हो रहा है। 2150 रुपये एमएसपी वाला बाजरा 1200 से 1300 रुपये में बिक रहा है।

 

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