पिछले काफी समय से देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न को लेकर बेवजह विवाद पैदा करने की कोशिशें की जाती रही हैं। गणतंत्र की पूर्व संध्या पर भारत सरकार ने तीन विभूतियों को भारत रत्न सम्मान देने का ऐलान किया। भारत रत्न विभूतियों के नामों की घोषणा के बाद से ही विवादों और चचार्ओं का दौर शुरू हो गया है। भारत रत्न पुरस्कार की स्थापना के बाद से अब तक 45 विभूतियों को इस सम्मान से नवाजा जा चुका है। पहले तो किसी ने कोई प्रश्न नहीं उठाये लेकिन बीते कुछ वर्षों से ये सर्वोच्च सम्मान भी विवादों के घेरे में आ गया है। इस बार पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, समाजसेवी नानाजी देशमुख और मशहूर असमिया गायक भूपेन हजारिका को इस सर्वोच्च सम्मान से अंलकृत किया जाएगा। भारत रत्न पुरस्कार की घोषणा होते ही इन्हें वोट बैंक, सियासी नफे और लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जाने लगा है।
सोशल मीडिया से लेकर दूसरे प्लेटफार्म पर भारत रत्न सम्मान को लेकर तरह-तरह की चचार्एं नित नये विवादों को जन्म दे रही हैं। सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न के ताजा विवाद में धर्मगुरू या योगगुरू से लेकर राजनीतिज्ञ तक हैं। इस सम्मान को लेकर कुछ सवाल तो हमेशा से ही विपक्षी पार्टियां केंद्र सरकार पर पक्ष लेने का आरोप लगाती रही हैं। फिर बात चाहे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हो या मदर टेरेसा की या फिर अटल बिहारी वाजपेयी की सभी पर सवाल उठाए गए। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि यह सम्मान पाने वालों में कांग्रेस के नेता ज्यादा हैं। एक या दो मौकों को यदि छोड़ दें तो ऐसा बेहद कम बार देखने को मिला है कि इस सम्मान को लेकर विपक्ष ने सरकार को बधाई का पात्र बनाया हो।
भारत रत्न से ज्यादा विवाद पद्म अलंकरणों को लेकर होता रहा है। असल में रसूखदार लोग बाकायदा जुगाड़ लगाकर पद्मश्री और उससे ऊपर के सम्मान हासिल कर लिया करते थे। इसकी वजह से इन सम्मानों को समाप्त करने की मांग भी उठने लगी। लेकिन मोदी सरकार ने इन अलंकरणों के लिए चयन प्रक्रिया को अत्यंत पारदर्शी बना दिया जिसकी वजह से समाज में रचनात्मक और उत्कृष्ट कार्य कर रहे ऐसे लोगों की झोली में भी पद्म सम्मान आने लगे जो प्रसिद्धि और प्रचार से दूर रहकर नेकी के कार्य में जुटे रहते हैं। इस साल भी ऐसे कई व्यक्तित्व पद्म सम्मान से अलंकृत हुए जिनके कृतित्व को लेकर अभी तक लोग या तो बहुत कम जानते थे या फिर जानते ही नहीं थे। हालांकि कुछ नाम ऐसे जरूर शामिल हो जाते हैं जो इस चयन प्रक्रिया में भी अपने लिए गुंजाइश निकाल लेते हैं।
पद्म पुरस्कारों की भांति तमाम अन्य पुरस्कार और सम्मान भी विवादों के घेरे में रहे हैं। पद्म पुरस्कारों की रेवड़ी जिस प्रकार पूर्ववर्ती सरकारों ने बांटी है उससे इस सम्मान के प्रति समाज का नजरिया बदल गया है। इन सबके बीच भारत रत्न को लेकर विवाद शुरू हो गया है। तमाम महानुभावों को भारत रत्न देने की मांग समय-समय पर उठती रहती है।
इंदिरा गांधी,राजीव गांधी को जिस समय भारत रत्न सम्मान से नवाजा गया था उस समय भी इनको यह सम्मान दिए जाने की आलोचना की गई थी। इसे कांग्रेस सरकार द्वारा अपने नेताओं को ही सम्मानित करने की कोशिश बताया गया था। जब लता मंगेश्कर को भारत रत्न देने की घोषणा की गई उंस समय भी यह आवाज उठी थी कि यदि किसी गायक को ही सम्मानित करना है तो लता मंगेश्कर ही क्यों,मोहम्मद रफी क्यों नहीं? मदर टेरेसा को भारत रत्न देते समय दक्षिणपंथियों द्वारा यह कहा गया कि यह मिशनरीज को खुश करने के लिए उठाया गया कदम है।
वास्तव में विभिन्न सरकारें अपनी पसंद की विभूतियों को राजनीतिक नफे के आधार पर उपकृत करती रही हैं। क्षेत्रीयता भी कहीं न कहीं भारत रत्न की चयन प्रक्रिया को प्रभावित करती रही। पं मालवीय को भारत रत्न दिए जाने पर उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी से सांसद होने से जोड़ा गया। यही बात इस वर्ष भी गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या में भारत रत्न से अलंकृत किये जाने वाली विभूतियों के नामों की घोषणा के बाद सुनाई दी। पूर्वोत्तर राज्यों में अपने गायन से एक विशिष्ट छवि बना चुके स्व. भूपेन हजारिका और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न दिए जाने को आगामी लोकसभा चुनाव में पूर्वोत्तर राज्यों और बंगाल के मतदाताओं की क्षेत्रीय भावनाओं को भुनाने से जोड़ा गया। वहीं राजनीति छोड़कर चित्रकूट में ग्रामीण विकास का आदर्श मॉडल खड़ा करने वाले स्व. नानाजी देशमुख को अलंकृत किये जाने को रास्वसंघ को प्रसन्न करना माना गया। स्व.हजारिका और स्व.देशमुख तो इस दुनिया में नहीं हैं इसलिए उन्हें लेकर तो ज्यादा बवाल नहीं मचा किन्तु प्रणब मुखर्जी जरूर लपेटे में आ गए।
प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न मिलने की पहली प्रतिक्रिया तो भाजपा द्वारा बंगाल के लोगों को खुश करने की कोशिश के तौर पर सामने आई। जीवन भर कांग्रेसी रहे प्रणब दा को भाजपा सरकार द्वारा देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिए जाने के निर्णय को एक वर्ग विशेष ने राजनीतिक सौजन्यता से जोड़कर भी देखा लेकिन सोशल मीडिया में मुखर्जी को मिले सम्मान को गत वर्ष उनके रास्वसंघ के आयोजन में नागपुर जाने का पुरस्कार बताया जाने लगा।मजेदार बात ये रही कि कांग्रेसी और वामपंथी विचारधारा के समर्थक भाजपा को इस बात का उलाहना देने लग गए कि जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी को अभी तक भारत रत्न नहीं दिया गया। भारत रत्न सम्मान को लेकर मचे इस घमासान के बीच यह बात भी गौरतलब है कि अभी तक देश की किसी भी सरकार ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को इस सम्मान के योग्य संभवत: नहीं समझा है।
अन्यथा मेरे विचार से गांधी जी व सुभाष चंद्र बोस देश के पहले ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों में थे जिन्हें प्रथम भारत रत्न सम्मान मिलना चाहिए था? एक सवाल यह भी है कि क्या चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, राजगुरू,सुखदेव, अशफाक उल्लाह खां व रामप्रसाद बिस्मिल जैसे भारत के कई रत्न भारत रत्न के हकदार नहीं? बहरहाल, भारत रत्न के लिए नामित लोगों के पक्ष और विपक्ष में आने वाली तमाम तरह की दलीलों के बीच कम से कम यह निष्कर्ष तो निकलता ही है कि इस सर्वोच्च सम्मान को ऐसे व्यक्तियों को दिया जाना चाहिए जो दल, विचारधारा, क्षेत्र तथा वर्ग विशेष आदि से ऊपर उठकर मानवता के कल्याण के लिए काम करने वाला हो। अच्छा होता कि सर्वोच्च नागरिक सम्मान की आलोचना करने वाले इन विभूतियों के कृतित्व की चर्चा करते जिससे किसी को ये सोचने का अवसर भी नहीं मिलता कि वे किस क्षेत्र या विचारधारा से जुड़े थे? महान विभूतियों सारे देश की होती हैं। ऐसे में उनके सम्मान पर विवाद उठाना किसी भी सूरत में सही नहीं है।
-राजेश माहेश्वरी
Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।